Apathit gadyansh

अपठित गद्यांश ( apathit gadyansh ) भी भाषा ज्ञान की दृस्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण विषय है। अपठित अर्थात जो पढ़ा हुआ न हो और गद्यांश अर्थात किसी गद्य रचना का एक अंश। जब भी आप किसी भाषा के मूल तक पहुंचने का प्रयास करते हैं तब ये अपठित गद्यांश आपके भाषा कौशल को और निखारती है। स्कूल में बच्चों में भाषा सम्बन्धी ज्ञान को और निखारने के लिए इस विषय से परिचित कराया जाता है। आइये, हम इस विषय में सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें।


अपठित गद्यांश के लाभ

अपठित गद्यांश (apathit gadyansh) को हर एक विद्यार्थी को पढ़ना ही होता है। भाषा की दृस्टि से ये बेहद ही आवश्यक है। ये विद्यार्थीयों में भावग्रहण की शक्ति को और परिस्कृत करता है। ये गद्यांश हमेशा शिक्षाप्रद ली जाती हैं ताकि ये भाषा ज्ञान के साथ -साथ ये ज्ञानवर्धक भी हो। दैनिक जीवन, पौराणिक कहानियां, ज्वलंत विषय, समाज, राजनीति आदि विषय ही मुख्यतः लिए जाते हैं।

विद्यार्थी इन गद्यांशों को बड़ी ही एकाग्रता से पढ़ते हैं और उस विषय से सम्बंधित उत्तर भी देते हैं। उत्तर बेहद ही सठिक और उच्च व्याकरणिक कोटि के होते हैं। इन प्रश्नो में व्याकरणिक इकाइयां जैसे विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, वाक्य विश्लेषण आदि सम्मिलित होते हैं। ये सब मिलकर विद्यार्थीयों में बहुमुखी प्रतिभा को और निखारते हैं।


अपठित गद्यांश का कैसे भावग्रहण किया जाता है ?

अपठित गद्यांश बेहद ही महत्वपूर्ण विषय है। इसे बेहद ही एकाग्रता से पढ़ कर ही प्रश्नो को पूरा करने चाहिए। अगर आपको पहली बार में गद्यांश समझ में न आये तो आप इसे दोबारा पढ़ें। हर शब्दों पर विशेष ध्यान दे और उनके अर्थ को समझने का प्रयास करें। निम्न बातों पर धयान दें –

  1. गद्यांश में आये कठिन शब्दों को अलग कर लें। इन कठिन शब्दों के अर्थों को समझने का प्रयास करें।
  2. गद्यांश के मूल भाव को पहचानने का प्रयास करें । ये जानने की कोशिस करें कि वास्तव में ये गद्यांश किस विषय में कहा गया है या ये क्या बताना चाहता है।
  3. आप इसके मूल भाव में कोई परिवर्तन न करें न ही करने का प्रयास करें ।
  4. हमेशा प्रश्नों का उत्तर देते वक़्त ये ख्याल रखें कि उत्तर आपकी अपनी भाषा में हो। शब्दों का चयन सरल और सुबोध होना चाहिए।
  5. आपके सारे उत्तर, गद्यांश के मुख्य भावों को ध्यान में रखकर लिखना चाहिए।

अपठित गद्यांश (apathit gadyansh)

परीक्षा में अपठित गद्यांश कैसे करें ?

आजकल सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में अपठित गद्यांश का बहुत ही महत्त्व होता है। आपको इसे हल करने के लिए विशेष रणनीति का सहारा लेना होगा। भारत में स्कूल की बोर्ड की परीक्षा में परीक्षा आरम्भ होने से पंद्रह मिनट पहले ही प्रश्न पत्र दे दिया जाता है। ख्याल रहे आपके लिए ये समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। आपको ये समय प्रश्न पत्र को पढ़ने के लिए दिया जाता है। आपको इसी पंद्रह मिनट के इस गद्यांश को पूरी तरह से समझ लेना है। अगर जरुरत हो तो इसे एक से अधिक बार पढ़ें और इसके भावों को समझने का प्रयास करें।

जैसे ही उत्तर लिखने की आज्ञा मिलती है तो शीग्र ही इसके उत्तर लिखना प्रारम्भ करें। सभी उत्तर आपके अपने शब्दों में देने का प्रयास करें। व्याकरणिक मात्राओं पर विशेष ध्यान दें। अशुद्ध शब्द या वाक्य को न लिखें। हमेशा शब्द संख्या के निर्देश के अनुसार ही अपने उत्तर लिखें।


अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh)-अभ्यास -1

वृक्षों में भी पीपल या अश्वत्थ का विशेष महत्त्व है। यह हिमालय की ऊँचाइयों को छोड़कर सर्वत्र पाया जाता है। यह बरगद का भाई है, कभी-कभी बरगद-पीपल दोनों के लिए अश्वत्थ शब्द का प्रयोग हुआ है। पर बरगद से पीपल इसलिए विशिष्ट है कि यह सर्वांग मनोहर है, विशेषकर इसमें जब नए किसलय निकलते हैं और बिना किसी हवा के संस्पर्श के हिलते दीखते हैं, तो ऐसा लगता है कि हज़ार-हज़ार छोटी-छोटी झंडियाँ किसी विशेष आगमन की सूचना देती हैं। पलाश के फूल तो अंगारे की तरह दिखते हैं, पर पीपल के नए पल्लव ऐसे मनहर होते हैं कि हज़ार-हज़ार पक्षी दौड़-दौड़ आते हैं।

उस पीपल की बात करना चाहता हूँ। पीपल का पेड़ भारत का दुर्निवार पेड़ है, इसे कोई लगाए न लगाए, कहीं उग जाता है। पुराने मकानों की संधियों में, जहाँ चिड़िया पीपल का गोदा खाकर उसके बीज यहाँ वहां दाल देती है। इसी कारण पीपल का पौधा कही भी उग आता है। इन पेड़ों की जड़ें बहुत लम्बी होती हैं। भारत के गावों में लोग इसे काटते हुए डरते हैं। पीपल का पेड़ बड़ा पवित्र है। पीपल के पत्तों पर लोग रामनाम लिखते हैं। पीपल की छाँह में गाँवों में पंचायत जुटती थी, ताकि लोग वहाँ झूठ न कहें। पीपल सत्य है, क्योंकि निरंतरता है। गाँवों में हमारी ओर पीपल को वासुदेव कहते हैं-वासुदेव श्रीकृष्ण ने गीता में अपने को वृक्षों में अश्वत्थ अर्थात् पीपल ही घोषित किया है।

पीपल का पेड़ ही आरंभिक भारतीय कला में तथागत की उपस्थिति है (जब उनकी मूर्ति नहीं अंकित होती थी)। पीपल के पेड़ में मरे व्यक्ति की शांति हेतु एक मटका बंधा जाता है जो करीबन दस दिनों के लिए होता है। इस मटके से जल की बून्द निरंतर टपकती रहती है जो जीवन चक्र को दर्शाती है। पीपल सृष्टि का अनविच्छिन्न प्रवाह है। पीपल का पेड़ ढह जाए, उसका बीज वहीं और कई जगह और उग आता है। पीपल के पेड़ की जड़ों पर सिर टेके श्रीकृष्ण ने जरा का तीर झेला और अपनी लीला समेटी।

उस स्थान पर पीपल का पेड़ बना रहा, एक साल बाढ़ में ढहा, मामूली पाँच-छह पंक्तियों का समाचार छपा, बाद में उसी स्थान पर वृंदावन से पीपल का पौधा ले जाकर भागवत भूमि यात्रा के अवसर पर स्वर्गीय अज्ञेय ने लगाया था, वैसे पीपल के पेड़ के बहाने श्रीकृष्ण को अंजलि दी जाती रहे। वासुदेव से संबंध टूटने न पाए। वासुदेव से संबंध संस्कृति की संपूर्णता से संबंध है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर प्रश्नो के उत्तर दें-

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताएं?
  2. पीपल की समानता किससे की जाती है?
  3. पलास और पीपल के पत्तों में क्या अंतर है?
  4. ” सर्वांग मनोहर ” का क्या आशय है?
  5. पीपल को दुर्निवार क्यों कहा जाता है?
  6. पीपल के पेड़ को गावों में क्यों नहीं काटा जाता ?
  7. “विशिष्ट “ शब्द का पर्यायवाची बताएं ?
  8. “पांच – छह” में कौन सा समास है ?
  9. “रामनाम” का शब्द विग्रह करें ?

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अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh)-अभ्यास -2

वर्षा ऋतु का नाम आते ही मन-मयूर नाच उठता है। भयंकर गर्मी से राहत मिलती है। ठंडी फुहारों से स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है। सभी ऋतुओं में मनमोहक वर्षा ऋतु है। गर्मी की तपन के बाद वर्षा की फुहारों का आगमन बड़ा आनंददायी होता है। पशु-पक्षी और मानव ही नहीं, पेड़-पौधों पर भी इस ऋतु का प्रभाव पड़ता है। वर्षा ऋतु जैसे बंजर भूमि को नया जीवन दे देती है। वैशाख और ज्येष्ठ मास को भयंकर अगन के बाद आषाढ़ मास में मोरों की कूक से अहसास होता है कि बरसात की ऋतु आने वाली है। तब तक गर्मी से मन व्यथित हो चुका होता है।

वर्षा शुरू होते ही खेत-खलिहानों में हरियाली शुरू हो जाती है। लोग धान की बुआई में व्यस्त हो जाते हैं। मोर जी भरकर नृत्य करते हैं। कोयल की कूक बड़ी सुहानी लगती है। बच्चे उत्साह से भर जाते हैं। नंगे बदन वर्षा में भीगते हुए इधर-उधर भागना बड़ा अच्छा लगता है। अच्छी बरसात हो तो नर-नारियाँ झूम उठते हैं। खेतों में लबालब भरे पानी में धान की बुआई, खेतों की जुताई।

किसानों का मन मुदित हो उठता है। ऐसा लगता है सारी प्रकृति एक नए अवतार में प्रकट हुई है। सब कुछ वर्षा में धुलकर नया नया सा है लगता है। अच्छी बरसात से धरती में पानी का स्तर बढ़ जाता हैं । हर जगह पानी ही पानी दिखाई देता है। सभी नदी तालाब पानी से लबालब हो जाते हैं। पशु – पक्षी भी उस पानी में नहाते हुए यहाँ- वहां नज़र आ ही जाते है।  एक तरफ वर्षा ऋतु प्रसन्नतादायी अनुभूति देती है। दूसरी तरफ इस ऋतु में कुछ समस्याएँ भी खड़ी हो जाती हैं। महानगरों में सीवर जाम हो जाते हैं, जिसके कारण सड़कों पर नदी का-सा दृश्य दिखाई देता है।

यातायात व्यवस्था चौपट हो जाती है। नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिससे गाँव के गाँव बर्बाद हो जाते हैं। जान-माल की बहुत हानि होती है। रास्ते बंद हो जाते हैं। अत्यंत परेशानी पैदा होती है। गरीबों में तो वर्षा कहर बनकर आती है। जीवन नारकीय हो जाता है। चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़। मकानों की छतें गिर जाती हैं। झोपड़ियों की हालत ऐसी हो जाती है मानों वर्षों से वीरान पड़ी हों। वर्षा ऋतु के जाने के बाद भी हालात सहज नहीं हो पाते। एक अजीब-सी बदबू चारों तरफ फैल जाती है। मच्छरों की भरमार हो जाती है। इस प्रकार वर्षा ऋतु खुशियों के साथ गमों का साया भी लेकर आती है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर प्रश्नो के उत्तर दें-

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताएं?
  2. मन मयूर का क्या आशय है ?
  3. मन का मुदित होना से आप क्या समझते हैं ?
  4. वर्षा के कारण प्रकृति के परिवर्तन का परिचय दें?
  5. ग़मों का साया शब्द क्यों किया गया है ?
  6. समास विग्रह करें तथा समास का नाम भी बतायें – मन – मयूर , जान – माल, पशु – पक्षी ।

अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh)-अभ्यास -3

आज जब सारी दुनिया में गए भारतीय अपने मातृदेश की ओर देख रहे हैं और चाहते हैं कि अपने देश, भाषा और में संस्कृति के साथ-साथ जुड़ाव और प्रगाढ़ हो तो ब्रिटेन के भारतीय इस स्थिति से अपने को अलग कैसे रख सकते हैं। भारत के ब्रिटेन के साथ ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। इसके चलते भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में ब्रिटेन में हैं। यहाँ तक कई नगरों में वे बहुसंख्यक हो गए हैं जैसे लेस्टर में। उनके सामने सवाल यह था कि वे किस तरह अपनी संस्कृति, अपनी पहचान, अपनी विशिष्टता को बनाए रखें। इसके लिए ज़रूरी था कि अपनी भाषा को बचाया जाए और अगली पीढ़ी अपनी विरासत सौंपी जाए।

जहाँ तक हिंदी की स्थिति है, आज से लगभग 14 वर्ष पूर्व किए गए अपने हिंदी संबंधी सर्वेक्षण में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सत्येंद्र श्रीवास्तव ने स्पष्ट किया था कि हिंदी का अपना कोई क्षेत्र या सीमा नहीं है। इसका मतलब यह है कि हिंदी के लोग गुजराती, पंजाबी और बंगाली भाषियों जैसे कुछ क्षेत्रों में नहीं रहते हैं, लेकिन हिंदी बोलने वालों को ग्रामीण इलाकों में अपनी भाषा को जीवित रखने की जरूरत है। भारत में संचार की भाषा के रूप में भी हिंदी का उपयोग साहित्य और शिक्षा के लिए किया जाता है और विदेशों में रहने वाले भारतीय भी एक दूसरे के साथ अंतरंग बातचीत के लिए हिंदी का उपयोग करते हैं।

बोलचाल की दृष्टि से पंजाबी, गुजराती, बंगाली, दक्षिण भारतीय और दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों से आए लोग हिंदी का ही संपर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं।  साउथहॉल जैसे क्षेत्र भारतीय क्षेत्र के रूप में विख्यात होने लगे। जे.एम. कौशल, धर्मेंद्र गौतम (सं-प्रवासी) डॉ. श्याम मनोहर पांडे, प्रेमचंद सूद जैसे लोगों ने मानस सम्मेलन आदि के द्वारा हिंदी के पौधे को सींचना शुरू किया और हिंदी के वृक्ष के तने विविध क्षेत्रों में फैलने लगे।

90 के दशक में तो सक्रियता इस कदर बढ़ी की विश्व हिंदी के मानचित्र पर ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा। विदेशों में मॉरीशस के बाद संभवत: ब्रिटेन ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां रचनात्मकता के मामले में हिंदी साहित्य सबसे अधिक सक्रिय है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर प्रश्नो के उत्तर दें-

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताएं?
  2. ब्रिटेन में हिंदी भाषियों की स्तिथि पर प्रकाश डालिये ?
  3. विदेश में हिंदी का रूप कैसा होता है?
  4. किन महान व्यक्तिओं ने हिंदी के उत्थान के लिए कार्य किये ?
  5. पर्यायवाची लिखें – मातृदेश ।
  6. भाववाचक संज्ञा बनायें – विख्यात, विविध, विभिन्न ।

अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh)-अभ्यास -4

इस धरती पर समस्त ज्ञानी जनो  का तो यही मानना है कि हमें ईश्वर ने ये जीवन अपने कर्मो के करने के लिए दिया है। सुख- दुःख और कष्ट तो हमारे शत्रु की भांति है ये तो आते ही रहेंगे।हमें सामना करना है और उनके विरुद्ध संघर्ष करके हमें विजयी बनना है। अंग्रेज़ी के यशस्वी नाटककार शेक्सपीयर ने ठीक ही कहा है कि “कायर अपनी मृत्यु से पूर्व अनेक बार मृत्यु का अनुभव कर चुके होते हैं किंतु वीर एक से अधिक बार कभी नहीं मरते हैं।”

हम लाल बहादुर शास्त्री ,महात्मा गाँधी, अब्राहम लिंकन आदि महान पुरुषों की जीवन वृत्त से बहुत कुछ सीखते हैं तथा यह शिक्षा देते हैं कि महानता का रहस्य संघर्षशीलता, अपराजेय व्यक्तित्व है। इन महापुरुषों को जीवन में अनेक संकटों का सामना करना पड़ा परंतु वे घबराए नहीं, संघर्ष करते रहे और अंत में सफल हुए। संघर्ष के मार्ग में अकेला ही चलना पड़ता है।

कोई बाहरी शक्ति आपकी सहायता नहीं करती है। परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन आदि मानवीय गुण व्यक्ति को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। समस्याएँ वस्तुतः जीवन का पर्याय हैं। यदि समस्याएँ न हों, तो आदमी प्रायः अपने को निष्क्रिय समझने लगेगा। ये समस्याएँ वस्तुतः जीवन की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती हैं। समस्या को सुलझाते समय, उसका समाधान करते समय व्यक्ति का श्रेष्ठतम तत्व उभरकर आता है।

धर्म, दर्शन, ज्ञान, मनोविज्ञान इन्हीं प्रयत्नों की देन हैं। पुराणों में कथाएँ यह शिक्षा देती हैं कि मनुष्य जीवन की हर स्थिति में जीना सीखे व समस्या उत्पन्न होने पर उसके समाधान के उपाय सोचें। जो व्यक्ति जितना उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करेगा, उतना ही उसके समक्ष समस्याएँ आएँगी और उनके परिप्रेक्ष्य में ही उसकी महानता का निर्धारण किया जाएगा।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर प्रश्नो के उत्तर दें-

  1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताएं?
  2. ज्ञानी जनो से आप क्या समझते हैं ?
  3. महानता का क्या रहस्य है ?
  4. सफलता क्या होती है और इसका मार्ग कौन प्रसस्त करता है ?
  5. पर्यायवाची बताएं – परिश्रम , मार्ग, जीवन, शत्रु ।
  6. “इच्छा शक्ति” से क्या आशय है?

 

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