anmol vachan in hindi

anmol vachan in hindi  के इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। सबके जीवन में अच्छे – बुरे पल आते ही रहते हैं। पर यकीं माने तो जीवन के प्रत्येक पल हमें जीवन के अनुभव देते हैं। यही अनुभव हमारे आत्मबल को पोषित करता है। हमें ऊर्जावान और आत्मविस्वास से परिपूर्ण बनता है। पर सच तो यह है कि हम हर पल ऊर्जावान नहीं बने रह सकते। इसलिए हमें कही न कही उच्च प्रेरणा की जरुरत महसूस होती है।
भारत जैसे महान देश में ऐसे महापुरुष भी हुए जिनके क्रिया – कलाप व वचनो से समस्त जगत प्रेरणा और ज्ञान पाता है। इन महापुरुषों को वचन से आज सारा संसार आलोकित है।जब भी महानता की बात होती है, तो हमें उन महात्माओं के याद आती है जिन्होंने धर्म, जाति, वर्ण आदि की सभी सीमाओं तो तोड़ कर एक मानवता का परिचय दिया।
मैंने इस ब्लॉग में कुछ महान पुरुषों की वाणियों को संकलित करना का प्रयास किया है जिनके जीवन दर्शन मात्र से ही साधारण जन आनंद का बोध करता है। अगर आप इन वचनो को अपने जीवन में उतार लें, तो निश्चित ही आप एक सुखद जीवन शैली जीने की कला सीख जायेंगे। ये वचन आपका हमेशा से मार्गदर्शन करते आ रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी को ऐसे मार्गदर्शन की नितांत जरुरत है।
तो आइये एक आलौकिक जगत की सैर को चलें, जहाँ आत्मीय सुख तथा जीवन का यथार्थ हो।

anmol vachan in hindi

महात्मा गाँधी के वचन 

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  • डरना और डराना दोनों पाप हैं।
  • जीवन में सबसे बड़ी कला तपस्या है।
  • हमें जापान के सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए, ऐसा भगवत गीता में कहीं नहीं लिखा है। प्रत्येक शास्त्र में यही लिखा है कि आपका उद्धार होगा, इसलिए हमारे देश उन्ही कपड़ों को पहना हमारा धाम है जिसे कारीगर अपने घरों में भजन गाते हुए बनाते हैं,
  • धर्म राजनीति की आत्मा है जिसके अभाव में राजनीति केवल भ्रष्ट नीति एवं स्वार्थ नीति बन जाती है।

“वचन का पालन करने वाला कंजूस की भांति तोल-तोलकर अपने मुख से शब्द निकालना चाहिए।”

  • राष्ट्रों की प्रगति क्रमिक विकास और क्रांति दोनों तरीकों से हुई है। क्रमिक विकास और क्रांति दोनों ही समान रूप से जरूरी हैं।
  • विचार शून्य जीवन पशु जैसा है।
  • जो व्यक्ति आधुनिक सभ्यता के आवरण में अपनी आवश्यकताएं बढ़ाते जाते हैं और स्वयं शारीरिक श्रम नहीं करते, वे गरीबों का शोषण करते हैं।
  • रोटी की क्षुधा बौद्धिक श्रम नहीं हो सकता। मनु को दो प्रकार की क्षुधा होती है, शारीरिक और मानसिक। जिस तरह मानसिक क्षुधा के लिए लौकिक कार्य किए जाते हैं, शरीर की क्षुधा रोटी है, शरीर की आवश्यकता शरीर द्वारा ही पूरी करनी चाहिए।
  • आनंद का रहस्य ही त्याग में है।

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“बिना अवसर के बोलना निरर्थक है।”

  • चरित्र शुद्धि ठोस शिक्षा की बुनियाद है।
  • आराधना भक्ति है। वह मरकर जीने का मंत्र है।
  • दूसरों को डाला अंकुश गिराने वाला है और अपना बनाया अंकुश उत्थानकारी है।
  • कानों के दुरुपयोग से मन बहुत अशांत और कुलषित हो जाता है, लेकिन कान इसका अनुभव नहीं कर पाते।
  • जहां देह वहां कर्म तो है ही, उससे कोई मुक्त नहीं है। फिर भी शरीर को प्रभु मंदिर बनाकर उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए।
  • जो व्यवहार तत्त्व के निकट नहीं जाता, वह अशुद्ध और त्याज्य है।

डरने वाला व्यक्ति स्वयं ही डरता है। उसे कोई डराता नहीं।

  • अपने देश या अपने शासक के दोषों के प्रति सहानुभूति रखना या उन्हें छिपाना देशभक्ति के नाम पर लजाना है। इसके विपरीत देश के दोषों का विरोध करना सच्ची देशभक्ति है।
  • अंधा वह नहीं, जिसकी आंख नहीं है। अंधा वह है, जो अपना दोष छिपाता है। गुलामों की अपेक्षा उन पर अत्याचार करने वाले की हालत ज्यादा खराब होती है।
  • दूसरे के दोष पर ध्यान देते समय हम स्वयं बहुत भोले बन जाते हैं, परंतु जब हम अपने दोषों पर ध्यान देंगे, तो अपने को कुटिल और कामी पाएंगे।
  • प्रेम : एक सुखद अनुभव है।
  • देश से ही नहीं, बल्कि जो दिल से भी गुलाम हो गए हैं, वे कभी आजादी हासिल नहीं कर सकते। जीवन का सच्चा ध्येय जीवन की सार्थकता है।
  • देश प्रेम से बढ़कर कोई सेवा नहीं है।

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“सीधा रास्ता जैसा सरल है वैसा ही कठिन है।”

  • अपने मार्ग पर कायम रहकर किसी भी दूसरे धर्म में जो विशेषताएं दिखाई दें, उन्हें लेने का हमारा अधिकार है। इतना ही नहीं ऐसा करना हमारा धर्म है। दूसरे धर्मों से कुछ भी न लिया जा सके, इसका नाम धर्मान्धता है।
  • तात्कालिक आवश्यकता यह नहीं है कि धर्म एक हों, बल्कि यह है कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों में परस्पर आदर और सहिष्णुता हो ।
  • हृदय में देवासुर संग्राम चलता ही रहता है। कब हमें असुर भरमाता है और कब देव रास्ता दिखाते हैं, यह हम सदा नहीं जान सकते। धर्म ही हमें यह विवेक देता है।
  • ईश्वर न काबा में है न काशी में है। न मंदिर में है न मस्जिद में। वह तो चर-चर में व्याप्त है, हर दिल में मौजूद है।
  • मुझे अपना धर्म झूठा लगे तो मुझे उसका त्याग करना चाहिए। दूसरे धर्म में कुछ अच्छा लगे उसे अपना लेना चाहिए। अपने अपूर्ण धर्म को पूर्ण बनाना हमारा कर्तव्य है।
  • मेरी कठिनाई दूर भविष्य के बारे में नहीं है। मैं तो सदा वर्तमान पर ही पूरा ध्यान लगा सकता हूं और उसी की मुझे कभी-कभी चिंता होती है।

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