FIR full form

FIR full form के इस ब्लॉग में आपका स्वागत है। हम में से कई ने इस शब्द को सुना होगा पर बहुत ही काम लोग इसके बारे में सठिक जानकारी रखते हैं। हमने इस ब्लॉग में इस FIR से समबन्धित समस्त जानकारी को आपतक पहुंचने की कोशिस की है। तो चलिए शुरुआत करते है। सबसे पहले इस FIR full फॉर्म को जानने का प्रयास करते हैं।

FIR full form अर्थात

F– First

I– Information

R– Report

First Information Report को हिंदी में प्रथम सुचना रिपोर्ट भी कहते हैं। आइये इसके कुछ मुख्य तथ्यों को जानते हैं।

  • ये पुलिस संगठन से जुड़ा शब्द है।
  • ये भारत के साथ साथ म्यांमार, पाकिस्तान और बांग्लादेश आदि में भी इस शब्द का इस्तेमाल होता है।
  • दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी इसका इस्तेमाल आदिकारिक तौर पर किया जाता है।
  • जब भी कोई अपराध की सुचना पुलिस को मिलती है तो वह सबसे पहले प्रथम सुचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करती है, ताकि उसपर नियमबद्ध तौर पर कार्यवाही की जा सके।
  • ये प्रथम सुचना रिपोर्ट (FIR) कोई भी व्यक्ति पुलिस के पास दर्ज करा सकता है जो किसी अप्रिय घटना से त्रस्त हुआ हो।
  • शिकायत दर्ज करने के पश्चात शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर लिए जाते हैं और मांग करने पर पुलिस उसे उस FIR की कॉपी भी देती है।

FIR full form

What is an FIR?

एफआईआर (FIR) क्या है ?

प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) एक ऐसा लिखित दस्तावेज है जो पुलिस तैयार करती है। जब कोई पीड़ित पुलिस के पास कोई शिकायत लेकर आता है तो पुलिस उस सुचना के आधार पर एक लिखित रिपोर्ट तैयार करती है। इस रिपोर्ट में वही लिखा जाता है जो पीड़ित व्यक्ति ने पुलिस को बताया था। ये रिपोर्ट लिखने के पश्चात उस रपोट पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर लिए जाते है। ये रिपोर्ट के आधार पर ही पुलिस की जाँच की शुरुआत होती है।

इस रपोट में दो तरह के अपराधों की चर्चा की जाती है।

  1. संज्ञेय अपराध – इस अपराध को इंग्लिश में Cognizable Offence कहते हैं। ऐसे मामलों में पुलिस बहुत ही जल्दी हरकत में आ जाती है। बिना किसी न्यालय की आज्ञा के वे अपराधी को बंधी बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें किसी वारंट की आवशयकता नहीं होती है। ये कार्यवाही तत्काल की जा सकती है। ये बहुत ही गंभीर अपराध होते हैं। इन अपराधों में हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी, दहेज हत्या आदि आते हैं।
  2. असंज्ञेय अपराध – इस अपराध को इंग्लिश में non-cognizable offence  कहते हैं। इन अपराधों में पुलिस की कार्यवाही में थोड़ा वक्त लगता है। पुलिस सबसे पहले न्यालय से आज्ञा लेती है फिर वारंट लेकर ही गिरफ़्तारी की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। ये अपराध संज्ञेय अपराध की भांति संगीन नहीं होते। इन  में जालसाजी, धोखाधड़ी, मानहानि, सार्वजनिक उपद्रव आदि के अपराध असंज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आते हैं।

FIR full form

Why is FIR important?

importance of fir in criminal trial | importance of fir in Hindi

क्यों जरूरी है एफआईआर (FIR) ?

  • ये न्यायिक प्रक्रिया की जाँच में शुरुआती कदम होता है। अगर आप न्याय पाना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले पुलिस के पास जाकर एफआईआर (FIR) दर्ज करना होगा।
  • फिर अपराध के सम्बन्ध में जानकारी है जो उस क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक के प्रभारी निरीक्षक को आगे की कार्यवाही में मदद करती है।
  • इस दस्तावेज में मामले से संबंधित तथ्यों, परिस्थितियों और घटनाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जाती है जो न्यायिक प्राधिकारियों को आवशयक सुचना प्रदान करता है।
  • इसमें कोई खामी या गलती होती है तो आरोपी न्यायिक प्रक्रिया से बच जाता है इसलिए इसका बहुत महत्त्व होता है।
  • FIR किसी भी अपराध के संज्ञान की कार्रवाई को नियंत्रित करता है।

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Who can lodge an FIR?

 एफआईआर (FIR) कौन दर्ज करा सकता है ?

  • अगर आप किसी घटना या अपराध के बारे में जानते हैं
  • आप उस अपराध के शिकार हुए हैं।
  • एक पुलिस अफसर को संज्ञेय अपराध की जानकारी मिली है या उसने खुद ही उसे देखा है तो वह अपनी ओर से भी इसे दर्ज कर सकता है।

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What is the procedure of filing an FIR?

आप किसी भी घटना या अपराध के खिलाफ धारा 154 में निर्धारित आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 तहत एफआईआर (FIR) दर्ज करा सकते हैं। आपको  सादे कागज पर निम्न बातों व तथ्यों को लिखना है।

  1. सबसे पहले आप अपराध की तिथि, समय और स्थान का उल्लेख करें।
  2. पीड़ित का नाम
  3. घटना का सम्पूर्ण विवरण तारीख और समय के साथ जरूर दें ।
  4. अगर आप जानते हैं तो किसी संदिग्घ का विवरण या नाम आप जरूर दें।
  5. अंत में तारीख और स्थान लिखकर हस्ताक्षर जरूर करें।
  6. अनपढ़ व्यक्ति हस्ताक्षर के बजाय अंगूठे का निशान भी लगा सकते हैं।
  7. आप हर तथ्य को सठिक देने का प्रयास करें अन्यथा आप ही इसके नुकसान के भागीदार होंगे।
  8. एफआईआर (FIR) की कॉपी आप पुलिस अधिकारी के द्वारा सत्यापित करने के बाद जरूर मांगे।

नोट – एफआईआर (FIR) दर्ज करते वक़्त ये न करें

  • कभी भी कोई झूठी शिकायत दर्ज करने की कोसिस न करें । ये एक दंडनीय अपराध है ।
  • अगर आपने शिकायत से पुलिस गुमराह होती है तो आप पर गलत जानकारी देने के जुर्म में मुकदमा तक चलाया जा सकता है।
  • हमेशा याद रखें कि शिकायत में कोई भी बात बढ़ा चढ़ा कर न की गई हो तथा बातें आप बिलकुल स्पष्ट रखें।

क्या पुलिस मेरी शिकायत दर्ज करने से इंकार कर सकती है?

जी हाँ, पुलिस के पास ये अधिकार है कि वह आपकी शिकायत दर्ज करने से इंकार कर सकती है। पर ये तभी हो सकता है जब ये मामले उसके क्षेत्रीय अधिकार से बाहर हो। अन्यथा पुलिस आपकी शिकायत लेने से इंकार नहीं कर सकती।


What can you do if your FIR is not registered?

What happens if police don’t register FIR? | What are the remedies available to a party on non registration of FIR?

अगर आपकी फिर दर्ज नहीं होती है तो आप क्या करें ?

अगर आपकी शिकायत पुलिस के द्वारा दर्ज नहीं की जाती है या पुलिस के द्वारा दर्ज करने से इंकार कर दिया जाता है तो आप के पास शिकायत दर्ज करने के और चार रास्ते हैं। आप निम्नलिखित तरीके से अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

  1. पुलिस अधीक्षक या वरिष्ठ अधिकारी (Superintendent of Police or Senior Officer)– आप इनके पास शिकायत दर्ज करा सकते है। ये सीआरपीसी की धारा 154 की धारा 3 और धारा 36 के तहत आता हैं। आप इनके पास सीधे न जाकर डाक द्वारा अपनी शिकायत भेज सकते हैं। पुलिस अधीक्षक के पास ये अधिकार है कि वे स्वं इन मामलों की जाँच कर सकते हैं और जरुरत पड़ी तो वे किसी अन्य पुलिस अधिकारी को इन मामलों की जाँच के निर्देश भी दे सकते हैं। ये बहुत ही सठिक और कारगर तरीका है। कोई भी सामान्य जन इस विधि को अपना कर न्याय की उम्मीद कर सकता है।
  2. मानवाधिकार आयोग – इस आयोग में शिकायत बहुत ही आसानी से की जा सकती है। आप उन्हें फ़ोन करके भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इनकी सबसे बड़ी सुविधा है कि आप इनके साथ ऑनलाइन भी संपर्क कर सकते हैं तथा ऑनलाइन पर मौजूद शिकायत फॉर्म भर कर इसे दर्ज भी कर सकते हैं। पर याद रहे सबसे पहले आप पुलिस के पास FIR  दर्ज करने की कोसिस करें। अगर न हो, तभी ये रास्ता अपनाएं।
  3. मजिस्ट्रेट – अगर पुलिस आपकी शिकायत लेने से मन कर देती है तो आप निश्चित रूप से सम्बंधित मेजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकते हैं। ये सीआरपीसी, 1973 की धारा 190 के खंड 2 के तहत आपको सहूलियत प्रदान करता है। मेजिस्ट्रेट इस मामले की जाँच अपने स्तर पर करती है तथा पुलिस को भी हिदायत दे सकती है। मेजिस्ट्रेट के निर्देश पर पुलिस कार्यवाही की शुरुआत होती है जिससे न्याय प्रक्रिया में तेजी आती है।
  4. रिट याचिका–  आपके लिए ये जानना भी जरुरी है कि हमारे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत आप सीधे न्यायलय में रिट याचिका दायर कर सकते है। न्यायलय सीधे आपके शिकायत पर कारवाही कर सकती है। ये अधिकार हर नागरिक के पास है कि वो न्यायलय से किसी भी मामलों में जाँच करने के लिए आग्रह कर सकते है।

Frequently asked question (FAQ) – FIR
What is FIR under CRPC?

सीआरपीसी (CRPC) के तहत एफआईआर (FIR) क्या है ?

Answer- एफआईआर (FIR) पुलिस को दी जाने वाली पहली सुचना है या पुलिस को प्राप्त होने वाली पहली सुचना है जो लिखित तौर पर दर्ज की जाती है। ये सीआरपीसी (CRPC) धारा 154 के अंतर्गत आती है। ये किसी भी मामलों से जाँच के पहले लिया जाने वाला पहला कदम है।


What is the validity of FIR?

एफआईआर की वैधता क्या होती है ?

Answer- वास्तव एफआईआर की वैधता कभी समाप्त नहीं होती है। ये जाँच शुरू करने के पहले लिखी जाती है और जाँच पूरी होने पर ही न्यालय द्वारा इसपर निर्णय लिया जाता है। ये पुलिस के द्वारा निर्णय हो जाने के बाद भी रिकॉर्ड के तौर पर रखी जाती है।


What is a zero FIR?

जीरो एफआईआर क्या है?

Answer- जीरो एफआईआर (zero FIR) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इसमें पुलिस के अधिकार क्षेत्र के बाहर के मामले भी हो सकते है। पुलिस ऐसे मामलों की शिकायत लेने से इंकार नहीं कर सकती है। इसमें शिकायत तो लिख ली जाती है पर आपको ये शिकायत स्थानांतरित कराकर मामलों से सम्बंधित पुलिस थाने के पास ले जाना होगा। सम्बंधित पुलिस थाने के पास ही इसके जाँच के अधिकार होते है।


Can a FIR be Cancelled?

क्या एफआईआर रद्द की जा सकती है?

Answer- एफआईआर को आप रद्द नहीं कर सकते। अगर आपने पुलिस को इसको रद्द करने लिए आग्रह किया है तब भी पुलिस इसे रद्द नहीं करेगी। इन मामलों की पूरी जाँच होने के बाद भी पुलिस इसे रिकॉर्ड के तौर पर रख देती है।

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