sarvanam | सर्वनाम | sarvanam in hindi | सर्वनाम के भेद | sarvanam ke bhed | sarvanam in hindi grammar इन सभी विषयों पर आपके मन के जो भी शंका रह जाया करती है उन सबका निवारण इस ब्लॉग में अवश्य हो जाएगी। इस विषय के सभी तथ्य विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषय को ध्यान में रख कर लिखा गया है। मैंने अपने सभी अनुभव इसमें पिरोने का प्रयास किया है।
sarvanam | सर्वनाम कर शाब्दिक अर्थ – “सर्व” अर्थात सब का नाम । हम जब संज्ञा के बदले कुछ शब्दों का प्रयोग करते हैं उन्ही शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। ये शब्द सबके नामों के स्थानों में प्रयोग किया जाता हैं।
जिन वाक्यों व् गद्यांशों में हम एक ही संज्ञा शब्द बार बार प्रयोग करना नहीं चाहते या बार बार प्रयोग करने पर उसके वाक्य सौंदर्य पर आघात होता है तब उन्ही संज्ञा शब्दों के स्थानों पर हम sarvanam (सर्वनाम) शब्दों का प्रयोग करते हैं।
निचे दिए गए उदाहरण को देखें –
” रोहित बहुत अच्छा लड़का है । रोहित अपनी माता – पिता की बात मानता है । रोहित प्रतिदिन मंदिर जाता है। ”
उपर्युक्त गद्यांश में आप देखें तो यह ज्ञात होगा की रोहित ( संज्ञा ) का बार – बार यहाँ प्रयोग हुआ है और इसी के कारण गद्यांश के सौंदर्य नष्ट हो रहा है। यदि बार – बार इस संज्ञा का प्रयोग न करके हम उसकी जगह सर्वनाम शब्द का प्रयोग करें जैसे – “वह” , तो ये गद्यांश अधिक सठिक प्रतीत होगा।
जैसे – रोहित बहुत अच्छा लड़का है । वह अपनी माता – पिता की बात मानता है । वह प्रतिदिन मंदिर जाता है। ”
परिभाषा – संज्ञा के बदले प्रयुक्त होने वाले शब्द या शब्दों को सर्वनाम ( sarvanam )कहते हैं।
संज्ञा शब्दों की पुनरावृति न हो इसी के कारण सर्वनाम शब्दों को प्रयोग किया जाता है। इसी के कारण वाक्य व् गद्यांशों में एक सौंदर्य की अनुभूति होती है। व्याकरण की दृस्टि से भी ये सठिक माना जाता है। सर्वनाम शब्दों के प्रयोग से भाषा का सौंदर्य अधिक प्रभावशाली हो जाता है।
कुछ सर्वनाम शब्दों के उदहारण – यह , इसमें , वह, किसने , मैं, तुम , कौन, जैसा, तैसा, कुछ, उसने आदि ।
हम सर्वनाम के बारे में यह जानना चाहते हैं –
- सर्वनाम शब्द कौन से होते हैं?
- सर्वनाम के कितने प्रकार है?
- क्या सर्वनाम शब्द विशेषण का कार्य करते हैं?
इन सभी का उत्तर आप निचे दिए गए विवरण में आसानी से पा सकते हैं।
sarvanam | सर्वनाम | sarvanam in hindi | सर्वनाम के भेद | sarvanam ke bhed
Table of Contents
सर्वनाम के भेद | sarvanam ke bhed
sarvanam ” सर्वनाम ” के कितने भेद होते हैं?
व्याकरणिक दृस्टि से सर्वनाम के छह (6) भेद माने गए हैं। जो निम्नलिखित हैं।
- पुरुषवाचक सर्वनाम
- निश्चयवाचक सर्वनाम
- अनिश्चयवाचक सर्वनाम
- प्रश्नवाचक सर्वनाम
- निजवाचक सर्वनाम
- सम्बन्धवाचक सर्वनाम
हम विस्तार से सर्वनाम के समस्त भेदों को जानेंगे ताकि इसके समस्त आयामों से हम भली – भांति परिचित हो सके । यह परीक्षा की दृस्टि से भी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। सर्वनाम का “पद परिचय ” में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है।
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पुरुषवाचक सर्वनाम
जिस सर्वनाम “sarvanam” का प्रयोग कर्ता ( करने वाला ) अपने लिए या सामने उपस्थित व्यक्ति या अन्य व्यक्ति के लिए कर्ता है उन्ही सर्वनाम शब्दों को पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। मुख्य रूप से जब हम वार्तालाप की स्थिति में होते हैं तब पुरुषवाचक सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।
वार्तालाप की स्थिति तीन प्रकार से देखीं जाती है-
- वार्तालाप में पहला एक बोलने वाला व्यक्ति होता है जिसे हम “वक्ता” कहते हैं।
- वार्तालाप में दूसरा सुनने वाला व्यक्ति होता है जिसे हम ” श्रोता ” कहते है।
- वार्तालाप में जब वक्ता श्रोता से किसी अन्य व्यक्ति के बारे में बात करता है ।
उपर्युक्त स्थितियों को देखकर हम पुरुषवाचक सर्वनाम को तीन भेदों में बात सकते हैं-
क। उत्तम पुरुष –
जब कर्ता अपने लिए सर्वनाम sarvanam का प्रयोग करता है अर्थात जब वक्ता ( बोलने वाला ) या लिखने वाला अपने लिए सर्वनाम का प्रयोग करता है, उन्ही सर्वनामों को उत्तम पुरुष सर्वनाम कहते हैं।
जैसे-
- मैं नहाने जा रहा हूँ।
- मुझे बहुत भूख लगी है ।
- हमारा घर अभी दूर है।
- मैंने पूरी किताब पढ़ ली ।
- हमने तो बहुत गरीबी देखीं है।
उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त शब्द – मैं, मुझे, हमारा , मैंने और हमने – सर्वनाम शब्द है। ये शब्द किसी संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये गए हैं।
ख। मध्यम पुरुष –
मध्यम पुरुष वे सर्वनाम sarvanam होते हैं जिनका प्रयोग सुननेवाले और पढ़नेवाले के लिए होता है। जैसे –
- तुम कहाँ जा रहे हो ?
- तुमने खाना खाया ?
- तुम सब बहुत ही समझदार हो।
- तुझसे तो यह काम नहीं हो पायेगा ।
- तू यहाँ से चला जा नहीं तो अच्छा नहीं होगा।
उपर्युक्त वाक्य में आये शब्द- तुम , तुमने , तुझसे, तू आदि सब मध्यम पुरुष सर्वनाम हैं।
मध्यम पुरुष में कुछ बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है –
- ” तुम ” के बदले ” आप ” का प्रयोग हमेशा सठिक होता है। ये आदरसूचक होता है अर्थात जब भी हम अपने से बड़ो को सम्बोधित करेंगे तो वहां “तुम” के बदले “आप” का प्रयोग करना होगा।
- ” तू ” सर्वनाम का प्रयोग या तो समीपता, आत्मीयता प्रकट करने के लिए होता है या तो फिर निरादर करने के लिए होता है । इसलिए वक्ता को इसका प्रयोग बेहद ही उचित ढंग से करना होता है। जैसे
क। माँ ! तू मेरी बात सुनती क्यों नहीं। ( आत्मीयता )
ख। तू बड़ा बदमाश है। ( निरादर )
ग । अन्य पुरुष –
जब वक्ता और श्रोता किसी और को सम्बोधित करते है अर्थात उनकी वार्तालाप का विषय किसी और की और संकेत करता है , तब वहां अन्य पुरुष सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
- वह जा रही है।
- उसे तो कुछ करना नहीं आता ।
- उन्हें तो कल मैंने देखा था ।
- उनको तो तुम्हारी कोई फ़िक्र नहीं।
- वे तो सब कुछ कर सकते है।
- उसके बाद इस घर में रहने वाला कोई नहीं।
- उन्होंने किसी की बात नहीं मानी।
- उसमे तो कोई अच्छी बात नहीं।
उपर्युक्त वाक्यों में अन्य पुरुष सर्वनामों का प्रयोग किया गया है। जैसे – वह, उसे , उन्हे, उनको , वे , उसके , उन्होंने , उसमे ।
निश्चयवाचक सर्वनाम
जब हमें किसी सर्वनाम sarvanam से किसी दूरवर्ती या समीप के व्यक्ति, वास्तु या प्राणी या घटनाओं का निश्चित बोध होता है। तब उन सर्वनामों को निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे –
- वह देखो दिल्ली बाजार।
- वह तुम्हारी पुस्तक है।
- उस कागज़ को मेरे पास ले आओ।
- वह मेरा घर है।
- उसका नाम रवि है।
इन वाक्यों में रेखांकित शब्द निश्चयवाचक सर्वनाम है। ये शब्द निश्चितता का बोध करते है। जैसे – वह, उस उसका आदि।
मूल बातें –
- हमेशा निश्चयवाचक सर्वनाम और पुरुषवाचक सर्वनाम में समानता दिखाई देती है। पर दोनों में पर्याप्त अंतर होता है। आप निम्नलिखित वाक्यों को देखकर इनका अंतर बेहद यही आसानी से समझ सकते हैं।
- रोहित मेरा दोस्त हैं। वह दिल्ली में रहता है। – ( पुरुषवाचक सर्वनाम )
- यह कलम मेरी है। वह तुम्हारी है। – ( निश्चयवाचक सर्वनाम )
अनिश्चयवाचक सर्वनाम
जिस सर्वनाम sarvanam शब्दों से किसी निश्चित व्यक्ति, प्राणी या वास्तु का बोध नहीं होता , उन सर्वनाम शब्दों को अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते है। जैसे –
- चाय में कुछ है।
- किसी ने में ऊपर कीचड़ दाल दिया ।
- कमरे में कोई है।
- तुम्हारे पीछे कोई था।
- बच्चे ने कुछ खा लिया।
उपर्युक्त वाक्यों में रेखांकित शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम है। जैसे – कुछ , किसी , कोई आदि ।
मूल बातें –
- किसी व्यक्ति के लिए ” कोई ” का प्रयोग किया जाता है।
- किसी वास्तु के लिए ” कुछ ” का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्नवाचक सर्वनाम
ऐसे सर्वनाम sarvanam शब्द जिससे किसी व्यक्ति, प्राणी, वास्तु, या कार्य आदि के विषय में प्रश्न का बोध होता हैं , उन्हें प्रश्न वाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे –
- मेरी पुस्तक किसके पास है?
- कौन दरवाजे पर खड़ा हैं ?
- किसने गन्दगी फैलाई हैं ?
- मेरे रूपए कौन ले गया ?
- तुम क्या काम चाहिए ?
इन वाक्यों में किसके , कौन, किसने , क्या आदि प्रश्न वाचक सर्वनाम है। आप इन वाक्यों में निश्चित ही प्रश्न का बोध कर सकते है।
निजवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम sarvanam शब्दों से निजता ( अपनेपन ) का बोध हो अर्थात वे सर्वनाम शब्द जो पुरुषवाचक सर्वनाम के अपनेपन का का बोध करता हो उन शब्दों को निजवाचक सर्वनाम शब्द कहते हैं। जैसे –
- मै अपनेआप सारा काम कर सकता हूँ।
- तुम स्वं चली आना।
- माँ खुद ही सारा काम कर लेती है।
- रोहित स्वतः ही रोने लगता है।
उपर्युक्त वाक्यों में आये शब्द – अपनेआप , स्वं , खुद और स्वतः निजवाचक सर्वनाम है।
सम्बन्धवाचक सर्वनाम
ऐसे सर्वनाम sarvanam जो दो उपवाक्यों में सम्बन्ध स्थापित करता हो, उन सर्वनाम शब्दों को सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे –
- जैसा सोचा था , वैसा ही हो गया।
- जिसे करना था, उसने तो कर ही दिया।
- जैसी करनी, वैसी भरनी।
- जो मेरे घर पर आये हैं, वे मेरे मौसा हैं।
- मेरे वो रूपए मिल गए , जो रवि को दिए थे।
इन वाक्यों में आये सर्वनाम– जैसा – वैसा, जिसे – उसने , जैसी – वैसी , जो – वो सम्बन्धबोधक सर्वनाम है।
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सर्वनाम और सार्वनामिक विशेषण में अंतर
मूलतः देखा जाता हैं कि निश्चयवाचक सर्वनाम , अनिश्चयवाचक सर्वनाम और प्रश्न वाचक सर्वनाम आदि रूप सार्वनामिक विशेषण में भी देखे जाते हैं। इसलिए इनके अंतर को समझना बेहद ही जरुरी हैं।
इन वाकयों में हम इनके अंतर को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
- बाहर कौन खड़ा हैं ? ( प्रश्न वाचक सर्वनाम )- संज्ञा के बदले प्रयोग
- कौन लड़का आया हैं ? ( सार्वनामिक विशेषण ) ” लड़का ” संज्ञा की विशेषता
- कौन जा रहा हैं ? ( प्रश्नवाचक सर्वनाम )- संज्ञा के बदले प्रयोग
- कौन लड़की जा रही है? ( सार्वनामिक विशेषण ) ” लड़की ” संज्ञा की विशेषता
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sarvanam -सर्वनामों का रूप परिचय
” मैं ” उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम | ||
करक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | एक, मैंने | हम , हमने |
कर्म | मुझे | हमें |
करण | मुझसे, मेरे द्वारा | हमसे, हमारे द्वारा |
सम्प्रदान | मुझको, मुझे , मेरे लिए | हमको, हमें , हमारे लिए |
अपादान | मुझसे | हमसे |
सम्बन्ध | मेरा , मेरी, मेरे | हमारा , हमारी , हमारे |
अधिकरण | मुझमे , मुझ पर | हममे, हम पर |
” तू ” मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम | ||
कारक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | तू , तूने | तुम, तुमने |
कर्म | तुझे | तुम्हे |
कारण | तुझसे, तेरे द्वारा | तुमसे , तुम्हारे द्वारा |
सम्प्रदान | तुझे, तेरे लिए | तुम्हे, तुम्हारे लिए |
अपादान | तुझसे | तुमसे |
सम्बन्ध | तेरा , तेरी , तेरे | तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे |
अधिकरण | तुझमे, तुझ पर | तुममे, तुम पर |
” वह ” अन्य पुरुष सर्वनाम | ||
कारक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | वह, उसने | वे , उन्होंने |
कर्म | उसे, उसको | उन्हें, उनको |
करण | उससे , उसके द्वारा | उनसे, उनके द्वारा |
सम्प्रदान | उसे , उसके लिए | उन्हें , उनके लिए |
अपादान | उससे | उनसे |
सम्बन्ध | उसका, उसकी , उसके | उनका , उनकी, उनके |
अधिकरण | उसमे , उस पर | उनमे, उन पर |
” यह ” निश्चयवाचक सर्वनाम | ||
कारक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | यह , इसने | ये, इन्होने |
कर्म | इसे, इसको | इन्हे, इनको |
करण | इससे , इसके द्वारा | इनसे, इनके द्वारा |
सम्प्रदान | इसे, इसके लिए | इन्हे, इनके लिए |
अपादान | इससे | इनसे |
सम्बन्ध | इसका, इसकी, इसके | इनका, इनकी, इनके |
अधिकरण | इसमें, इस पर | इनमे, इन पर |
” कोई ” निश्चयवाचक सर्वनाम | ||
कारक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | कोई, किसी ने | कोई , किन्ही ने |
कर्म | किसी को | किन्ही को |
करण | किसी से, किसी के द्वारा | किन्ही से, किन्ही के द्वारा |
सम्प्रदान | किसी के , किसी के लिए | किन्ही के, किन्ही के लिए |
अपादान | किसी से | किन्ही से |
सम्बन्ध | किसी का, किसी की, किसी के | किन्ही का, किन्ही की, किन्ही के |
अधिकरण | किसी में, किसी पर | किन्ही में, किन्ही पर |
” जो ” निश्चयवाचक सर्वनाम | ||
कारक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | जो, जिसने | जो, जिन्होंने |
कर्म | जिसे , जिसको | जिन्हे, जिनको |
करण | जिससे | जिनसे |
सम्प्रदान | जिसको, जिसके लिए | जिनको, जिनके लिए |
अपादान | जिससे | जिनसे |
सम्बन्ध | जिसका, जिसकी , जिसके | जिनका, जिनकी, जिनके |
अधिकरण | जिसमे, जिस पर | जिनमे, जिन पर |
” कौन ” निश्चयवाचक सर्वनाम | ||
कारक | एकवचन | बहुवचन |
कर्ता | कौन , किसने | कौन, किन्होंने |
कर्म | किसे, किसको | किन्हें, किनको |
करण | किस्से , किसके द्वारा | किनसे, किनके द्वारा |
सम्प्रदान | किसको, किसके लिए | किनको , किनके लिए |
अपादान | किससे | किनसे |
सम्बन्ध | किसका, किसकी , किसके | किनका, किनकी, किनके |
अधिकरण | किसमे, किस पर | किनमे, किन पर |
sarvanam -सर्वनामों का प्रयोग के नियम
- ” कुछ ” सर्वनाम का प्रयोग – निर्जीव वस्तु, कीड़े – मकोड़ो के लिए किया जाता है।
- ” कोई ” और ” किन्ही ” सर्वनाम का प्रयोग – प्राणियों के लिए किया जाता है।
- कुछ सर्वनामों के साथ विभक्ति का भी प्रयोग किया जाता है , जैसे –
( रा , रे , री – का प्रयोग )
मैं – मेरा, मेरी , मेरे
हम – हमारा, हमारी , हमारे
तुम – तुम्हारा , तुम्हारी, तुम्हारे
4. कुछ सर्वनाम एक साथ दो बार प्रयुक्त होते है। ये वाक्य की सुंदरता बढ़ाने में सहायक होते हैं।
जैसे – अपना – अपना , कुछ – कुछ , कहाँ – कहाँ , कोई – कोई , किस – किस , जो – जो आदि ।
5. सर्वनाम शब्दों में लिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अर्थात स्त्री – पुरुष के लिए एक ही
सर्वनाम शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे – ” वह ” शब्द का प्रयोग –
- वह (रवि) जा रहा है । (पुरुष )
- वह ( सीता ) जा रही है । ( स्त्री )
CBSE परीक्षा हेतु सर्वनाम का अभ्यास –
निम्लिखित गद्यांशों में सर्वनाम शब्दों तथा उनके भेदों की पहचान करें ?
गद्यांश – 1 –
मेरा मित्र अपने सभी कर्तव्यों को निभाता है। वह मेरे गुणों को प्रकाशित करता है जिससे समाज में मेरी मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है। साथ-साथ वह अवगुणों को दूर करने का भी प्रयास करता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, किसी भी प्रकार की सम या विषम परिस्थिति हो, वह मेरे साथ सहानुभूति रखता है, साथ ही सहयोग भी बनाए रखता है।
भले ही वह कुछ न ले और कुछ न दे विपत्ति में भी मुस्कराता रहता है। उसके साथ मेरी सहानुभूति और संवेदना है। वह निःस्वार्थ मेरा हित-चिंतन करता रहता है, यह कोई साधारण बात नहीं है। इसके विपरीत आज के मित्रों को मित्र कहने की अपेक्षा शत्रु कहा जाए तो अधिक उचित है। आज के मित्र स्वार्थी हैं।
वे अपना काम मीठा बनकर निकाल लेते हैं। वे सदैव स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हैं। वे स्वार्थपूर्ति तक साथ रहते हैं। स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर दूर हो जाते हैं। ऐसे मित्रों को यदि चापलूस मित्र की संज्ञा दी जाए तो अच्छा होगा।
मेरा मित्र रमेश ऐसा नहीं है। मेरी और उसकी मित्रता चिरस्थायी है। वह मुझसे कभी विवाद नहीं करता। समय पड़ने पर मेरी आर्थिक मदद भी करता है। मेरी और उसकी मित्रता बहुत पुरानी है। कई बार अन्य मित्रों ने उसे भड़काने की भी कोशिश को किंतु उसने सीधे मुझसे आकर बात की और तुरत हो गलतफहमी को दूर कर लिया। वह समय की नाजुकता को समझता है।
समय पर संयम और संतोष से काम लेता है। वह जलती-तपती दोपहरी में शीतलता प्रदान करता है। मैं उसे सपन-वृक्ष की छाया की संज्ञा दे सकता है। उसमें परोपकार की भावना गहन रूप से विद्यमान है। उसकी मेघा शक्ति अत्यंत प्रखर है। वह मेरी पढ़ाई में भी सहायता करता है। जब कभी मेरा मन उदास होता है तो रवि मुझे प्रसन्न करने का कोई न कोई उपाय ढूँढ़ ही लेता है।
गद्यांश -2-
एक राज्य में बड़े प्रतापी राजा उदयभानुसिंह राज्य करते थे। वे बड़े दयावान, न्यायी और प्रजा के हित-रक्षक थे। उनकी प्रशंसा आसपास के राज्यों में फैली हुई थी। लोग उनके न्याय की मिसाल देते थे। उनके राज्य की प्रजा सुखी थी। वे विद्वानों का आदर करते थे। एक दिन उनके दरबार में एक बन्दर का तमाशा दिखाने वाला आया। उसने राजा और दरबारी लोगों को बन्दर का तमाशा दिखाया।
उस बन्दर को मदारी ने काफी काम सिखा दिए थे। सिवाय बोलने के वह सब काम कर देता है और आदमियों की बातें समझ लेता। राजा ने प्रसन्न होकर उस बन्दर को मदारी से अच्छा मूल्य देकर खरीद लिया और अपने महल में रख लिया। राजा जो कार्य करने को कहता, वह उस कार्य को कर देता। थोड़े ही दिनों में उसने राजा का दिल जीत लिया। अतः राजा ने उसे अपनी सेवा में रख लिया।
जब राजा शयन करता वह बन्दर राजा को पंखे से हवा करता। इस प्रकार उसने अपने काम को समझ लिया था। राजा शीतल हवा के स्पर्श से सुख का अनुभव करता था। हर दिन राजा उस बन्दर की प्रशंसा करता था और उसे अपने साथ दरबार में भी ले जाता था। सभी लोग उसे देखकर अपना मनोरंजन करते। कभी वह दरबारियों से जाकर हाथ भी मिला लेता था।
गद्यांश -3-
मैं और राजीव साइकिल वाले व्यक्ति के पास पहुँचे। देखा कि उसकी टाँग की हड्डी टूट गयी है और उससे रक्त बह रहा है। सिर और कन्धे की चोटों से भी खून आ रहा था। वह पास के किसी गाँव का आदमी था। मैंने उसकी धोती के एक सिरे से बड़ी सी पट्टी फ़ाड़ी और उसकी टाँग को राजीव की सहायता से उस पट्टी से बाँध दिया। स्कूटर चालक को भी काफी चोटें लगी थीं।
उस पर बैठे दूसरे व्यक्ति की कुहनी छिल गयी थी, पर और चोट नहीं थी। अतः उससे हमने कहा कि आप अपने साथी को अस्पताल पहुँचाइए, हम लोग साइकिल वाले की व्यवस्था करते हैं। उधर से एक थ्रीव्हीलर खाली आ रहा था। उसे रुकवा कर मैं और राजीव उस घायल ग्रामीण को अस्पताल ले चले। बेचारा पीड़ा से छटपटा रहा था। रह-रह कर कराह उठता था।
गद्यांश -4-
राजा उस आतिथ्य से बड़ा प्रसन्न हुआ। राजा ने उससे जंगल में रहने का कारण पूछा तो उसने सच-सच बात उसे बता दी। रात को छोटे भाई ने भोजन बनाया और प्रेम से राजा को खिलाया। फिर स्वयं खाकर राजा को विश्राम करने को कहा और हठ करके स्वयं पहरा देने लगा।
थका-हारा राजा जल्दी ही सो गया। छोटा भाई रातभर जागकर पहरा देता रहा। सुबह राजा उठा तो यह जानकर उसे आश्चर्य हुआ कि राजा की तलवार लेकर उसने पूरी रात जाग कर पहरा दिया और इस प्रकार अतिथि की सुरक्षा रखी। अब राजा ने जाने के लिए कहा। छोटे भाई ने उसे नाश्ता कराया और जंगल से उसे निकलने का रास्ता बताया। राजा उसकी सेवा से बड़ा प्रसन्न हुआ।
चलते समय राजा ने उससे कहा कि कल वह राजा के दरबार में आये। राजा उसका मित्र है। उससे कहकर वह उसे नौकरी दिलवा देगा। उसने यह भी कहा कि अब उसे बड़े भाई से डरने की आवश्यकता नहीं। वह अपना नाम बताकर राजमहल में प्रवेश कर सकता है। राजा चला गया। अगले दिन छोटा भाई राजमहल में पहुँचा। अपना नाम बताकर उसे राजा तक पहुँचने की स्वीकृति मिल गई।
दरबार में उसका बड़ा स्वागत हुआ। छोटे भाई को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि राजगद्दी पर वही व्यक्ति विराजमान है जो एक दिन पहले जंगल में उसके साथ रुका था। उसको यह समझते देर न लगी कि वह व्यक्ति स्वयं राजा था। राजा ने उसे अपने पास बिठाया और घोषणा की कि आज से यह राजा की सेना का सेनापति होगा। अब तो छोटा भाई फूला नहीं समा रहा था।
गद्यांश -5-
एक राजा का सेनापति बन गया और उसका छोटा लड़का उसकी सेना में साधारण सिपाही था। सेनापति को अपने पद और धन-दौलत पर अभिमान था। अपनी मान प्रतिष्ठा के कारण वह अपने छोटे भाई से बात भी नहीं करता था। उसने अपने भाई को भी हिदायत दे दी कि वह किसी से न कहे कि वह सेनापति का भाई है।
एक दिन सेनापति के घर में कोई जलसा हो रहा था तो छोटे भाई ने अन्दर जाने की प्रार्थना की और कहा कि वह सेनापति का भाई है। जब सेनापति के पास यह सन्देश पहुँचा तो वह आग-बबूला हो उठा। उसने हुक्म दिया कि उस सिपाही को 25 कोड़े लगाकर बाहर निकाल दिया जाये।
सजा पाकर छोटे भाई को बड़ा दुःख हुआ और वह डर के मारे सेना छोड़कर भाग गया और जंगल में रहने लगा। दैवयोग से एक दिन राजा शिकार खेलने गया और अपने साथियों से बिछुड़ गया। वह उसी जंगल में भटकने लगा। रात हो चली थी। जंगली जानवरों का भय था। राजा को अपने प्राणों की चिन्ता होने लगी।
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