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Ras in Hindi | रस
Ras in Hindi grammer |Ras in CBSE class 10 |रस कितने प्रकार के होते हैं | Ras kitne prakar ke hote hain | Ras class 10
Ras in hindi – काव्य को पढ़ने-सुनने अथवा नाटक को देखने से जो अवर्णनीय आनन्द प्राप्त होता है, उसे रस कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिसका आस्वादन किया जाये वही रस हैं। रस को काव्य की आत्मा स्वीकार किया गया है । आचार्य विश्वनाथ के अनुसार –
‘वाक्यम् रसात्मक काव्यम्।
अर्थात रस से युक्त वाक्य ही काव्य है । .भरत मुनि के अनुसार-विभाव, अनुभाव, और संचारी भावों के संयोग से सहृदयों के हृदय में विद्यमान स्थायीभाव रस रूप में परिणत हो जाता है।
” Ras in hindi “
रस के प्रमुख अंग
रस के कितने अंग माने जाते हैं ?
रस के प्रमुख चार अंग देखने को मिलते हैं।
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी या व्यभिचारी भाव
” Ras in hindi “
स्थायी भाव
स्थायी भाव – जो भाव सहृदयों के हृदय में संस्कार रूप में विद्यमान रहते हैं और वाक्य में अनुकूल कारण सामग्री प्राप्त होने पर रस रूप में बदल जाते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। ये दस हैं। स्थावी भाव और रसों का संबंध इस प्रकार है :
न 0 | रस | स्थायी भाव | अर्थ |
1 | श्रृंगार | रति | प्रेमी और प्रेमिका के बीच प्रेम ‘रति’ कहलाता है। |
2 | हास्य | हास | वाणी, रूप व् अंग के विकारों को देखकर मन प्रसन्न होना । |
3 | करुण | शोक | किसी प्रिय वस्तु या प्राणी के न होने पर दुःख । |
4 | रौद्र | क्रोध | अपमान, विवाद आदि के कारण उत्पन्न विकार । |
5 | वीर | उत्साह | वह वृति जो कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित करे। |
6 | भयानक | भय | भयंकर रूप या वस्तु या आचरण या प्राणी को देखकर उपजा विकार ‘भय ‘ कहलाता है। |
7 | वीभत्स | जुगुप्सा | घृणापूर्ण वस्तु को देखकर उपजा विकार । |
8 | अद्भुत | आश्चर्य , विश्मय | अलौकिक वस्तु को देखकर मन में उपजा विकार । |
9 | शांत | निर्वेद | संसार के भौतिक वस्तुओं के प्रति वैराग्य की भावना । |
मूल बातें – मूलतः रसों की संख्या नौ (9) ही मानी गई है, पर बाद में चलकर दो और रसों की कल्पना की गई । अब रसों की संख्या ग्यारह (11) हो गई है। जो निम्नलिखित है – | |||
10 | वात्सल्य | वत्सल | संतान का माता – पिता के प्रति प्रेम । |
11 | भक्ति | भगवद रति | ईश्वर के प्रति प्रेम भाव । |
” Ras in hindi “
विभाव
विभाव किसे कहते हैं?
जिन कारणों से हृदय में विद्यमान स्थायी भाव जागृत होते हैं । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जो व्यक्ति या वस्तु किसी के मन के भावों को प्रेरित या जागृत करते हैं। उन्हें विभाव कहते हैं ।
विभाव कितने प्रकार के होते हैं ?
विभाव दो प्रकार के होते हैं –
- आलम्बन विभाव – वे विभाव होते हैं जो मन के भावों को जागृत करते हैं या जिसे देखकर मन के भाव जागृत होते हैं।
- उद्दीपन विभाव – वे विभाव होते हैं किसे देखकर मन के स्थाई भाव जागृत होते हैं । इसका केंद्र स्थायी भाव होते हैं।
” Ras in hindi “
अनुभाव
अनुभाव क्या है ?
स्थायी भाव जागृत होने पर भाव के आश्रय में जो चेष्टायें होती हैं या रस के उत्पन्न होने पर , उसकी पुष्टि करने के लिए जो भाव जागृत होते हैं , वही भाव “अनुभाव” कहलाती हैं।
” Ras in hindi “
संचारी भाव
स्थायी भाव के जागने और रस रूप में बदलने तक बीच-बीच में अनेक भाव आते जाते हैं या हम कह सकते हैं कि ये भाव स्थायी भावो को अधिक पुष्टि करते हैं। इन्हीं भावों को संचारी भाव कहते हैं ।
हाव – भाव के विभिन्न रूप संचारी भाव ही होते है । इनकी संख्या 33 होती हैं।
१। विर्वेद | ७। आवेग | १३। दैन्य | १९। श्रम | २५। अपस्मार | ३१। उत्सुकता |
२। उग्रता | ८। मोह | १४। विबोध | २०। स्वप्न | २६। अविहित्य | ३२। संत्रास |
३। मरण | ९। आलस्य | १५। अमर्ष | २१। निद्रा | २७। व्याधि | ३३। चपलता |
४। उन्माद | १०। शंका | १६। स्मृति | २२। मति | २८। घृति | |
५। लज्जा | ११। हर्ष | १७। असूया | २३। विषाद | २९। जड़ता | |
६। ग्लानि | १२। चिंता | १८। वितर्क | २४। मद | ३०। गर्व |
” Ras in hindi “
रसो के प्रकार –
मुख्यतः रसो की संख्या 11 है। आइये तनिक विस्तार से उदहारण सहित इनको समझते हैं।
1.शृंगार रस –
हृदय में विद्यमान रति स्थायी भाव, विभाव, अनुभव और संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त होकर श्रृंगार रस बनता है। यह संयोग और वियोग दो रूपों में प्रकट होता है ।श्रृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है। शृंगार रस के अंग निम्न प्रकार हैं-
क । संयोग श्रृंगार – जब नायक व् नायिका के बीच मिलन का अवसर होता है। तब इसे संयोग श्रृंगार के रूप में देखा जाता है।
ख। वियोग श्रृंगार – जब नायक व् नायिका परस्पर मिल न पाए या यूँ कहें कि मिलन के आभाव में दुखी हो , तब यह वियोग श्रृंगार का जन्म होता है।
उदहारण –
१। कहत नटत रीझत , खीझत , मिळत , खिलत, लजियात ।
भरे भौन में करत है नैननु ही सब बात।
२। प्रीति नदी मै पाऊँ न बोरयो, दृस्टि न रूप पारगी ।
सूरदास अबला हम भोरी , गुर चांटी ज्यों पागी ।।
2.हास्य रस –
हृदय में विद्यमान हास, स्थानी भाव, विभाव, अनुभव और संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त होकर हास्य रस, का रूप ग्रहण करता है। या दूसरे शब्दों में ये कहें कि किसी व्यक्ति या वास्तु की अनोखी विकृति, रूप , वेशभूषा, वाणी आदि से उत्पन्न हुआ मनोरंजन या हंसी हास्य रस की श्रेणी में आते हैं।
उदाहरण –
१। नाश हो इतिहास का, सन् के समन्दर बह गये ।
मर गये वे लोग, रोने के लिए हम रह गए ॥
२। कब सौ टेरत दीन हवे होत न श्याम सहाय ,
तुमहू लगी जगद्गुरु जग नायक जग वाय।।
३। छुअत , सु टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ।
3.करुण रस –
विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से सहृदयों के हृदय में विद्यमान शोक स्थायी भाव से करुण रस बनता है या किसी प्रिय वस्तु के नष्ट हो जाने पर करुण व्यथा उपजती है।
उदाहरण-
१। बन्धुन को सोच तजि, तजि गुरुकुल को नेह ।
हा सुशील सुत किमि कियो, अनत लोक में गेह ॥
२। छाया मत छूना मन , होगा दुःख दूना ।
३। कौरवो का श्राद्ध करने के लिए, या कि रोने को चिता के सामने, शेष अब है रह गया कोई नहीं, एक वृद्धा, एक अंधे के सिवा ।।
४। मिला कहाँ वो सुख जिसका मई स्वप्न देखकर जग गया ।
आलिंगन में आते आते मुस्कुरा के जो भाग गया।।
५। रानी विधवा हुई, हाय विधि को भी दया नहीं आई ।।
६। साथ दो बच्चे भी हैं, सदा हाथ फैलाये ,
बाएं से वे मलते हुए पेट को चलते ,
और दाहिना दया दृस्टि पाने की और बढ़ाये ।।
4.वीर रस –
सहृदयों के हृदय में विद्यमान उत्साह स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से वीर रस रुप ग्रहण करता है। या हम ये कह सकते हैं कि जब कोई युद्ध या भयंकर या दुष्कर कार्य करने के लिए हमारे ह्रदय मे एक उत्साह का संचार होता है, उसी अनुभूति से वीर रस की उत्पति होती है।
वीर रस चार प्रकार के देखे जाते हैं –
- युद्धवीर
- दानवीर
- दयावीर
- धर्मवीर
उदाहरण-
१। करता हुआ वध वैरियों का वैर-शोधन के लिए ।
रण मध्य वह फिरने लगा अति दिव्य द्युति धारण किए ।।
उस काल जिस-जिस ओर भी संग्राम करने वह गया ।
भगते हुए अरि वृन्द से मैदान खाली हो गया ।
२। हे सारथे! हैं द्रोण क्या, देवेंद्र भी आकर अड़ें,
है खेल क्षत्रिय बालकों का व्यूहभेदन कर लड़ें।
मैं सत्य कहता हूँ सखे ! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा मानो मुझे ।।
३। “रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था।”
5.रौद्र रस–
विभाव, अनुभाव संचारी भावों के संयोग अभिव्यक्ति क्रोध स्थायी भाव रौद्र रस कहलाता है । दूसरे शब्दों मे जब किसी के द्वारा किये गए अपमान या निंदा से क्रोध का भाव उत्पन्न होता है तो वही रौद्र रस की उत्पति होते है।
उदाहरण –
१। कार्य में योग दिया भी होगा जिसने,
या सगर्व यह पाप किया भी होगा जिसने,
या जिसने यह देख लिया हर धनु का खंडन,
अभी करूगा देख, उसी के धनु का खंडन ।
शठ शीघ्र बता उसको अभी जिसने धनुष का खंडन किया ।
तो परशुराम मैं हूँ नहीं यदि उसको दण्ड न दिया ॥
२। “भाखै लखन कुटिल भई भौंहें।
रद-पट फरकत नयन रिसौंहें ॥ ”
३। “जगी उसी क्षण विद्युतज्ज्वाला,
गरज उठे होकर वे क्रुद्ध ‘
आज काल के भी विरुद्ध है।
युद्ध-युद्ध बस मेरा युद्ध ।”
४। “उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।”
6. भयानक रस –
विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त होकर सहृदय के हृदय में विद्यमान भय, स्थायीभाव भयानक रस बनता है। या हम ये कहें कि किसी भयानक या हानिकारक वस्तु या प्राणी को देखकर उत्पन्न भय का भाव ही भयानक रस की उत्पति करता है।
उदाहरण-
१। ते झटपट बाज लखि,
भूल्यो सकल प्रपंच कम्पित तन,
व्याकुल नयन, लावक हिल्यो न रंच ॥
२। “एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूर्च्छा खाय ॥ ”
7.वीभत्स रस –
हृदय में विद्यमान घृणा स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त होकर वीभत्स रस का रूप ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों मे वीभत्स वस्तु या प्राणी को देखकर या उनके बारे मे सुनकर जो घृणा का भाव मन मे उत्पन्न होता है वही वीभत्स रस की उत्पत्ति करता है।
उदाहरण –
१। सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत ।
खींचत जीभहि स्यार अतिहि आनन्द उर घारत ।।
२। कहीं लाश बिखरी गलियों मे
कहीं चील बैठी लाशों मे ।।
8.शान्त रस –
हृदय में विद्यमान निर्वेद स्थायी भाव विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से अभिव्यक्त होकर शान्त रस बन जाता है अर्थात जब हम परमात्मा के स्वरुप का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तथा संसार के पल मे नष्ट होने वाले स्वरुप की पहचान कर लेते हैं तब मन शांत होकर उस ज्ञान का ही आनंद लेता है और इसी अनुभव को शांत रस की संज्ञा दी गई है।
उदहारण –
१। अब प्रभु कृपा करौ एहि भांति, सब तजि भजन करहुं दीन रति ।
9.अद्भुत रस –
विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त विस्मय स्थायी भाव अद्भुत रस कहलाता है अर्थात जब हम किसी आश्चयजनक वस्तु या व्यक्ति या प्राणी को देखते हैं तब हमारे मन मे जो विस्मय का भाव पनपता है, उसी अनुभूति को अद्भुत रस की संज्ञा दी जाती है।
उदाहरण –
१। अखिल भुवन चर-अचर सब, हरिमुख में लखि मातु ।
चकित भई गद्गद् वचन, , बिकसित दृग पुलकातु ॥
२। ” लीन्हों उखारि पहार विसाल, चल्यो तेहि काल विलंब न लायो।
मारुत नन्दन मारुत को मन को, खगराज को बेगि लजायो।।”
10.वत्सल रस –
सहृदय के हृदय में विद्यमान वात्सल्य भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से अभिव्यक्त होकर, वत्सल रस बनता है अर्थात संतान और माता – पिता के बीच जो प्रेम, स्नेह या मोह की उत्पत्ति होती है उसी वात्सल्य को ‘वात्सल्य रस’ की संज्ञा दी गई है।
उदाहरण-
१। माँ , फिर एक किलक दूरागत गूंज उठी वह कुटिया सूनी ।
माँ उठ दौड़ी भरे हृदय में लेकर चत्कंठा दूनी ॥
लुटरी खुली अकल, रज धूसर बाहें आकर लिपट गईं।
निशा तापसी को जलने को धधक उठी बुझती धूनी ॥.
२। पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
३। आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद भरी।।
४। “तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान।
मृतक में भी डाल देगी जान।”
11.भक्ति रस –
जब मानव ह्रदय में ईश्वर के प्रति प्रेम भावना जागृत होती है तो वो भक्त बन उसी परमपिता की आराधना में लीन हो जाता है। इसी प्रेम रस के पान की सुखद अनुभूति को ही भक्ति रस की संज्ञा दी जाती है।
उदाहरण –
“अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेलि बोई ।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई ॥
” Ras in hindi “
अभ्यास के लिए प्रश्न – BASED ON CBSE EXAMINATION
- ‘वीर रस’ का विभाव लिखिए ?
- ‘रौद्र रस’ का उदहारण दें?
- ‘हास्य’ रस का उदाहरण दें ?
- ‘श्रृंगार रस’ के स्थायीभाव का नाम लिखिए ?
- ‘उत्साह’ किस रस का स्थायीभाव है ?
- ‘क्रोध’ किस रस का स्थायीभाव है ?
- श्रृंगार रस के दो भेद लिखें?
- ‘वीर रस’ का उद्दीपन विभाव क्या है?
- हास्य रस का उदाहरण दीजिये ?
- रस की पहचान करें – लाला तुम किस चक्की का कहते हो ,
इतने महंगे रासन में भी , तुम तोंद बढ़ाये जाते हो।
अलंकार का सम्पूर्ण परिचय (CBSE) – विस्तार से पढ़े
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