Moral stories in Hindi

 Moral stories in Hindi | हिंदी में नैतिक कहानियाँ- Panchatantra Stories

पंचतंत्र की कहानियां

moral stories in Hindi में पंचतंत्र नैतिक कहानियों का एक संग्रह है, जो विभिन्न जानवरों और मानव पात्रों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को प्रकट और विश्लेषण करता है।

सभी कहानियों का महत्व उससे कहीं अधिक है,जितना कि बताया गया है।संस्कृत में पंडित विष्णु शर्मा ने मूल कहानियाँ लिखीं।

कुल मिलाकर चौरासी कहानियाँ थीं लेकिन साल दर साल कहानियों की संख्या में वृद्धि हुई है।

मूल कहानियों का अंग्रेजी और हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया था ताकि हर पाठक कहानियों को समझ सके और कहानियों में परिभाषित नैतिक मूल्यों को सीख सके।

पंचतंत्र की कहानियाँ सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए लाभकारी हैं। बच्चों के लिए पंचतंत्र की कहानियों को जानना और समझना जरूरी है। उन्हें कम उम्र में जीवन का नैतिक सीखने की जरूरत है।

इस अंश में पंचतंत्र की सभी महत्वपूर्ण कहानियां हैं। इस Moral stories in Hindi ब्लॉग में प्रयुक्त भाषा को सरल रखा गया है ताकि सभी आयु वर्ग के लोग कहानियों को आसानी से समझ सकें।

जैसे को तैसा 

moral stories

एक बार की बात है दीनानाथ और बाबूराम नाम के दो दोस्त एक छोटे से गांव में रहते थे। दीनानाथ गरीब थे, जबकि बाबूराम अमीर आदमी थे।

बाबूराम चतुर और लालची था और बड़ा झूठा भी, लेकिन दीनानाथ ने उस पर बहुत भरोसा किया।

एक दिन अपनी खराब स्थिति से तंग आकर दीनानाथ बाबूराम के पास गए और कहा, “बाबरम, मैंने शहर जाने और वहां कुछ पैसे कमाने का फैसला किया है।

मेरे पास इस सुंदर नक्काशीदार भारी लोहे की पट्टी के अलावा कुछ भी नहीं है। कृपया इसे तब तक रखें जब तक मैं लौट न आ जाऊँ।”

“ज़रूर दीनानाथ,” बाबूराम ने कहा, “छड़ी के बारे में चिंता मत करो। मैं इसे अपने स्टोररूम में सुरक्षित रखूंगा। मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं।

आप बड़े शहर जाओ और पैसा कमाओ।”दीनानाथ फिर शहर के लिए रवाना हो गए। वह वहाँ दो वर्षों तक रहा, और इस अवधि में उसने बहुत पैसा कमाया। फिर वह अपने गांव लौट आया।

अगले दिन वह बाबूराम से मिलने गया। बात करने के कुछ समय बाद दीनानाथ ने उससे कहा, “बाबूराम, छड़ी रखने के लिए धन्यवाद। अब कृपया इसे मुझे वापस दे दें।”

इस पर बाबूराम ने लम्बा मुँह बनाकर कहा,”दीनानाथ, मुझे वास्तव में बहुत खेद है। मैं तुम्हें लोहे की छड़ नहीं दे सकता, क्योंकि गोदाम में चूहों ने इसे खा लिया।”

दीनानाथ जानता था कि उसका दोस्त झूठ बोल रहा है, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसने बाबूराम को सबक सिखाने का फैसला किया।

अगले दिन, जब बाबूराम घर पर नहीं था, दीनानाथ का नौकर बाबूराम के घर गया और उसकी पत्नी से कहा, “बाबूराम साहब मेरे मालिक के घर पर हैं। वह अपने बेटे को वहाँ बुला रहे हैं।

कृपया उसे मेरे साथ भेजें।” तो बाबूराम का बेटा नौकर के पास चला गया।शाम को जब बाबूराम अपने घर लौटे, तो उन्होंने अपने बेटे को बुलाया, “बेटा, यहाँ आओ। देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ।”

इस पर बाबूराम की पत्नी ने उससे कहा, “तुम उसे क्यों बुला रहे हो? तुमने ही उसे दीनानाथ के घर बुलाया था। क्या वह तुम्हारे साथ नहीं लौटा?”

बाबूराम चिंतित हो गए। उसने अपनी पत्नी से कहा, “लेकिन, मैंने उसे नहीं बुलाया। तुमने उसे जाने क्यों दिया?”

फिर बाबूराम तुरंत दीनानाथ के घर गए और उनके बेटे के बारे में पूछताछ की।
दीनानाथ ने उदास चेहरे के साथ कहा, “क्षमा करें, बाबूराम, जब आपका बेटा मेरे घर के रास्ते में था, तो एक बाज आया और उसे अपने पंजों में उठा लिया।

मेरे नौकर के सामने बाज आपके बेटे को लेकर उड़ गया ।बाबूराम को इस पर विश्वास नहीं हुआ। अगले दिन उसने ग्राम पंचायत में जाकर मुखिया को पूरा मामला बताया |

मुखिया ने दीनानाथ को बुलाया और कहा, “दीनानाथ, एक बाज के लिए एक बच्चे के साथ उड़ना संभव नहीं है। मुझे बताओ कि छोटा बच्चा कहाँ है?”

दीनानाथ ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, जब चूहे लोहे की भारी छड़ को खा सकते हैं तो बाज बच्चे को लेकर क्यों नहीं उड़ सकता?” फिर दीनानाथ ने सारा मामला ग्राम प्रधान को बताया।

मुखिया ने बाबूराम से दीनानाथ को अपनी लोहे की छड़ लौटाने को कहा। बाबूराम को अपने इस कृत्य पर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उन्होंने कभी भी झूठ नहीं बोलने या किसी को धोखा नहीं देने का संकल्प लिया।

Moral : विश्वासघाती मित्रों से सावधान रहें।


Moral stories in Hindi 

साहसी ब्राह्मण

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moral stories in Hindi – एक बार एक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। वह अपनी आजीविका कमाने के लिए पूजा करता था। एक दिन उन्हें गाँव के सबसे धनी व्यक्ति की हवेली में पूजा करने का अवसर मिला।

उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उस धनी ने ब्राह्मण को दो युवा और स्वस्थ बछड़े दिए। उन्हें पाकर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ  वह उन्हें घर ले गया और एक शेड के नीचे बांध दिया।

वह बछड़ों से बहुत प्यार करता था और उनकी अच्छी देखभाल करता था।

एक रात एक चोर ब्राह्मण की कुटिया के पास से गुजरा। जब उसने दो स्वस्थ बछड़ों को देखा, तो उसने सोचा, ‘ये बछड़े बहुत स्वस्थ हैं। मुझे उन्हें किसी भी कीमत पर चुरा लेना चाहिए।’

जब वह शेड में दाखिल हुए तो धुएं का गुबार था। अगले पल, एक बदसूरत दिखने वाला
चोर के सामने दानव प्रकट हुआ। चोर बुरी तरह डर गया।

दानव ने दहाड़ते हुए कहा, “हाहाहा.. मुझे बहुत भूख लगी है। मैं तुम्हें खाऊंगा।”

चोर डर से कांप उठा। उसने राक्षस से कहा, “कृपया मुझे मत खाओ। मैं एक गरीब चोर हूं। तुम मोटे ब्राह्मण को खा सकते हो। वह बहुत स्वादिष्ट भी है। मुझे बछड़ों को लेने दो और जाने दो।”

“ठीक है,” दानव ने कहा। “लेकिन मेरी प्रतीक्षा करो। पहले मैं जाकर ब्राह्मण को खाऊंगा, नहीं तो बछड़े चिल्लाकर उस ब्राह्मण को जगा सकते हैं।

“नहीं, कृपया मुझे बछड़ों को ले जाने दो, नहीं तो ब्राह्मण उठकर मुझे पकड़ लेगा,” चोर ने कहा। देखते ही देखते दोनों के बीच बहस हो गई। तेज आवाजों ने ब्राह्मण को जगा दिया।

उसने अपनी खिड़की से बाहर देखा और दानव और चोर को बहस करते देखा। वह तुरंत समझ गया कि क्या हुआ होगा। उसने भगवान से उसे बचाने की प्रार्थना की।

तब ब्राह्मण ने कुछ साहस किया। उसने अपनी हथेली में कुछ पवित्र जल लिया और उसे दानव पर फेंक दिया। वहां से दानव गायब हो गया। तब ब्राह्मण ने एक डंडा लिया और चोर के पीछे भागा।

चोर जान बचाने के लिए भागा। इस प्रकार, ब्राह्मण ने अपने और अपने दोनों बछड़ों की जान बचाई।

Moral : साहसी होना चाहिए।


Moral stories for kids in Hindi 

चतुर मछली

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moral stories in Hindi- एक बार एक नदी में, तीन मछलियाँ रहती थीं। वे सबसे अच्छे दोस्त थे और उनके अपने विश्वास थे। पहली मछली मुसीबत आने पर +सामना करने में विश्वास करती थी।

दूसरी मछली का मानना ​​था कि समझदारी से काम लेना चाहिए और जरूरत पड़ने पर कार्रवाई करनी चाहिए और तीसरी मछली का मानना ​​था कि सब कुछ भाग्य के अनुसार होता है।

एक दिन तीनों दोस्त नदी में तैर रहे थे। अचानक, उन्होंने देखा कि दो मछुआरे नदी के किनारे बैठे बात कर रहे हैं। वे उनकी बातचीत सुनने के लिए नदी के किनारे गए।

एक मछुआरे ने कहा, “इस नदी में बहुत सारी मछलियाँ हैं। अगर हम उन्हें पकड़ कर बाजार में बेच दें
हम बहुत लाभ कमा सकते हैं। काफी समय से हमने ज्यादा कमाई नहीं की है। हमें उन्हें पकड़ने कब आना चाहिए?”

दूसरे मछुआरे ने जवाब दिया, “हम कल सुबह मछली पकड़ने आएंगे। यहां हमारी जान को खतरा है।”

उनकी बातचीत सुनकर दूसरी मछली ने अपने दोस्तों से कहा, “दोस्तों, मुझे लगता है कि हमें इस जगह को छोड़कर किसी सुरक्षित जगह पर जाना चाहिए।”

इस पर पहली मछली बोली, “मुझे लगता है कि हमें यहीं रहना चाहिए। यह जगह हमारे पूर्वजों की है।”

तीसरी मछली पहली मछली की बात मान गई। दूसरी मछली ने फिर उन्हें समझाने की कोशिश की,

“मुझे पता है कि हमारे पूर्वज यहां रहते थे। लेकिन हमें अपनी जान बचाने के लिए इस जगह को छोड़ना होगा। जरा गहराई से सोचें। मैं नदी की अन्य मछलियों को इस बारे में सूचित करने जा रहा हूं।

देर शाम तक पहली और तीसरी मछली को यकीन नहीं हुआ और वह जगह नहीं छोड़ी। दूसरी मछली नदी की किसी और मछली के साथ उन्हें अलविदा कह कर नदी में किसी और जगह चली गई।

अगली सुबह, मछुआरे नदी पर आए और अपना जाल फेंक दिया। भागने के उनके प्रयास के बावजूद, पहली और तीसरी दोनों मछलियाँ अंततः जाल में फंस गईं।

पहली मछली ने एक शानदार विचार सोचा। जब मछुआरे उसे जाल से बाहर निकालने वाले थे तो उसने मरने का नाटक किया।

मछुआरों ने उसे वापस नदी में फेंक दिया, क्योंकि उनके पास मरी हुई मछली का कोई उपयोग नहीं था।

तीसरी मछली ने जाल से बाहर निकलने के लिए काफी मशक्कत की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसने सोचा, ‘तो यह मेरे जीवन का अंत है। अगर मैंने अपने दोस्त की बातें सुन ली होती!’

इस प्रकार पहली और दूसरी मछलियाँ अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता के कारण मृत्यु से बच गईं।

Moral: व्यक्ति को या तो दूरदर्शी या बुद्धिमान होना चाहिए।


Moral stories in Hindi

गायक गधा

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moral stories in Hindi – एक बार की बात है। एक गांव में एक धोबी रहता था।

उसके पास पगलू नाम का एक गधा था।पगलू दिन भर कड़ी मेहनत करता था, लेकिन धोबी ने उसे खाने के लिए बहुत कम खाना दिया क्योंकि वह केवल इतना ही खर्च कर सकता था।

इसलिए पगलू दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा था। धोबी बहुत चिंतित हो गया। उसने एक विचार सोचा।

उसने गांव के खेतों में घूमने के लिए रात में पगलू को खाली छोड़ने का फैसला किया ताकि वह अपने दिल की तृप्ति खा सके।

एक रात जब पगलू गांव में घूम रहा था तो उसकी मुलाकात चमेली नाम के एक सियार से हुई। जल्द ही वे बात करने लगे और अच्छे दोस्त बन गए।

जैसे ही दोनों दोस्त गाँव में घूम रहे थे, वे एक बड़े खेत में आ गए जहाँ रसीले और बड़े कद्दू उगते थे। पगलू और चमेली ने खेत में प्रवेश किया और भरपेट भोजन किया।

फिर उन्होंने एक दूसरे को अलविदा कहा और अपने घरों को लौट गए।

अब यह रोज की दिनचर्या हो गई थी। दोनों दोस्त रात में एक दूसरे से मिलते और खूब मजा करते।
वे कद्दू के खेत में प्रवेश करते और उन्हें खाने का आनंद लेते।

एक रात, कद्दू खाकर पगलू ने चमेली से कहा, “चमेली, देखो! रात कितनी सुंदर है। मुझे जोर से गाने का मन करता है।”

बहुत चतुर और बुद्धिमान चमेली ने पगलू से कहा, “डब्बू, आप क्या कह रहे हैं? आपको इस समय ऐसा नहीं करना चाहिए।

आपकी आवाज मैदान के पहरेदारों को आकर्षित करेगी और वे हमें बुरी तरह से कोड़े मारेंगे।”

पगलू ने कहा, “नहीं, चमेली, ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं इसके बारे में निश्चित हूं। मुझे गाने दो।”

चमेली बहुत चिंतित हो गई। उसने कहा, “पगलू, आपकी आवाज इतनी अच्छी नहीं है। कृपया इस विचार को छोड़ दें। चलो घर चलते हैं।”

इस पर पगलू भड़क गए। वह चिल्लाया, “गाने के बारे में आप क्या जानते हैं? मैं बहुत अच्छा गायक हूं। अब मैं किसी भी कीमत पर गाऊंगा। मुझे कोई नहीं रोक सकता।”

“ठीक है, अगर आप गाने के लिए इतने दृढ़ हैं, तो गाना शुरू करने से पहले मैदान से बाहर मुझे जाने दो,” चमेली ने कहाऔर मैदान छोड़ दिया।

पगलू जोर-जोर से चिल्लाने लगा। मैदान की रखवाली करने वाले पहरेदार अपनी डंडों के साथ आए और पगलू को बुरी तरह से पीटा।

पगलू बुरी तरह चिल्लाया लेकिन उसकी मदद करने वाला कोई नहीं था। जब पगलू मैदान से बाहर आया, उसने देखा कि चमेली बाहर उसका इंतजार कर रही है।

चमेली ने कहा, “पगलू, मैंने तुमसे कहा था कि गाओ मत लेकिन तुमने मेरी सलाह नहीं मानी। अब परिणाम देखें।”

पगलू को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने चमेली से कहा, “हां, मुझे आपकी सलाह सुननी चाहिए थी। मुझे खेद है। चलो घर चलते हैं।”

दोनों दोस्त अपने घर के लिए निकल पड़े।

Moral:  हमेशा अच्छी सलाह सुननी चाहिए।


समझदार  चूहा

moral stories in Hindi – एक बार एक जंगल पर एक बड़े और भयंकर शेर का शासन था। जंगल के सभी जानवर उससे डरते थे। एक दोपहर भारी भोजन करने के बाद शेर सो गया।

जल्द ही उसने जोर से खर्राटे लेना शुरू कर दिया। जिस स्थान पर शेर झपकी ले रहा था, उसके पास एक चूहे का छेद था।

छेद का मालिक, एक छोटा चूहा, शेर के खर्राटे से परेशान हो गया। वह यह देखने के लिए बाहर आया कि आवाज कहां से आ रही है।

चूहे ने शेर को सोते और जोर से खर्राटे लेते देखा। वह शेर की पीठ पर चढ़ गया और कूदने लगा। शेर को गुदगुदी महसूस हुई। उसने अपनी पूंछ को अपनी पीठ पर घुमाया और वापस सो गया।

तभी चूहा शेर की नाक पर चढ़ गया और उसकी मूंछों को गुदगुदी करने लगा। शेर जाग गया और चूहे को देखकर बहुत गुस्सा आया।

उसने जल्दी से चूहे को अपने शक्तिशाली पंजे में पकड़ लिया। शेर ने फिर चूहे से कहा, “अरे नटखट चूहा, परेशान करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई।

अब मैं तुम्हें खाऊंगा। आपको राजा को परेशान करने की सजा मिलेगी।”

चूहा डर गया। उसने राजा के सामने निवेदन किया, “मुझे बहुत खेद है, महामहिम। कृपया मुझे क्षमा करें। मैं वादा करता हूं कि मैं आपको कभी परेशान नहीं करूंगा।

यदि आप आज मुझे छोड़ देते हैं, तो मैं आपको एक दिन निश्चित रूप से इसका बदला चुका दूंगा।”

यह सुनकर शेर मन ही मन हँस पड़ा। उसने कहा, “तुम जैसा छोटा चूहा मेरी मदद करेगा! हाहा !! मैं तुम्हें इसलिए नहीं छोड़ रहा हूं क्योंकि तुम एक दिन मेरी मदद करोगे,

बल्कि इसलिए कि तुमने मुझे इतना हंसाया।” इतना कह कर शेर ने उसे मुक्त कर दिया और चूहा भाग गया।

इस घटना के कई दिनों बाद, शहर के शिकारियों का एक समूह एक शेर को पकड़ने के लिए जंगल में आया, ताकि वे उसे एक सर्कस को बेच सकें।

उन्होंने जाल बिछाया और दुर्भाग्य से जंगल का राजा शेर उसमें फंस गया। शेर ने खुद को बड़े जाल से छुड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

यह उसके लिए बहुत कठिन था। डर के मारे जोर जोर से गुर्राया। यह सुनकर चूहा अपने छेद से बाहर आ गया। उसने शेर को जाल में फंसा देखा।

वह उसके पास गया और उससे पूछा कि वह कैसे फंस गया। शेर ने उसे पूरी कहानी सुनाई। चूहे ने शेर से कहा, “चिंता मत करो, मैं अपने तेज दांतों से इस जाल को आसानी से कुतर सकता हूं।

आपको डरने की जरूरत नहीं है।” चूहे ने जल्दी से जाल के धागों को कुतर दिया और शेर जाल से मुक्त हो गया। चूहे ने शेर से कहा, “उस दिन तुम मुझ पर हंसे थे।

मैंने तुमसे कहा था कि किसी दिन मैं तुम्हारी दया का प्रतिफल अवश्य दूंगा। अब, तुम देखो मेरे जैसा छोटा और छोटा प्राणी भी कभी-कभी कैसे मददगार हो सकता है।”

“हाँ, मेरे दोस्त,” शेर ने चूहे से कहा। “अब से तुम मेरे दोस्त हो। तुमने आज मुझे एक सबक सिखाया। अब मैं जंगल के किसी भी जानवर को कभी परेशान नहीं करूंगा। हम सब खुशी से रहेंगे।”

Moral: हमें दयालु होना चाहिए।


अज्ञात बीमारी

moral stories in Hindi – एक बार विजयनगर में घोड़ों को एक अज्ञात बीमारी का सामना करना पड़ा। महंगे और अच्छी नस्ल के घोड़ों के मालिक सभी लोगों ने उन्हें बहुत कम कीमत पर बेचना शुरू कर दिया।

शहर में चारों ओर दहशत थी क्योंकि पता चला कि घोड़े उस अज्ञात बीमारी से मर रहे हैं और यह घोड़ों के संपर्क में आने वाले लोगों में फैल रहा है। कई सैनिक अपने घोड़े बेचने लगे।

जब कृष्णदेव राय को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने अपने सेवकों से कहा कि वे शाही अस्तबल में घोड़ों की अच्छी देखभाल करें। लेकिन एक नौकर ने कहा, “महाराज, शाही अस्तबल में घोड़े पूर्ण स्वास्थ्य में हैं।”

राजा भ्रमित था। उसने तेनाली रमन को बुलाया और कहा, “तेनाली, राज्य में घोड़े अज्ञात बीमारी के डर से बेचे जा रहे हैं। लेकिन शाही अस्तबल में घोड़े स्वस्थ हैं। मैं चाहता हूं कि आप इसके बारे में पता करें।”

तो तेनाली रमन ने जाँच शुरू की। जो कुछ हो रहा था, उसके कुछ सुराग खोजने के लिए वह शहर में घूमने लगा। कुछ दिनों बाद, उसने कुछ लोगों को पकड़ लिया और उन्हें शाही दरबार में लाया।

राजा ने पुरुषों से पूछा, “जब तुम पकड़े गए तो तुम क्या कर रहे थे?” “महामहिम, हम बीमार घोड़ों के बारे में बात कर रहे थे।”

“क्या तुमने कोई बीमार घोड़ा देखा है?” राजा से पूछा। “नहीं, महामहिम, हमने कोई बीमार घोड़ा नहीं देखा है। हमने केवल उनके बारे में सुना है।”

राजा को एहसास हुआ कि किसी ने बीमार घोड़ों की अफवाह फैला दी है। दरअसल घोड़ों पर किसी बीमारी का असर नहीं हुआ था।

इसलिए राजा ने तेनाली रमन को इस बारे में पूछताछ करने के लिए बुलाया। दो दिन बाद तेनाली रमन ने एक जोड़े को शाही दरबार में पेश किया। उसने राजा से कहा, “महाराज, यह जोड़ा पड़ोसी राज्य का है।”

यह सुनकर राजा ने क्रोध में दंपत्ति की ओर मुड़कर पूछा, “तुम मेरे राज्य में क्या कर रहे हो?”
दंपति चुप रहे। तेनाली रमन ने कहा, “महाराज, मैं आपको इसके बारे में सब कुछ बता दूंगा।

हमारे पड़ोसी राज्य के राजा ने उन्हें बीमार घोड़ों की अफवाह फैलाने के लिए यहां भेजा था। इस तरह, हमारे राज्य के लोग और सैनिक उनके घोड़े कम कीमत पर बेच देंगे।

जासूस इन घोड़ों को कम कीमत पर खरीदेंगे ताकि उनकी शाही घुड़सवार सेना में इस्तेमाल किया जा सके। दूसरी ओर, हमारे सैनिक निराश होंगे और आत्मविश्वास खो देंगे।

आत्मविश्वास की कमी हमारे सैनिकों को कमजोर कर देगी। इस प्रकार, पड़ोसी राजा हमला करेगा

हम पर जीत।” “ओह! यह वास्तव में एक खतरनाक योजना थी!” राजा ने कहा।

तब राजा ने अपने आदमियों को अगले दिन जासूसों को मारने का आदेश दिया। उन्होंने घोषणा की कि झूठी अफवाहों के कारण कोई भी अपने घोड़ों को नहीं बेचेगा।

राजा ने तेनाली रमन को उसके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया और पुरस्कृत किया ।

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Moral stories of Tenali Raman

असली अपराधी

moral stories in Hindi – एक दिन, हमेशा की तरह, शाही दरबार आयोजित किया गया था। राजा, उनके दरबारी और तेनाली रामन वहाँ उपस्थित थे।

वहाँ एक चरवाहा याचना लेकर आया। उन्होंने कहा, “महाराज, कृपया मेरी मदद करें। मैं न्याय मांगने आया हूं।”

“तुम्हारे साथ क्या हुआ है?” राजा से पूछा। “महाराज, कल मेरे पड़ोसी के घर की एक दीवार गिर गई। मेरी भेड़ दीवार के नीचे दब गई और मर गई। कृपया मुझे मुआवजा दिलाने में मदद करें।”

उसकी दलील सुनकर, तेनाली रमन उठे और बोले, “महाराज, मुझे नहीं लगता कि दीवार गिरने के लिए पड़ोसी को दोषी ठहराया जा सकता है।”
“फिर, आपकी राय में, असली अपराधी कौन है?” राजा से पूछा।

“महाराज, मुझे कुछ समय दो और मैं असली अपराधी को ढूंढ लूंगा,” तेनाली ने उत्तर दिया।

राजा तेनाली रमन के सुझाव पर सहमत हो गया। इसलिए चरवाहे के पड़ोसी को दरबार में बुलाया गया और उसे कुचली हुई भेड़ की भरपाई करने के लिए कहा गया।

पड़ोसी ने कहा, “आप इसके लिए मुझे दोष नहीं दे सकते। दीवार बनाने वाले राजमिस्त्री को दोषी ठहराया जाना चाहिए। शायद उसने कमजोर सामग्री का इस्तेमाल किया जिससे दीवार गिर गई।”

तब राजमिस्त्री को बुलाया गया। फिर उसे कुचली हुई भेड़ की भरपाई करने के लिए कहा गया। तो उसने कहा, “आप मुझे कैसे दोष दे सकते हैं? यह मजदूर ही था जिसने पानी का पतला घोल मिलाया था

सीमेंट का जो ईंटों को पकड़ नहीं सका।

आप उसे इसके लिए भुगतान करने के लिए कहें।” तब मजदूर को बुलाया गया था। जब उसे मुआवजा देने के लिए कहा गया, तो उसने घोषणा की, “मैं इसके लिए दोषी नहीं हूं।

यह पानी का आदमी था जिसने मोर्टार में अतिरिक्त पानी डाला। उसे पकड़ा जाना चाहिए और मुआवजा दिया जाना चाहिए।”

इस प्रकार जलवाहक को बुलाया गया और क्षतिपूर्ति के लिए कहा गया। उन्होंने कहा, ” राजाजी यह मेरी गलती नहीं है। मैं जिस जल-वाहक का उपयोग करता हूं वह आकार में बहुत बड़ा है।

इसमें आवश्यकता से अधिक पानी होता है।”

“आपको जलवाहक किसने दिया?” तेनाली रमन से पूछा। “सर, इस चरवाहे ने मुझे जलवाहक दिया था,” पानी वाले ने कहा।

तेनाली रमन ने फिर चरवाहे की ओर देखा और कहा, “देखो, यह सब तुम्हारी गलती है। तुम्हारे गलत कदम ने तुम्हारी भेड़ों को खो दिया।”

चरवाहा शर्मिंदा हुआ और दरबार से निकल गया। राजा और उसके दरबारियों के चेहरे पर तेनाली रमन की न्यायप्रियता देखने के लिए मुस्कान थी।


Moral stories of Tenali Raman

लालची साहूकार 

moral stories in Hindi – एक साहूकार था। वह एक अमीर था। वह जरूरतमंद लोगों को पैसे उधार देता था लेकिन उनसे दस गुना ब्याज वसूल करता था। इस प्रकार वह जितना देता था उससे कहीं अधिक कमाता था।

जब तेनाली ने उसके बारे में सुना, तो उसने उसे सबक सिखाने के लिए अपने मन में एक योजना बनाई।रमन साहूकार के घर गया और कहा, “महोदय, कृपया मुझे एक दिन के लिए दो बड़े बर्तन किराए पर दें।

मुझे खाना पकाने के लिए उनकी आवश्यकता है क्योंकि मैं अपने घर में एक दावत की मेजबानी कर रहा हूं।

“हाँ, आप ले सकते हैं,” साहूकार ने कहा। “लेकिन आपको मुझे तीन सोने के सिक्के किराए के रूप में देने होंगे।” तेनाली रमन इसके लिए राजी हो गए।

उसने साहूकार को सोने के तीन सिक्के पहले ही दे दिए और दो बड़े बर्तन घर ले आए।

अगले दिन वह दो बड़े और दो छोटे चार बर्तन लेकर साहूकार के पास गया। रास्ते में उसने एक ही आकार के दो छोटे बर्तन खरीदे थे।

उन्होंने कहा, ” महोदय, ये रहे आपके दो बड़े और दो छोटे बर्तन ।
आपके दो बर्तन गर्भवती थे।

उन्होंने आज सुबह तड़के इन दो छोटे को जन्म दिया। तो ये सब तुम्हारे हैं।” लालची साहूकार प्रसन्न हुआ। उसने बिना कुछ कहे तेनाली से सभी बर्तन ले लिए और उन्हें अपने घर में रख लिया।

कुछ दिनों के बाद, तेनाली ने एक बार फिर साहूकार से संपर्क किया। उसने कहा, “महोदय, मैं कल अपने स्थान पर ब्राह्मणों और पुजारियों के लिए एक दावत रख रहा हूँ।

मुझे दावत के लिए कुछ बड़े बर्तन चाहिए। मैं उन्हें दो दिन बाद आपको लौटा दूंगा।” साहूकार खुश हुआ और उसने व्यवस्था की बड़े जहाजों से लदी गाड़ी।

उन्हें तेनाली को देते हुए उन्होंने कहा, “यहाँ है तुम्हारे लिए बड़े जहाजों से लदी गाड़ी। मेरे बर्तन गर्भवती हैं और बच्चे के बर्तन वे पैदा करते हैं।” आपको उनकी अच्छी देखभाल करनी चाहिए।

तेनाली ने उससे ऐसा करने का वादा किया और चला गया। कई दिन बीत गए लेकिन तेनाली जहाजों को लेकर नहीं लौटे। साहूकार गुस्से में था।

वह खुद तेनाली रमन के घर पहुंचे और कहा, “आपने दो दिनों में जहाजों को वापस करने का वादा किया था लेकिन अब बहुत समय हो गया है। मैं उन्हें वापस चाहता हूं। उन्हें मुझे दे दो।”

“लेकिन, महोदय, यह असंभव है। बच्चे के जन्म के समय आपके जहाजों की मृत्यु हो गई,” तेनाली ने कहा। “ओह! तुम एक धोखेबाज हो! मेरे बर्तन कैसे मर सकते हैं!” साहूकार चिल्लाया।

तेनाली रमन ने कहा, “सर, जैसा कि आप जानते हैं कि कुछ महिलाएं सुरक्षित रूप से बच्चों को जन्म देती हैं जबकि अन्य मर जाती हैं।” इसी तरह बच्चे के जन्म के समय आपके बर्तन मर गए हैं।”

साहूकार चिल्लाया, “वे कैसे मर सकते हैं?” उनके बच्चे कैसे हो सकते हैं? तुम एक धोखेबाज हो। मुझे धोखा देने के लिए मैं तुम्हें शाही दरबार में ले जाऊँगा।”

उनका तर्क और मजबूत होता गया और वे राजा के पास गए। शाही दरबार में राजा कृष्णदेव राय ने दोनों पक्षों को सुना।

फिर उसने साहूकार से पूछा, “जब आपने पहली बार बच्चे के जहाजों को स्वीकार किया, तो क्या आप नहीं जानते थे कि जहाजों से बच्चे नहीं होते हैं?”

साहूकार सिर झुकाकर चुप रहा। “यदि आप पहले तेनाली पर विश्वास करते थे, तो आपको स्वीकार करना होगा कि वे अब मर चुके हैं,” राजा ने कहा।

अब साहूकार के पास कहने को कुछ नहीं था। इस प्रकार तेनाली रमन ने लालची साहूकार को सबक सिखाया था।


Moral stories of Tenali Raman 

आज्ञाकारी सेवक

moral stories in Hindi – राजा कृष्णदेव राय ब्राह्मणों को भिक्षा के रूप में रत्न और मोती देने जा रहे थे। उसने तेनाली रमन को साथ चलने को कहा। राजा घोड़े पर सवार हो गया। घोड़े की पीठ पर भी मोतियों और रत्नों से भरे दो थैले रखे हुए थे।

राजा ने कहा, “तेनाली, मेरे साथ आओ। तुम्हें घोड़े के पीछे चलना चाहिए और देखना चाहिए कि बैग से कोई मोती या रत्न गिरते हैं या नहीं।” और राजा घोड़े पर सवार हुआ, और तेनाली उसके पीछे हो लिया

कुछ समय बाद, बैग की डोरी थोड़ी खुल गई क्योंकि वह रत्नों और मोतियों का वजन नहीं उठा सकता था। धीरे-धीरे मोती और रत्न जमीन पर गिरने लगे।

तेनाली ने उन्हें देखा लेकिन राजा को कुछ नहीं बताया। उसने जैसा कहा गया वैसा ही किया। उससे कहा गया कि अगर कुछ गिरे तो देखें और उसके बारे में न बताएं।

जैसे ही वे आगे बढ़े, वे एक झील के पास से गुजरे। राजा घोड़े से उतरकर झील के ठंडे पानी में डुबकी लगाने लगा। इसलिए उसने अपने कपड़े उतार दिए और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए तेनाली को दे दिया। राजा पानी में उतर गया और जोर से जप करने लगा, “हरे राम हरे कृष्ण!”

कन्नड़ में, ‘हरे’ का अर्थ है ‘फाड़ना’ और चूंकि तेनाली रमन कन्नड़ जानते थे, उन्होंने सोचा कि राजा उनसे कुछ फाड़ने के लिए कह रहे हैं। इसलिए उसने राजा के कपड़े ले लिए और उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

राजा ने उसे देखा और चिल्लाया, “तेनाली, तुम क्या कर रहे हो?” तेनाली रमन ने उत्तर दिया, “मैंने केवल आपके आदेश का पालन किया, महामहिम।

आपने मुझे ‘हरे’ के लिए कहा, इसलिए मैंने कपड़े फाड़ दिए जैसे मैंने रत्नों को देखा था। मैं तो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।

आपने तो मुझे जो कहा वही मैंने किआ। जो भी देना हो उसे महाराज पूरा ही देना चाहिए, चाहे वो आदेश हो या दान ।

राजा ने पहले हंसते हुए कहा। तब उसे एहसास हुआ कि वो तो अधूरा दे रहा है। आदेश उसकी गलती थी।

एक बार फिर तेनाली रमन ने उन्हें एक और पाठ पढ़ाया था कि वह अपनी संपत्ति को बेकार में दे रहे थे, जहां इसकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं थी।


Moral stories of Tenali Raman

एक दुर्लभ किताब

moral stories in Hindi – एक बार राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक महान विद्वान आया। उन्होंने दावा किया कि उनके पासबहुत ज्ञान है जिसे चुनौती दी जा सकती है।

उन्होंने दरबार के सभी विद्वान विद्वानों को उसके साथ बहस में किसी भी विषय पर चर्चा करने के लिए चुनौती दी।

किसी भी शाही विद्वान ने विद्वान की चुनौती को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं की। अब यह विजयनगर के लिए शर्म का विषय बन गया था।

इसलिए राजा ने तेनाली को विद्वान से वाद-विवाद करने को कहा। तेनाली बहस के लिए राजी हो गए। चुनौती वाले दिन पर तेनाली रमन दरबार पहुंचे।

एक बड़ा बंडल ले आया जो ऐसा लग रहा था जैसे उसमें किताबें हों। जल्द ही महान विद्वान आया और तेनाली के सामने बैठ गया।

दोनों ने राजा और एक दूसरे को शुभकामनाएं दीं। तब तेनाली रमन ने अपने और विद्वान के बीच वह गठरी रख दी जिसे वह लाया था।

तब राजा ने घोषणा की कि बहस शुरू होनी चाहिए। तेनाली रमन अपनी सीट से उठ खड़े हुए और कहा, ” पढ़िए महोदय , मैंने आपके बारे में बहुत कुछ सुना है। ऐसे महान विद्वान के लिए मैं यह महान और दुर्लभ पुस्तक लाया हूँ  जिस पर हम अब बहस करेंगे।”

” कृपया किताब का नाम बताएं क्योंकि मैंने पढ़ा है और सब कुछ जानता हूं,” विद्वान ने कहा। तेनाली रमन ने कहा, “यह किताब है जिसे ‘तिलकष्ट महिषा बंधन’ कहा जाता है।’

विद्वान आश्चर्यचकित था क्योंकि उसने इस तरह के शीर्षक के साथ किसी भी काम के बारे में कभी नहीं सुना था। ऐसी किताब पर बहस करने से बहुत डर लगता है जिसे उसने कभी पढ़ा या सुना नहीं था।

फिर भी, उन्होंने कहा, “ओह! यह एक दुर्लभ किताब है! मुझे इसे पढ़े हुए काफी समय हो गया है। मुझे आज रात इसे पढ़ने दें क्योंकि मैं इसमें कई बिंदु भूल गया हूं।

हम कल इस पर बहस करेंगे।” तेनाली रमन इस पर राजी हो गए। लेकिन उस रात

बहस हारने पर अपमान की आशंका के कारण विद्वान शहर से भाग गया। अगली सुबह जब विद्वान दरबार में नहीं आया। शाही दरबार में, तेनाली रमन ने कहा, ” महाराज महामहिम, विद्वान नहीं आएंगे। वह भाग गया है।

“तेनाली, आपको वह दुर्लभ किताब कहाँ से मिली?” राजा कृष्णदेव राय से पूछा।

तेनाली ने कहा “महामहिम, वास्तव में ऐसी कोई किताब नहीं है। I

इसे “तिलकष्ट महिषा बंधन” नाम दिया था क्योंकि “तिलकष्ट” का अर्थ है तिल की सूखी छड़ें, और ‘महिष बंधन’ का अर्थ है रस्सी।

मैं जो बंडल ले जा रहा था वह वास्तव में एक रस्सी से बंधे तिल के सूखे तिल थे। मैंने उसे रेशमी कपड़े में लपेटा था ताकि वह किताबों की पोटली जैसा लगे।”

यह सुनकर राजा और दरबारी हंस पड़े। और एक बार फिर राजा ने तेनाली रमण को पुरस्कृत किया।


Moral stories of Tenali Raman

तेनाली और घोड़ा

moral stories in Hindi – राजा कृष्णदेव राय के पास फारस से आयातित कुछ घोड़े थे। उसने इन घोड़ों को अपने घुड़सवार सैनिकों को प्रशिक्षण देने के लिए दिया।

तेनाली रमन ने भी राजा से एक घोड़ा मांगा। राजा ने उसे प्रशिक्षित करने के लिए एक घोड़ा दिया। राजा ने सभी को धन भी दिया जो घोड़ों के प्रशिक्षण और रखरखाव पर खर्च किया जाना था।

तेनाली रमन ने उस पैसे से घोड़े के लिए एक खलिहान बनाया। खलिहान को चारों तरफ से बंद कर दिया गया था। केवल एक छोटा सा छेद था जो घोड़े के लिए घास को पार करने के लिए खुला रखा गया था।

तेनाली दिन में एक निश्चित समय पर घोड़े को घास खिलाते थे। वह दिन में केवल एक बार घोड़े को खाना खिलाता था। छेद से गुजरते ही भूखा घोड़ा घास को छीन लेता था। इस तरह कई दिन बीत गए।

एक दिन राजा ने स्वयं घोड़ों का निरीक्षण करने का निश्चय किया। उसने देखा कि सभी घोड़े स्वस्थ और स्वस्थ थे। उन सभी का निरीक्षण किया गया और वे अच्छी तरह से तैयार पाए गए।

लेकिन राजा ने देखा कि तेनाली और उसका घोड़ा गायब थे। इसलिए राजा ने तेनाली रमन को बुलवाया। जब उनसे उनके घोड़े के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मेरा घोड़ा बहुत जिद्दी हो गया है।

यही कारण है कि मैं घोड़ों के निरीक्षण में उपस्थित नहीं हो सका। यह खलिहान से बाहर नहीं आ रहा है। महामहिम, मुझे कुछ चाहिए इसे यहां लाने में मदद करें।”

इसलिए राजा ने अपने रक्षकों को तेनाली रमन के साथ खलिहान में जाने के लिए बुलाया लेकिन उन्होंने कहा, “महाराज, मुझे लगता है कि केवल एक पवित्र व्यक्ति ही मेरा घोड़ा ला सकता है।

मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस कार्य के लिए किसी विद्वान और पवित्र व्यक्ति को भेजें।”

ऐसा कहने के पीछे तेनाली का इरादा था। उसे विश्वास था कि राजा सुब्बा शास्त्री को भेजेगा। सुब्बा शास्त्री एक विद्वान पुरोहित थे लेकिन उन्हें तेनाली रमन से जलन थी।

इसलिए इस बार तेनाली रमन उन्हें सबक सिखाना चाहते थे।
तेनाली रमन की अपेक्षा के अनुसार, राजा ने सुब्बा शास्त्री को तेनाली रमन का घोड़ा लाने का आदेश दिया। सुब्बा शास्त्री तेनाली रमन से अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे, इसलिए वह तुरंत सहमत हो गए।

तो, सुब्बा शास्त्री तेनाली रमण के साथ गए घोड़ा लाने के लिए। खलिहान में तेनाली रमन ने कहा,

“पुरोहित जी, कृपया मेरे विशेष घोड़े की दीवार में छेद करके देखें।” तो सुब्बा शास्त्री ने उत्सुकता से उद्घाटन के माध्यम से देखा।

उसकी लंबी, सफेद दाढ़ी अंदर के घोड़े को घास की तरह लग रही थी। भूखा घोड़ा इंतजार नहीं कर सका और जल्द ही पुरोहित की दाढ़ी को अपने दांतों में कस कर पकड़ लिया।

सुब्बा शास्त्री का सिर उद्घाटन में फंसा हुआ था। वह अपना सिर पीछे नहीं खींच सका। जल्द ही वह चिल्लाने लगा और मदद के लिए दर्द से कराहने लगा।

“तो पुरोहितजी, क्या आप अपने ज्ञान से घोड़े को बाहर लाने में सक्षम हैं?” तेनाली ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“ओह! रमन, कृपया मेरी मदद करें। कृपया मुझे शेखी बघारने के लिए क्षमा करें। मैं फिर कभी घमंड नहीं करूंगा,” पुरोहित ने कहा।

क्षमा याचना सुनने के बाद, तेनाली रमन ने अपने सेवकों को खलिहान की दीवारों को तोड़ने के लिए कहा। लेकिन घोड़े ने फिर भी सुब्बा शास्त्री की दाढ़ी पकड़ रखी थी।

दोनों को उसी अवस्था में राजा के पास ले जाया गया। वहाँ सभी घुड़सवार अपने घोड़ों के साथ उपस्थित थे। उन्हें देखकर लोग हंस पड़े।

तेनाली रमन के घोड़े ने भी अपना मुंह खोल दिया। परिणामस्वरूप, सुब्बा शास्त्री मुक्त हो गए। अब उसने एक सबक अच्छी तरह सीख लिया था, कभी भी तेनाली रमन को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की।

राजा ने देखा कि तेनाली रमन का घोड़ा अन्य की तुलना में घोड़े से कमज़ोर था
राजा ने पूछा, “तेनाली, तुम्हारा घोड़ा इतना कमजोर क्यों है? उसे अच्छी तरह से नहीं खिलाया?

मैंने तुम्हें इतना चारा दिया था कि उसे खिलाया जा सके।”

“महाराज, यह घोड़ा दिन में केवल एक बार खिलाए जाने के बाद इतना जिद्दी हो गया था। क्या आप सोच सकते हैं

कि अगर मैं इसे औरों की तरह खिलाता तो पुरोहित जी का क्या होता?” राजा ने कहा, “लेकिन तेनाली, तुम सच में पुरोहित जी के लिए बुरे थे।”

इस पर सुब्बा शास्त्री ने हस्तक्षेप किया और कहा, “महाराज, कृपया तेनाली को कुछ मत कहो। जिस तरह से मेरे साथ व्यवहार किया गया है, मैं उसके लायक हूं।

मैंने उसे कई बार छेड़ा और अपमानित किया है। आज मैंने एक सीखा है

दूसरों का सम्मान करने के लिए जीवन के लिए सबक।” यह सुनकर तेनाली ने माफी मांगी। आखिरकार मामला सुलझ गया।


Moral stories in hindi 

मेरी बात मानों

एक बनजारा था । वह बैलों पर आलू  लादकर दिल्लीकी तरफ आ रहा था। रास्ते में कई गाँवों से गुजरते समय उसकी बहुत सी आलू बिक गयी। बैलोंकी पीठ पर लदे बोरे आधे तो खाली हो गये और आधे भरे रह गये। अब वे बैलोंकी पीठ पर टिकें कैसे? क्योंकि भार एक तरफ हो गया! नौकरोंने पूछा कि क्या करें? बनजारा बोला- ‘अरे! सोचते क्या हो, बोरोंके एक तरफ रेत (बालू) भर लो। यह राजस्थान की जमीन है, यहाँ रेत बहुत है।’ नौकरोंने वैसा ही किया। बैलोंकी पीठपर एक तरफ आधे बोरे में आलू हो गयी और दूसरी तरफ आधे बोरेमें रेत हो गयी।

दिल्लीसे एक सज्जन उधर आ रहे थे। उन्होंने बैलों पर लदे बोरों में से एक तरफ रेत झरते हुए देखी तो वे बोले कि बोरों में एक तरफ रेत क्यों भरी है? नौकरोंने कहा- ‘सन्तुलन करने के लिये।’ वे सज्जन बोले- ‘अरे! यह तुम क्या मूर्खता करते हो ? तुम्हारा मालिक और तुम एक से ही हो। बैलों पर मुफ्तमें ही भार ढोकर उनको मार रहे हो! आलू के आधे-आधे दो बोरों को एक ही जगह बाँध दो तो कम-से-कम आधे बैल तो बिना भार के खुले चलेंगे।’

नौकरोंने कहा कि आपकी बात तो ठीक जँचती है, पर हम वही करेंगे, जो हमारा मालिक कहेगा। आप जाकर हमारे मालिकसे यह बात कहो और उनसे हमें हुक्म दिलवाओ। वह मालिक बनजारे से मिला और उससे बात कही। बनजारे ने पूछा कि आप कहाँ के हैं? कहाँ जा रहे । हैं? उसने कहा कि मैं जयपुर का रहनेवाला हूँ। रुपये कमाने के लिये दिल्ली गया था। कुछ दिन वहाँ रहा, फिर बीमार हो । गया। जो थोड़े रुपये कमाये थे, वे खर्च हो गये।

व्यापार में घाटा लग गया। पासमें कुछ रहा नहीं तो विचार किया कि घर चलना चाहिये। उसकी बात सुनकर बनजारा नौकरों से बोला कि इनकी सम्मति मत लो। अपने जैसे चलते हैं, वैसे ही चलो। इनकी बुद्धि तो अच्छी दीखती है, पर उसका नतीजा ठीक नहीं निकलता। अगर ठीक निकलता तो ये धनवान् हो जाते। हमारी बुद्धि भले ही ठीक न दीखे, पर उसका नतीजा ठीक होता है।

मैंने कभी अपने काममें घाटा नहीं खाया। बनजारा अपने बैलोंको लेकर दिल्ली पहुँचा। वहाँ उसने जमीन खरीदकर आलू और रेत दोनों का अलग-अलग ढेर लगा दिया और नौकरों से कहा कि बैलों को जंगलमें ले जाओ और जहाँ चारा-पानी हो, वहाँ उनको रखो। यहाँ उनको चारा खिलायेंगे तो नफा कैसे कमायेंगे ? आलू बिकनी शुरू हो गयी। उधर दिल्ली का बादशाह बीमार हो गया। वैद्यने सलाह दी कि अगर बादशाह राजस्थान के रेत के टीले पर रहें तो उनका शरीर ठीक हो सकता है।

रेत में शरीर को नीरोग करने की शक्ति होती है। अतः बादशाहको राजस्थान भेजो। ‘राजस्थान क्यों भेजें? वहाँ की रेत यहीं मँगा लो !’ ‘ठीक बात है। रेत लानेके लिये ऊँटको भेजो।’ ‘ऊँट क्यों भेजें? यहीं बाजार में रेत मिल जायगी। ‘बाजार में कैसे मिल जायगी ?’ ‘अरे! दिल्लीका बाजार है, यहाँ सब कुछ मिलता है! मैंने एक जगह रेत का ढेर लगा हुआ देखा है।’ ‘अच्छा! तो फिर जल्दी रेत मँगवा लो।’

बादशाह के आदमी बनजारे के पास गये और उससे पूछा कि रेत क्या भाव है? बनजारा बोला कि चाहे आलू खरीदो, चाहे रेत खरीदो, एक ही भाव है। दोनों बैलोंपर बराबर तुलकर आये हैं। बादशाह के आदमियों ने वह सारी रेत खरीद ली। अगर बनजारा दिल्ली से आये उस सज्जन की बात मानता तो ये मुफ्तके रुपये कैसे मिलते? इससे सिद्ध हुआ कि बनजारे की बुद्धि ठीक काम करती थी।

moralस कहानी से यह शिक्षा लेनी चाहिये कि जिन्होंने अपनी वास्तविक उन्नति कर ली है, जिनका विवेक विकसित हो चुका है, जिनको तत्त्वका अनुभव हो चुका है, जिन्होंने अपने दुःख, सन्ताप, अशान्ति आदिको मिटा दिया है, ऐसे सन्त महात्माओं की बात मान लेनी चाहिये; क्योंकि उनकी बुद्धि का नतीजा अच्छा हुआ है। जैसे, किसीने व्यापारमें बहुत धन कमाया हो तो वह जैसा कहे, वैसा ही हम करेंगे तो हमें भी लाभ होगा। उनको लाभ हुआ है तो हमें लाभ क्यों नहीं होगा ? ऐसे ही हम सन्त-महात्माओं की बात मानेंगे तो हमारेको भी अवश्य लाभ होगा। 


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बहरूपिया 

एक राजा था। उसके पास एक बहुरूपिया आया। वह तरह-तरहके स्वाँग धारण किया करता था। उसमें देवी की ऐसी शक्ति थी कि वह जो भी स्वाँग धारण करता, उसको पूरा वैसा-का-वैसा निभाता था। उसमें वह कहीं चूकता नहीं था। राजा ने कहा कि तुम एक विरक्त, त्यागी महात्मा का स्वाँग लाओ। बहुरूपिये ने स्वीकार कर लिया। वह कुछ दिनों तक गुप्त रूप से रहा। जब दाढ़ी बढ़ गयी तो वह साधुका स्वाँग लेकर शहर में आया। वह सबके साथ सन्त की तरह ही बर्ताव करता।

किसी से न राग रखता, न द्वेष । भिक्षा में जो मिल जाय, उसी में सन्तोष करता। लोगों को खूब अच्छी-अच्छी बातें सुनाता। शहर में हल्ला मच गया कि बड़े विरक्त, त्यागी महात्मा आये हैं। राजाने मन्त्री को भेजा कि जाकर देखो, वही बहुरूपिया है या कोई और सन्त है ? मन्त्रीने जाकर देखा तो पहचान लिया कि यह तो वही बहुरूपिया है। राजाने घोषणा की कि हम सन्तके दर्शन को जायँगे। राजाने एक थाल में बहुत सी अशर्फियाँ भर लीं और भेंट-पूजा का सामान लेकर बड़े ठाट-बाट से वहाँ गया।

सभी मन्त्री तथा अन्य लोग भी साथ में थे। लोग कहने लगे कि ऐसे सन्त के दर्शन के लिये खुद राजा आये हैं! राजा उसके पास गया को और अशर्फियोंसे भरा थाल उसके सामने रखा। सन्त ने अशर्फी अथवा रुपया, कपड़ा आदि कुछ भी नहीं लिया और ‘शिव शिव’ कहते हुए उठकर वहाँ से चल दिया। लोग कहने लगे कि अच्छा सत्संग होता था, पर राजाको पता नहीं क्या सूझी कि सत्संग में बाधा लगा दी! राजाकी भेंट क्या काम आयी!

वह बहुरूपिया अपने असली रूपमें राजाके सामने आया और बोला कि अन्नदाता! इनाम मिल जाय। राजाने पूछा कि वह क्या तुम्हारे मन में है कि मैं इतने रुपये इनाम में दूँगा? वह बोला सी कि आप अपनी मरजीसे जो देंगे, उसी में मैं राजी हो जाऊँगा। राजा बोला- तू मूर्ख है! मैंने इतनी अशर्फियाँ तुम्हारे पास रखीं, पर तुमने उनको छोड़ दिया !

वह बोला- अन्नदाता ! मैंने साधुका स्वाँग लिया था, फिर मैं वह काम कैसे कर सकता था, जिससे साधु के स्वाँग को बट्टा लग जाय! अगर मैं रुपयों पर मोहित हो जाता तो मेरा स्वाँग बिगड़ जाता और भगवती माता भी नाराज हो जाती। राजा बहुत प्रसन्न हुआ कि यह बात तो ठीक कहता है। राजाने उसको बहुत-सा इनाम दिया। एक दिन राजाने बहुरूपियेसे कहा कि तुम सिंह का स्वाँग लाओ। वह बोला कि अन्नदाता! मैं स्वाँग पूरा करता हूँ, उसमें चूकता नहीं हूँ। इसलिये आप मेरेसे सिंहके स्वाँगके लिये न कहें। यह स्वाँग खतरनाक है! राजाने कहा कि हम तो सिंहका स्वाँग ही देखना चाहते हैं।

बहुरूपियेने कहा- अगर कोई नुकसान हो जाय तो पहले ही मेरा गुनाह माफ कर दें, नहीं तो कोई दूसरा स्वाँग लाने की आज्ञा दें। राजाने कहा- हम पहले से ही तुम्हारा गुनाह माफ करते हैं, तुम सिंहका स्वाँग लाओ। बहुरूपिया सिंहकी खाल पहनकर सिंहावलोकन करता हुआ, इधर-उधर देखता हुआ आया। वह आकर सिंह की तरह बैठ गया। राजा का लड़का वहाँ खेल रहा था। वह खेलते-खेलते वहाँ आया और सिंह बने हुए बहुरूपिये को पीछे से लकड़ी मार दी।

सिंहने दहाड़ लगाते हुए चट उस लड़के को मार दिया ! राजाको बड़ा दुःख हुआ कि यह कैसा स्वाँग है कि मेरा लड़का मर गया! दूसरे दिन बहुरूपिया रोता-रोता आया और बोला अन्नदाता ! आप क्षमा करें! मैंने पहले ही कह दिया था कि ऐसा खतरनाक स्वाँग मेरे से मत करवाओ । राजा बोला तुम्हारा तो स्वाँग है, पर हमारा कितना नुकसान हो गया, राजकुमार मर गया ! परन्तु अब राजा कर भी क्या सकता था! वह वचन बद्ध था। बहुरूपिये ने पहले ही क्षमा माँग ली थी।

राजा के पास एक नाई रहता था। उस नाई ने राजा को सलाह दी कि इस बहुरूपिये से सती का स्वाँग मँगाओ। सती पति के पीछे जल जाती है। यह सती का स्वाँग करेगा तो जलकर मर जायगा और राजकुमार को मारनेका दण्ड इसको अपने-आप मिल जायगा ! हमें दण्ड देना नहीं पड़ेगा।

राजाने बहुरूपियेको बुलाकर कहा कि भाई, तुम सती का स्वाँग लाओ। वह बोला कि ठीक है अन्नदाता, ले आऊँगा। शहर में एक लावारिस मुर्दा पड़ा हुआ था। उसको देखकर बहुरूपिये ने सतीका स्वाँग बनाया। सोलह सिंगार करके, ढोल आदि बजाते हुए वह मार्ग से चला। लोगोंने देखा कि कोई स्त्री सती होने जा रही है। राजाके पास समाचार पहुँचा तो मन्त्री से पता लगानेको कहा। मन्त्रीने पता लगाया कि यह वही बहुरूपिया है।

राजाने अपने आदमियोंको भेजा कि इसको अच्छी तरहसे जलाना, जिससे यह बच न जाय। नदीके किनारे श्मशानघाट था। लोगोंने वहाँ बहुत ज्यादा लकड़ियाँ इकट्ठी कर दीं। वह बना हुआ बहुरूपिया मुर्देको गोदमें लेकर चितापर बैठ गया। लकड़ियों में आग लगा दी गयी । इतने में जोरसे आँधी और वर्षा आयी। आँधी और वर्षा आनेसे सब लोग भाग गये। घर का कोई आदमी हो तो ठहरे! घरका तो कोई था नहीं। वर्षा से आग बुझ गयी और नदी में वेग आने से लकड़ियाँ बह गयीं। वह बहुरूपिया लकड़ियों के ऊपर बैठा रहा और तैरता हुआ किनारे जा लगा। देवी का कृपा होने से उसके प्राण बच गये।

कुछ महीने बीत गये तो वह बहुरूपिया राजाके पास आया और बोला कि अन्नदाता ! इनाम मिल जाय! राजा उसको देखकर चकरा गया और बोला- ‘अरे! तू तो जलकर मर गया था न?’ वह बोला-‘मर तो गया था, पर शक्ति माँ की कृपा से पीछे आ गया हूँ’। राजा बोला- ‘क्या तू हमारे बाप-दादा से मिला?’ वह बोला-‘हाँ अन्नदाता! सबसे मिलकर आया हूँ।’ राजा बोला- ‘उनका समाचार क्या लाया है ?”
बहुरूपिया बोला – ‘समाचार तो खुशीका है, पर उन सबकी हजामत और नाखून बहुत बढ़े हुए हैं, इसलिये उन्होंने घरके नाईको बुलाया है।’ राजा बोला- ‘नाई वहाँ जायगा कैसे ?’ बहुरूपिया बोला—‘जैसे बाप-दादा गये, मैं गया, ऐसे ही जायगा; क्योंकि जानेका रास्ता तो एक ही है!’ नाईने सुना तो सोचा कि अब मेरी मौत आयी!

राजाकी आज्ञा हो जाय तो फिर कौन रक्षा करनेवाला है? नाई जाकर बहुरूपिये के पैर पड़ा कि तू किसी तरह मेरे को बचा, मेरा घर बर्बाद हो जायगा! घर में कोई कमानेवाला नहीं है! बहुरूपिया बोला कि सतीका स्वाँग लाने के लिये तूने राजाको सलाह दी थी, अब तू भी जा! नाई बहुत गिड़गिड़ाया तो बहुरूपिये ने कहा कि अच्छी बात है, मेरा तुमसे कोई वैर तो है नहीं!

उसने जाकर राजासे कहा—’अन्नदाता! वास्तवमें मैं मरा नहीं था। मेरे लिये लकड़ियाँ बहुत ज्यादा इकट्ठी की गयी थीं। अतः लकड़ियाँ जलते-जलते मेरे नजदीक आयें – इससे पहले ही आँधी और वर्षा आ गयी। लोग भाग गये और माँकी कृपासे मैं बच गया। मैंने सतीका स्वाँग किया तो जलनेसे मैं डरता नहीं हूँ। आप जो भी स्वाँग कहेंगे, मैं वैसा-का-वैसा स्वाँग लाऊँगा, स्वाँग नहीं बिगाड़गा। पीछे आप जो इनाम दें, मैं प्रसन्नतापूर्वक ले लूँगा।’

moralमनुष्य को अपना स्वाँग नहीं बिगाड़ना चाहिये । पिता का, माँ का, पुत्र का, भाई का, बहन का, बेटी का, सास का, बहू का, जो भी स्वाँग धारण किया है, उसको ठीक तरहसे निभाना चाहिये। जो अपने कर्तव्यका ठीक पालन करता है, उसपर भगवान् कृपा करते हैं।


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असली घर 

एक राजा था। वह एक सन्त के पास जाया करता और उनका सत्संग किया करता था। उस राजा ने अपने लिये एक महल बनाया। पहले उसके कई महल थे, पर अब ऐसा महल बनाया, जिसमें आराम की सब चीजें हों और उसमें ज्यादा ठाट बाट से रहें। राजा ने सन्त से कहा कि महाराज! एक दिन आप चलो, हमारी कुटिया पवित्र हो जाय ! सन्त उसको टालते गये। राजा ने बहुत बार कहा चलो। एक दिन सन्त बोले, मैं चलूँगा।

राजा ने सन्त को महल दिखाना आरम्भ किया कि यह हमारे रहने की जगह है, यह हमारे पंचायती की जगह है, यह भोजन की जगह है, यह शौच-स्नानकी जगह है, आदि-आदि। सन्त चुपचाप देखते रहे, कुछ बोले नहीं। अगर वाह-वाह करते हैं तो पाप लगता  है। कारण कि मकान बनाने में बड़ी हिंसा होती है ! बहुत-से जीव मरते हैं। चूहे, साँप, गिलहरी आदिके रहने और चलने-फिरने में आड़ लग जाती है; क्योंकि जितने हिस्से में मकान बना है, उतने हिस्से में वे जा नहीं सकते, स्वतन्त्रतासे घूम नहीं सकते।

पहले उतने हिस्से में सब जीवों का हक लगता था, पर अब केवल एक का ही हक लगता है। सन्त कुछ बोले नहीं तो राजाने समझा कि महाराज को मकान पसन्द नहीं आया। राजा लोग चतुर होते हैं। राजा ने पूछ लिया कि महाराज! महल में कमी क्या है? सन्त बोले कि कमी तो इसमें बड़ी भारी है! राजाने विचार किया कि बड़े-बड़े कुशल कारीगरोंने महल बनाया है।

उन्होंने कोई कमी बाकी नहीं छोड़ी। जहाँ कमी दीखी, उसको पूरा कर दिया। परन्तु बाबाजी कहते हैं कि कमी है, और वह भी मामूली नहीं है, बड़ी भारी कमी है! राजाको बड़ा आश्चर्य आया और पूछा कि क्या बहुत बड़ी कमी है? सन्त बोले कि हाँ, बहुत बड़ी कमी है! राजाने पूछा कि महाराज ! क्या कमी है? सन्त बोले कि यह जो दरवाजा रख दिया है न, यह कमी है! राजा बोला कि महाराज! दरवाजे के बिना महल क्या काम आये ? सन्त बोले कि तुमने यह महल क्यों बनवाया है?

राजा ने कहा कि महाराज ! मैंने अपने रहने के लिये बनाया है। सन्त बोले कि राजन् ! तुमने तो रहने के लिये बनाया है, पर एक दिन लोग उठाकर ले जायँगे ! इससे ज्यादा कमी और क्या होगी, बताओ? बनाया तो है रहने के लिये, पर लोग उठाकर बाहर ले जायँगे, रहने देंगे नहीं ! इसलिये अगर रहना ही हो तो यह दरवाजा नहीं होना चाहिये, बाहर निकलने की जगह नहीं होनी चाहिये ।

तात्पर्य है कि यह अपना असली घर नहीं है। एक दिन सब कुछ छोड़कर यहाँ से जाना पड़ेगा। हमारा असली घर तो वह है, जहाँ पहुँचनेपर फिर लौटकर आना ही न पड़े।


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हाय रे ! कंजूस 

एक गरीब ब्राह्मण था । उसको अपनी कन्याका विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करनेसे कुछ पैसा आ जायगा तो काम चल जायगा। ऐसा विचार करके उस भगवान् रामके एक मन्दिरमें बैठकर कथा आरम्भ कर दी उसका भाव यह था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये, पर भगवान् तो मेरी कथा सुनेंगे ही !

पण्डितजी की कथा में थोड़े-से श्रोता आने लगे। एक बहुत कंजूस सेठ था । एक दिन वह मन्दिरमें आया। जब वह मन्दिर की परिक्रमा कर रहा था, तब उसको मन्दिरके भीतरसे कुछ आवाज आयी। ऐसा लगा कि कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे हैं। सेठ ने कान लगाकर सुना। भगवान् राम हनुमान्जी से कह रहे थे कि इस गरीब ब्राह्मणके लिये सौ रुपयों का प्रबन्ध कर देना, जिससे कन्यादान ठीक हो जाय। हनुमान्जी ने कहा कि ठीक है महाराज! इसके सौ रुपये पैदा हो जायँगे।

सेठ ने यह सुना तो वे कथा समाप्ति के बाद पण्डितजीसे मिले और उनसे कहा कि महाराज! कथा में रुपये पैदा हो रहे हैं कि नहीं? पण्डितजी बोले कि श्रोतालोग बहुत कम आते हैं, रुपये कैसे पैदा हों ? सेठने कहा कि मेरी एक शर्त है, कथा में जितना रुपया आये, वह मेरे को दे देना, मैं आपको पचास रुपये दे दूँगा। पण्डितजीने शर्त स्वीकार कर ली। उसने सोचा कि कथामें इतने रुपये तो आयेंगे नहीं, पर सेठजी से पचास रुपये तो मिल ही जायँगे! पुराने जमाने में पचास रुपये भी बहुत ज्यादा होते थे।

इधर सेठ की नीयत यह थी कि हनुमान्जी भगवन की आज्ञाका पालन करके इसको सौ रुपये जरूर दिलायेंगे। वे सौ रुपये मेरे को मिल जायँगे और पचास रुपये मैं दे दूँगा तो बाकी पचास रुपये मेरे पैदा हो जायँगे! जो लोभी आदमी होते हैं, वे सदा रुपयों की ही बात सोचते हैं। इसलिये भगवान् और हनुमान्जीकी बातें सुनकर भी सेठमें भगवान् के प्रति भक्ति उत्पन्न नहीं हुई, उलटे उसने लोभ को ही पकड़ा !

कथा की पूर्णाहुति होनेपर सेठ पण्डितजी के पास आया। उसको आशा थी कि आज सौ रुपये भेंट में आये होंगे। पण्डितजीने कहा कि भाई, आज तो भेंट बहुत थोड़ी ही आयी! बस, पाँच-सात रुपये आये हैं। सेठ बेचारा क्या करे? उसने अपने वायदे के अनुसार पण्डितजीको पचास रुपये दे दिये। लेने के बदले देने पड़ गये! सेठको हनुमान्जीपर बहुत गुस्सा आया कि उन्होंने पण्डितजीको सौ रुपये नहीं दिये और भगवान् के सामने झूठ बोला!

वह मन्दिरमें गया और हनुमान्जी की मूर्तिपर घूँसा मारा। घूँसा मारते ही सेठका हाथ मूर्तिसे चिपक गया. अब सेठने बहुत जोर लगाया, पर हाथ छूटा नहीं। जिसको हनुमान्जी पकड़ लें, वह कैसे छूट सकता है? सेठको फिर आवाज सुनायी दी। उसने ध्यानसे सुना। भगवान् हनुमान्जी से पूछ रहे थे कि तुमने ब्राह्मणको सौ रुपये दिलाये कि नहीं? हनुमान्जीने कहा कि ‘महाराज! पचास रुपये तो दिला दिये हैं, बाकी पचास रुपयोंके लिये सेठको पकड़ रखा है! वह पचास रुपये देगा तो छोड़ देंगे।

‘ सेठने सुना तो विचार किया कि मन्दिरमें लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेइज्जती होगी! वह चिल्लाकर बोला कि ‘हनुमान्जी महाराज! मेरे  को छोड़ दो, मैं पचास रुपये दूँगा!’ हनुमान्जी ने सेठका हाथ छोड़ दिया। सेठने जाकर पण्डितजीको पचास रुपये दे दिये।


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साधु का भाग्य 

एक साधु था। चलते-चलते वह एक शहरके पास पहुँचा तो शहरका दरवाजा बन्द हो गया। रात हो गयी थी। वह साधु दरवाजे के बाहर ही सो गया। दैवयोग से उस दिन उस शहर के राजा का शरीर शान्त हो गया था। उसका कोई बेटा नहीं था। राज्य पाने के लिये कुटुम्बी लड़ने लगे। एक कहता कि मेरा हक लगता है, दूसरा कहता कि मेरा हक लगता है। अन्त में सबने मिलकर यह निर्णय किया कि कल सुबह दरवाजा खोलने पर जो सबसे पहले भीतर आये, उसी को राज्य दे दिया जाय। ऐसा निर्णय होनेसे विवाद मिट गया।

सुबह होते ही शहरका दरवाजा खुला तो सबसे पहले वह साधु भीतर गया। भीतर जाते ही हथिनी ने चट सूँड़ से उठाकर बाबाजी को अपने ऊपर चढ़ा लिया। लोग जय-जयकार करते हुए बाबाजीको दरबारमें ले गये। बाबाजीने पूछा कि यह क्या तमाशा है भाई?’ उन्होंने बाबाजीसे कहा कि ‘महाराज! हमने विचार कर लिया है कि शहरमें जो सबसे पहले आ जाय, उसको राज्य दे देना है।

सबसे पहले आप आये, इसलिये हमने आपको यहाँ का राजा बनाया है।’ बाबाजी ने कहा कि ‘अच्छी बात है!’ बाबाजी ने नहा-धोकर राजा की पोशाक पहन ली और आज्ञा दी कि एक बक्सा लाओ! जब बक्सा आया तो बाबाजीने अपने पहलेके कपड़े, तँबी, खड़ाऊँ आदि रखकर ताला लगा दिया और चाबी अपने पासमें रख ली। अब बाबाजी बढ़िया रीति से राज्य करने लगे।

बाबाजी में न तो अपनी कोई कामना थी, न कोई चिन्ता थी और न उनको कोई भोग ही भोगना था। उन्होंने भगवान्का काम समझकर खूब बढ़िया रीति से राज्य किया। फलस्वरूप राज्यकी बहुत उन्नति हो गयी। आमदनी बहुत ज्यादा हो गयी । राज्य का खजाना भर गया। प्रजा सुखी हो गयी। राज्यकी समृद्धिको देखकर पड़ोस के एक राजाने विचार किया कि बाबाजी राज्य तो करना जानते हैं, पर लड़ाई करना नहीं जानते! उसने चढ़ाई कर दी।

राज्यके सैनिकोंने बाबाजीको समाचार दिया कि अमुक राजाने चढ़ाई कर दी है। बाबाजी बोले कि ‘करने दो, अपने लड़ाई नहीं करनी है।’ थोड़ी देरमें समाचार आया कि शत्रुकी सेना नजदीक आ रही है। बाबाजी बोले कि आने दो’। फिर समाचार आया कि शत्रुकी सेना पास में आ गयी है तो बाबाजी ने आदमी भेजा कि आप यहाँ क्यों आये हैं ? पड़ोसी राजा ने समाचार भेजा कि हम यह राज्य लेने आये हैं। बाबाजी ने कहा कि राज्य पानेके लिये लड़नेकी जरूरत नहीं है।

बाबाजीने आज्ञा दी कि मेरा बक्सा लाओ। बक्सा मँगाकर उन्होंने उसको खोला और अपने पहले के कपड़े पहनकर हाथ में तँबी ले ली। बाबाजी ने पड़ोसी राजा से कहा कि इतने दिन मैंने रोटी खायी, अब आप खाओ! मैं तो इसलिये बैठा था कि राज्य सँभालनेवाला कोई नहीं था। अब आप आ गये तो इसको सँभालो। व्यर्थमें लड़ाई करके मनुष्यों को क्यों मारें ?

इस कहानी का तात्पर्य यह नहीं है कि शत्रुकी सेना आये तो उसको राज्य दे दो, प्रत्युत यह तात्पर्य है कि बाबाजीकी तरह जो काम सामने आ जाय, उसको भगवान्‌का काम समझ कर निष्काम भाव से बढ़िया रीतिसे करो, अपना कोई आग्रह मत रखो ।

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Moral stories in hindi for kids

  ईश्वर सब जगह है 

दातादीन अपने लड़के गोपालको नित्य शामको सोनेसे पहले कहानियाँ सुनाया करता था। एक दिन उसने गोपालसे कहा- ‘बेटा! एक बात कभी मत भूलना कि भगवान् सब कहीं हैं।’

गोपालने इधर-उधर देखकर पूछा-‘पिताजी! भगवान् सब कहीं हैं? वह मुझे तो कहीं दीखते नहीं।’

दातादीनने कहा – ‘हम भगवान्को देख नहीं सकते; किंतु वे हैं सब कहीं और हमारे सब कामोंको देखते रहते हैं।’

गोपालने पिताकी बात याद कर ली। कुछ दिन बाद अकाल पड़ा । दातादीनके खेतोंमें कुछ हुआ नहीं। एक दिन गोपालको लेकर रातके अँधेरेमें वह गाँवसे बाहर गया । वह दूसरे किसानके खेतमेंसे चोरीसे एक गट्ठा अन्न काटकर घर लाना चाहता था। गोपालको मेड़पर खड़ा करके उसने कहा- ‘तुम चारों ओर देखते रहो, कोई इधर आवे या देखे तो मुझे बता देना।’

जैसे ही दातादीन खेतमें अन्न काटने बैठा गोपालने कहा- ‘पिताजी! रुकिये।’

दातादीनने पूछा–’क्यों, कोई देखता है क्या ?’

गोपाल–’हाँ, देखता है।’
दातादीन खेत से निकलकर मेड़ पर आया। उसने चारों ओर देखा । जब कोई कहीं न दीखा तो उसने पुत्रसे पूछा- ‘कहाँ ? कौन देखता है ?”

गोपाल—’आपने ही तो कहा था कि ईश्वर सब कहीं है और सबके सब काम देखता है। तब वह आपको खेत काटते क्या नहीं देखेगा ?’ दातादीन पुत्रकी बात सुनकर लज्जित हो गया। चोरी का विचार छोड़कर वह घर लौट आया।


Top 10 Moral stories in hindi 

मक्खीका लोभ

एक व्यापारी अपने ग्राहकको शहद दे रहा था । अचानक व्यापारीके हाथसे छूटकर शहदका बर्तन गिर पड़ा। बहुत-सा शहद भूमिपर ढुलक गया। जितना शहद व्यापारी उठा सकता था, उतना उसने ऊपर-ऊपरसे उठा लिया; लेकिन कुछ शहद भूमिमें गिरा रह गया।

बहुत-सी मक्खियाँ शहदकी मिठासके लोभसे आकर उस शहदपर बैठ गयीं। मीठा-मीठा शहद उन्हें बहुत अच्छा लगा। जल्दी-जल्दी वे उसे चाटने लगीं। जबतक उनका पेट भर नहीं गया, वे शहद चाटनेमें लगी रहीं।

जब मक्खियोंका पेट भर गया, उन्होंने उड़ना चाहा। लेकिन उनके पंख शहदसे चिपक गये थे। उड़नेके लिये वे जितना छटपटाती थीं, उतने ही उनके पंख चिपकते जाते थे। उनके सारे शरीरमें शहद लगता जाता था ।

बहुत-सी मक्खियाँ शहदमें लोट-पोट होकर मर गयीं। बहुत-सी पंख चिपकनेसे छटपटा रही थीं। लेकिन दूसरी नयी-नयी मक्खियाँ शहदके लोभसे वहाँ आती-जाती थीं। मरी और छटपटाती मक्खियोंको देखकर भी वे शहद खानेका लोभ छोड़ नहीं पाती थीं।

मक्खियोंकी दुर्गति और मूर्खता देखकर व्यापारी बोला- ‘जो लोग जीभके स्वादके लोभमें पड़ जाते हैं, वे इन मक्खियोंके समान ही मूर्ख होते हैं । स्वादका थोड़ी देरका सुख उठानेके लोभसे वे अपना स्वास्थ्य नष्ट कर देते हैं, रोगी बनकर छटपटाते हैं और शीघ्र मृत्युके ग्रास बनते हैं ।’


दो टट्टू

एक व्यापारीके पास दो टट्टू थे। वह उनपर सामान लादकर पहाड़ोंपर बसे गाँवमें ले जाकर बेचा करता था। एक बार उनमें से एक टट्टू कुछ बीमार हो गया। व्यापारीको पता नहीं था कि उसका एक टट्टू बीमार है। उसे गाँवमें बेचनेके लिये नमक, गुड़, दाल, चावल आदि ले जाना था। उसने दोनों टट्टुओंपर बराबर-बराबर सामान लाद लिया और चल पड़ा।

ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्तेपर चलनेमें बीमार टट्टूको बहुत कष्ट होने लगा। उसने दूसरे टट्टूसे कहा – ‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं अपनी पीठपर रखा एक बोरा गिरा देता हूँ, तुम यहीं खड़े रहो। हमारा स्वामी वह बोरा तुम्हारे ऊपर रख देगा। मेरा भार कुछ कम हो जायगा तो मैं तुम्हारे साथ चला चलूँगा। तुम आगे चले जाओगे तो गिरा बोरा फिर मेरी पीठपर रखा जायगा।’

दूसरा टट्टू बोला- ‘मैं तुम्हारा भार ढोनेके लिये क्यों खड़ा रहूँ? मेरी पीठपर क्या कम भार लदा है ? मैं अपने हिस्सेका ही भार ढोऊँगा।’

बीमार टट्टू चुप हो गया। लेकिन उसकी तबीयत अधिक खराब हो रही थी। चलते समय एक पत्थरके टुकड़ेसे ठोकर खाकर वह गिर पड़ा और गड्ढेमें लुढ़कता चला गया।
व्यापारी अपने एक टट्टूके मर जानेसे बहुत दुःखी हुआ । वह थोड़ी देर वहाँ खड़ा रहा। फिर उसने उस टट्टूके बचे हुए बोरे भी दूसरे टट्टूकी पीठपर लाद दिये। अब तो वह टट्टू पछताने लगा और मन-ही-मन कहने लगा – ‘यदि मैं अपने साथीका कहना मानकर उसका एक बोरा ले लेता तो यह सब भार मुझे क्यों ढोना पड़ता।’

संकटमें पड़े अपने साथीकी जो सहायता नहीं करते उन्हें पीछे पछताना ही पड़ता है।


hindi stories

सच्ची जीत

एक गाँवमें एक किसान रहता था। उसका नाम था शेरसिंह । शेरसिंह शेर-जैसा भयंकर और अभिमानी था। वह थोड़ी-सी बातपर बिगड़कर लड़ाई कर लेता था। गाँवके लोगोंसे सीधेमुँह बात नहीं करता था। न तो वह किसीके घर जाता था और न रास्तेमें मिलनेपर किसीको प्रणाम करता था। गाँवके किसान भी उसे अहंकारी समझकर उससे नहीं बोलते थे ।

उसी गाँवमें एक दयाराम नामका किसान आकर बस गया। वह बहुत सीधा और भला आदमी था। सबसे नम्रतासे बोलता था। सबकी कुछ-न-कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते थे और अपने कामों में उससे सलाह लिया करते थे ।

गाँवके किसानोंने दयारामसे कहा – ‘भाई दयाराम! तुम कभी शेरसिंहके घर मत जाना। उससे दूर ही रहना । वह बहुत झगड़ालू है।’

दयारामने हँसकर कहा- ‘शेरसिंहने मुझसे झगड़ा किया तो मैं उसे मार ही डालूँगा।’

दूसरे किसान भी हँस पड़े। वे जानते थे कि दयाराम बहुत दयालु है। वह किसीको मारना तो दूर, किसीको गाली नहीं दे सकता। लेकिन यह बात किसीने शेरसिंहसे कह दी। शेरसिंह क्रोधसे लाल हो गया। वह उसी दिनसे दयारामसे झगड़नेकी चेष्टा करने लगा। उसने दयारामके खेतमें अपने बैल छोड़ दिये। बैल बहुत-सा खेत चर गये; किंतु दयारामने उन्हें चुपचाप खेत से हाँक दिया।

शेरसिंहने दयारामके खेतमें जानेवाली पानीकी नाली तोड़ दी। पानी बहने लगा। दयारामने आकर चुपचाप नाली बाँध दी। इसी प्रकार शेरसिंह बराबर दयारामकी हानि करता रहा; किंतु दयारामने एक बार भी उसे झगड़नेका अवसर नहीं दिया।

एक दिन दयारामके यहाँ उनके सम्बन्धीने लखनऊ के मीठे खरबूजे भेजे। दयारामने सभी किसानों के घर एक-एक खरबूजा भेज दिया; लेकिन शेरसिंहने उसका खरबूजा यह कहकर लौटा दिया कि ‘मैं भिखमंगा नहीं हूँ। मैं दूसरोंका दान नहीं लेता।’

बरसात आयी। शेरसिंह एक गाड़ी अनाज भरकर दूसरे गाँवसे आ रहा था। रास्तेमें एक नालेके कीचड़में उसकी गाड़ी फँस गयी। शेरसिंहके बैल दुबले थे। वे गाड़ीको कीचड़मेंसे निकाल नहीं सके। जब गाँवमें इस बातकी खबर पहुँची तो सब लोग बोले–‘शेरसिंह बड़ा दुष्ट है। उसे रातभर नालेमें पड़े रहने दो।’

लेकिन दयारामने अपने बलवान् बैल पकड़े और नालेकी ओर चल पड़ा। लोगोंने उसे रोका और कहा–’ –’दयाराम! • शेरसिंहने तुम्हारी बहुत हानि की है। तुम तो कहते थे कि मुझसे लड़ेगा तो उसे मार ही डालूँगा। फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जाते हो ?”

दयाराम बोला–’मैं आज सचमुच उसे मार डालूँगा। तुम लोग सबेरे उसे देखना।’

जब शेरसिंहने दयारामको बैल लेकर आते देखा तो गर्वसे बोला- ‘तुम अपने बैल लेकर लौट जाओ। मुझे किसीकी सहायता नहीं चाहिये । ‘

दयारामने कहा – ‘तुम्हारे मनमें आवे तो गाली दो, मनमें – आवे मुझे मारो, इस समय तुम संकटमें हो। तुम्हारी गाड़ी फँसी है और रात होनेवाली है। मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं मान सकता।’

दयारामने शेरसिंहके बैलोंको खोलकर अपने बै गाड़ीमें जोत दिये। उसके बलवान् बैलोंने गाड़ीको खींचकर नालेसे बाहर कर दिया। शेरसिंह गाड़ी लेकर घर आ गया । उसका दुष्ट स्वभाव उसी दिनसे बदल गया। वह कहता था— ‘दयारामने अपने उपकारके द्वारा मुझे मार – ही दिया। अब मैं वह अहंकारी शेरसिंह कहाँ रहा।’ अब वह सबसे नम्रता और प्रेमका व्यवहार करने लगा। बुराईको भलाईसे जीतना ही सच्ची जीत है। दयारामने सच्ची जीत पायी।


 नेकी का बदला

एक वृक्षकी डालपर एक कबूतर बैठा था। वह वृक्ष नदीके किनारे था । कबूतरने डालपर बैठे-बैठे नीचे देखा कि नदीके पानीमें एक चींटी बहती जा रही है। वह बेचारी बार-बार किनारे आना चाहती है; किंतु पानीकी धारा उसे बहाये लिये जा रही है। ऐसा लगता है कि चींटी थोड़े क्षणोंमें ही पानीमें डूबकर मर जायगी। कबूतरको दया आ गयी। उसने चोंचसे एक पत्ता तोड़कर चींटीके पास पानीमें गिरा दिया। चींटी उस पत्तेपर चढ़ गयी। पत्ता बहकर किनारे लग गया। पानीसे बाहर आकर चींटी कबूतरकी प्रशंसा करने लगी।

उसी समय एक बहेलिया वहाँ आया और पेड़के नीचे छिपकर बैठ गया। कबूतरने बहेलियेको नहीं देखा । बहेलिया अपना बाँस कबूतरको फँसा लेनेके लिये ऊपर बढ़ाने लगा । चींटीने यह सब देखा तो पेड़की ओर दौड़ी। वह बोल सकती तो अवश्य पुकारकर कबूतरको सावधान कर देती; किंतु बोल तो वह सकती नहीं थी। अपने प्राण बचानेवाले कबूतरकी रक्षा करनेका उसने विचार कर लिया था। पेड़के नीचे पहुँचकर चींटी बहेलियेके पैरपर चढ़ गयी और उसने उसकी जाँघमें पूरे जोरसे काट लिया।

चींटीके काटनेसे बहेलिया चमक गया। उसका बाँस हिल गया। इससे पेड़के पत्ते खड़क गये और कबूतर सावधान होकर उड़ गया।

जो संकटमें पड़े लोगों की सहायता करता है, उसपर संकट आनेपर उसकी सहायताका प्रबन्ध भगवान् अवश्यकर देते हैं ।


 किसान और सारस

एक किसान चिड़ियोंसे बहुत तंग आ गया था। उसका खेत जंगलके पास था। उस जंगलमें पक्षी बहुत थे। किसान जैसे ही खेतमें बीज बोकर, पाटा चलाकर घर जाता, वैसे ही झुंड-के-झुंड पक्षी उसके खेतमें आकर बैठ जाते और मिट्टी कुरेद-कुरेदकर बोये बीज खाने लगते। किसान पक्षियों को उड़ाते-उड़ाते थक गया। उसके बहुत-से बीज चिड़ियोंने खा लिये। बेचारेको दुबारा खेत जोतकर दूसरे बीज डालने पड़े।

इस बार किसान एक बहुत बड़ा जाल ले आया। उसने पूरे खेतपर जाल बिछा दिया। बहुत-से पक्षी खेतमें बीज चुगने आये और जालमें फँस गये। एक सारस पक्षी भी उस जालमें फँस गया।

जब किसान जालमें फँसी चिड़ियोंको पकड़ने लगा तो सारसने कहा – ‘आप मुझपर कृपा कीजिये। मैंने आपकी कोई हानि नहीं की है। मैं न मुर्गी हूँ, न बगुला और न बीज खानेवाला कोई और पक्षी। मैं तो सारस हूँ। खेतीको हानि पहुँचानेवाले कीड़ोंको खा जाता हूँ। मुझे छोड़ दीजिये।’ मैं

किसान क्रोधमें भरा था। वह बोला- ‘तुम कहते तो ठीक हो, किंतु आज तुम उन्हीं चिड़ियोंके साथ पकड़े गये हो, जो मेरे बीज खा जाया करती हैं। तुम भी उन्हींके साथी हो। तुम इनके साथ आये हो तो इनके साथ दण्ड भी भोगो ।’

जो जैसे लोगों के साथ रहता है, वह वैसा ही समझा जाता है। बुरे लोगों के साथ रहनेमें बुराई न करनेवालोंको भी दण्ड और अपयश मिलता है। उपद्रवी चिड़ियोंके साथ आनेसे सारसको भी बन्धनमें पड़ना पड़ा।


लालची बंदर

एक बंदर एक मनुष्यके घर प्रतिदिन आता था और ऊधम करता था। वह कभी कपड़े फाड़ देता, कभी कोई बर्तन उठा ले जाता और कभी बच्चोंको नोच लेता। वह खाने-पीनेकी वस्तुएँ ले जाता था, इसका दुःख उन घरवालों को नहीं था; किंतु उस बन्दरके उपद्रवसे वे तंग आ गये थे ।

एक दिन घरके स्वामीने कहा-‘ -‘मैं इस बंदरको पकड़कर बाहर भेज दूँगा।’ उसने एक छोटे मुँहकी हाँड़ी मँगायी और उसमें भुने चने डालकर हाँड़ीको भूमिमें गाड़ दिया। केवल हाँड़ीका मुँह खुला हुआ था। सब लोग वहाँसे दूर चले गये।

वह बंदर घरमें आया। थोड़ी देर इधर-उधर कूदता रहा। जब उसने गड़ी हुई हाँड़ीमें चने देखे तो हाँड़ीके पास आकर बैठ गया। चने निकालनेके लिये उसने हाँड़ीमें हाथ डाला और मुट्ठीमें चने भर लिये। हाँडीका मुँह छोटा था। उसमें से बँधी मुट्ठी निकल नहीं सकती थी। बंदर मुट्ठी निकालने के लिये जोर लगाने और कूदने लगा। वह चिल्लाया और उछला, किन्तु लालचके मारे मुट्ठीके चने उसने नहीं छोड़े।

बंदरको घरके स्वामीने रस्सीसे बाँध लिया और बाहर भेज दिया। चनोंके लालच करनेसे बंदर पकड़ा गया। इसीसे कहावत है—’लालच बुरी बला है।’

HINDI GRAMMER : हिंदी व्याकरण
1- भाषा की ध्वनि व्यवस्था
२। हिंदी में वाक्य व्यवस्था
३। हिंदी पदबंध
४। कारक

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