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Muhavare | मुहावरे
Muhavare in Hindi | Hindi muhavare | Idioms meaning in Hindi
muhavare मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है – “अभ्यास” मुहावरे एक विशिष्ट संदर्भ में उपयोग किए जाने वाले भाव हैं जो इसके शाब्दिक अर्थ से अलग अभ्यास के रूप में उपयोग किए जाते हैं। कभी-कभी इसका प्रयोग वाक्य के आरंभ में, कभी मध्य में और कभी अंत में किया जाता है। विशेष अर्थ देने वाले वाक्यांश मुहावरे कहलाते हैं। muhavare मुहावरे वाक्यांश हैं, लेकिन वे अपने समग्र अर्थ को नहीं दर्शाते हैं। उनका एक विशेष अर्थ है। इनका प्रयोग भाषा को अद्भुत बनाता है। वे भाषा की शोभा बढ़ाते हैं। आम आदमी बोलचाल की भाषा में मुहावरों का भी प्रयोग करता है।
दूसरी ओर, एक कहावत पूरी तरह से सार्थक वाक्य है जिसमें लोक जीवन के बारे में सच्चाई की मार्मिक अभिव्यक्ति है। व्यापक सार्वजनिक अनुभव के रूप में लोग अक्सर अपने बयानों या विचारों का समर्थन करने के लिए लोककथाओं का उपयोग करते हैं भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति को मजबूत, प्रभावी, आकर्षक और साहित्यिक बनाने के लिए मुहावरे और कहावतें भाषा के उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके प्रयोग से आप कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों को गहराई से व्यक्त कर सकते हैं।
मुख्य बातें –
- “मुहावरे” एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है “अभ्यास”। इसलिए, भाषा शब्दों का एक समूह है जो अपने सामान्य अर्थों के अतिरिक्त विशिष्ट अर्थ व्यक्त करता है।
- शाब्दिक अर्थ के अलावा, मुहावरों के अलग-अलग अर्थ होते हैं। मुहावरा एक भाषा में प्रयुक्त शब्द या वाक्यांश है। हम इसका अर्थ नहीं मानते हैं, लेकिन हम मानते हैं कि संदर्भ में इसका एक अनूठा, विशेष, प्राकृतिक या सुंदर अर्थ है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, “मुहावरे रचनात्मक वाक्यांश कहलाते हैं, जिनसे कुछ विशिष्ट अर्थ उत्पन्न होते हैं। यदि उनके गठन में कोई अंतर है, तो विशिष्ट अर्थ प्रकट नहीं होंगे।
हिंदी में 10,000 से अधिक मुहावरे होंगे। लेकिन यहाँ हैं कुछ मुहावरे हैं, जो आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं, उनके अर्थ और वाक्यों में उनका उपयोग नीचे दिए गए हैं।
‘अ ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- अंक देना (गले लगाना) – शत्रु को अंक देनेबाले लोग कम ही होते है। अंक भरना (प्यार करना, स्नेह से चिपटा लेना) – माता ने पुत्रके देखते ही अंक में भर लिया।
- अंक लगाना (अलिङ्गन करना, गले लगाना) – मौका पड़ने पर अपने शत्रुको पक्षधर पाकर अमित ने उसे अंक लगा लिया।
- अपना अंकुश देना (दबाव डालना, वश में करना, दुःख देना) – बच्चों पर उतना ही अंकुश देना चाहिए जितने से वे प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा का पालन करते रहे।
- अंग-अंग खिल जाना (प्रत्येक अंग से प्रसन्नता प्रकट होना) – मनोरमा अपने मनोभावों को मुझ से छिपाना चहती थी पर अंग-अंग खिल जानेसे कुछ भी छिपा न रहा।
- अंग टूटना (थकान का दर्द ) – आज इतना परिश्रम करना पड़ा कि अंग टूट रहे हैं। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- अंगार बनना (लाल होना, क्रोधित होना) – कमजोर व्यक्तित्व छोटी-सी बात पर अंगार बन जाते हैं।
- अंगारों पर पैर रखना (जान-बुझ कर अपने को खतरे में डालना या हानिकारक कार्य करना) – अपने माता-पिता के इक लौते बेटे हो। इस तरह अंगारों पर पैर रखना तुम्हारे लिए उचित नही है।
- अंगारों पर लोटना (डाह होना, दुःख सहना) – मेरे पड़ोसे मेरी तरक्की देखकर अंगारों पर लोटने लगे।
- अंगूठा चूमना (खुशामद या चापलुसी करना) -रामप्यारे के मंत्री होते ही बड़े-बड़े अधिकारी, तक उसका अंगुठा चूमने लगे।
- अंगूठा दिखाना (समय पर इंकार करना, वक्त पर धोखा देना)–सच्चे दोस्त किसी भी हालत में अंगुठा नहीं दिखाते।
- अंचरा पसारना (माँगना, याचना करना) -हे सती मैया, मैं आपके आगे अंचरा पसारती हूँ, मेरी मनोकामना पूरी करें।
- अंड-वंड या अंट-संट कहना (भला-बुरा करना) – जिसके बारे मे अंड-बंड बक जारहे हो अगर वह सुन लेगा तो तुम्हारा हुलिया दुरुस्त कर देगा।
- अंत बनाना (परलोक बनाना, किसी काम का परिणाम अच्छा होना) – अंत बने या न बने पर मुझसे इस गंदे पोखर का पानी नहीं पीया जायेगा।
- अंधा बनना (आगे-पीछे कुछ न देखना) – धर्म के पीछे अंधा बनने से गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलेगी?
- अंधा बनाना (धोखा देना) –इस मायाजाल ने किसे अंधा बनाकर अपने जाल में फ़ांस लिया ।
- अंधा होना (विवेक-भ्रष्ट होना) – प्रतिकूल परिस्थितियों में पड़कर बहुत से लोग अंधे हो जाते हैं।
- अंधाधुंध लुटाना (बिना विचारे खर्च करना) – बाप की कमाई है, अंधाधुंध लुटा लो अपनी कमाई होती तो देखता, कितना लुटाते ?
- अंधे के लकड़ी या अंधे की लाठी (गरीबी या बुढ़ापे का एक मात्र सहारा) – श्रवण कुमार अपने माता-पिता के लिए अंधेकी लकड़ी (अंधे की लाठी) था।
- अंधे के आगे रोना (अज्ञानी के सामने ज्ञान की बातें करना) – ऐसे जमघट में आपका रामचरित मानस प्रवचन अंधे के आगे रोना जैसा है।
- अंधेर नगरी (धांधली का बोलबाला) – चलो, चलो! यह अंधेर नगरी है। यहाँ हर सामान एक रुपये में मिलता है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- अंधे के हाथ बटेर लगना (बिना प्रयत्न के अच्छी वस्तु प्राप्त होना) – बाप की कमाई से खूब मौज उड़ाओ, क्योंकि अंधे के हाथ बटेर जो लग गई है।
- अंधेरे घर का उजाला या दीपक (इक लौती संतान) – यह लड़की मेरे अंधेरे घर का उजाला है। पल भर में ही उसके अंधेरे घरका दीपक बुझ गया।
- अक्ल चकराना (चकित होना, हैरान होना)– ताजामहल के सौन्दर्य को देखकर अक्ल चकराने लगती है। .
- अक्ल का दुश्मन (बज्र मूर्ख)– अरे अक्ल के दुश्मन! कही दियासलाई की तीली से बिजली का बल्व जलता है।
- अक्ल मारी जाना (विवेकभ्रष्ट होना)– तुम्हारी तो अक्ल ही मारी गई है, तुम क्या खाक काम करोगे।
- अक्ल का घास चरना या खाना (अक्ल में कुछ न होना)– तुम्हारा अक्ल तो हर समय घास चरती रहती है।
- अक्ल के घोड़े दौड़ाना (कल्पना करना अन्याज लगाना) –कुछ लोग अक्लके घोड़े दौड़ाने में बड़े माहिर होते हैं।
- अक्ल के पीछे लाठी लिये फिरना (मूखता करना) – अक्ल के पीछे लाठी लिये फिरने से शायद ही किसी काम में सफलता मिले।
- अक्ल पर पत्थर पड़ना (अक्ल जाती रहनी, बुद्धि भ्रष्ट होना) – अक्ल पर पत्थर पड़नेके कारण ही रावण ने सीताजी का अपहरण करके रामजी से रार मोल ली।
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता (अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता) – मिलजुल कर रहने से ही बड़े से बड़ा कार्य किया जा सकता है क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
- अगले जमाने का आदमी (सीधा-सादा, ईमानदार) – वर्तमान प्रगतिशील युग में जमाने का आदमी बुद्ध समझा जाता है।
- अठखेलियाँ करना (शोखियाँ करना, नाजोनखरा करना)– आपको अठखेलियाँ सुझी हैं जबकि हम आपकी मुहब्बत में गिरफ्तार हैं।
- अड़ियल टट्टू (मुँह जोह कर काम करनेवाला, सुस्त आदमी)–मुत्रा पैसा अड़ियल है कि कहने पर तो कुछ काम करता है अन्यथा सोता रहता है।
- अढ़ाई दिन की हुकूमत (कुछ दिनें की शानोशौकन) – हुजूर, जरा होशियारी से हुकूमत करें, वरना अढ़ाई दिन की हुकूमत खत्म होते देर नहीं लगेगी।
- अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना (सबसे अलग राय कायम रखना) – मित्रमंडल के बीच तुम्हारी अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना मुझे तो
- अन्त पाना (पूरी तरह समझ लेना) -हमारे गम्भीर प्राचार्य का अन्त पाना कठिन है।
- अन्न-जल उठना (रहने का संयोग न होना, मरना) – लगता है, तुम्हारा यहाँ से अन्न जल उठ गया है जो सब से लड़ते-झगड़ते हो।
- आँख की तिल होना (बहुत प्यारा) – ममता का इक लौता बेटा उसकी आँख का तिल है ।
- आँख दिखाना (रोब या अवज्ञासूचक दृष्टि से देखना) – खबरदार! आँख दिखाओगे तो जीते जी खोद कर गाड़ दूँगा।
- आँख बचाना (बेमुरौब्बत हो जाना) – जब से उसकी शादी हुई है वह मुझसे आँख बचा कर आती है और चली जाती है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- आँख मारना (इशारा करना) – दीपा आँख मार कर बुलाने में दक्ष है। मेरे आँख मारते ही चले आना।
- आँख का पानी ढल आना (निर्लज्ज हौ जाना) – रेशमा के मुँह लगना बेकार है क्योकि उसकी आँख का पानी ढल गया है।
- आँख पर परदा पड़ना (अज्ञानी होना) – घमंडी व्यक्ति के आँखों पर परदा पड़ जाता ।
- आँख का परदा हटना (भ्रम दूर होना, ज्ञान होना) – आँख का परदा हटते ही अभितेज को अपने पराये का सही पहचान हो गई।
- आँख की पुतली (बहुत प्यारा) – गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्यकारों की आँख की पुतली थे।
- आँख लगाना (बुरी नजर से देखना) – बिन्नी को डिठौना लगा दो ताकी कोई आँख लगाने न पाये।
- आँखे खुलना (होश आना, सावधान होना) – नारी मुक्ति आन्दोलन ने जब नारियों की आँखे खोल दी।
- आँखें चार होना (सामना होना, भेंट होना, नजर से नजर मिलना) – जब आँखें चार होती हैं, पहचान हो ही जाती है।
- आँखे मूँद लेना (ध्यान न देना, मर जाना) – हमें अपने अतीत से आँखें नहीं मूँद लेनी चाहिए। आज सायंकाल उसकी माता ने आँखें मूँद ली।
- आँखे बिछाना (प्रेम से स्वागत करना) – शिक्षामंत्री को राह में छात्र समुदाय आँखें बिछाये बैठा रहा। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- आँखे पथरा जाना (मर जाना) – ठोकर खाकर गिरते ही उसकी आँखे पथरा गई।
- आँखे फेर लेना (उदासीन होना) -ज्योंही उसका स्वार्थ सधा उसने मेरी और से आँखे फेर ली।
- आँखें उमड़ना (दुःख से आँखों में आँस आना)-जब-जब में ‘देवदास’ उपन्यास पड़ता। हूँ, मेरी आँखें उमड़ जाती है।
- आँखों उलट जाना (बेमुरोब्बत होना, सर्व होना) -लाटरी में एक लाख मिलते ही उसकी आँखें पलट गई।
- आँखे निकालना (क्रोध करना या धमकी देना) – बच्चे की एक छोटी-सी भूल कर आँखें निकालना ठीक नहीं है।
- आँखें का उजाला (बहुत प्यारा) – शेरा अपने मालिक की आँखों का उजाला है।
- आँखों में खटकना (अच्छा न लगना) – न जाने क्यों कुछ दिन से चेतन मेरी आँखोंमें खटकने लगा है।
- आँखों में खून उतरना (अधिक क्रोध करना) – पुत्र के दुष्कर्म की बात सुनकर पिता की आँखों में खून उतर आया।
- आँखों से उतर जाना (सम्मान घट जाना)– सज्जन व्यक्ति दुराचार के कारण भी अपने समाज की आँखों से उतर जाता है।
- आँखों में धूल झोंकना या डालना (धोखा देना) – दूसरों की आँखों में धूल झोंकना अच्छी बात नहीं है । ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- आँखों में रात काटना (नींद न आना, रात भर जागते रहना) – मेला देखते देखते रात आँखों में कट गई।
- आँखों में समा जाना (अत्यन्त प्रिय होना) – मीरा के गिरिधर गोपाल की छवि उसकी आँखों में समा गई थी।
- आँखों के सामने अँधेरा छाना (अज्ञान का अधिकार होना, संसार सुना दिखाई देना) – इकलौतो संतान के दम तोड़तेही माता-पिता की आँखों के सामने अँधेरा छा गया।
- आँच न आने देना (हानि न होने देना) –यार ! बेफिक्र रहो, जीते-जी तुम्हारे उपर आँच न आने दूँगा।
- आँचल में बाँधना (अच्छी तरह याद रखना) – तुमने बड़े काम की बात बतायी है। मैं इसे आँचल में बाँध कर रखूँगा।
- आकाश कसम (असम्भव) – प्रारम्भ में चन्द्रमा पर पहुँचने की बात आकाश कुसुम लगती थी।
- आकाश-पाताल एक करना (अतिशय प्रयास करना) – खोये हुए पुत्र की खोज में माता पिता ने आकाश-पाताल एक कर दिया।
- आकाश-पाताल का अन्तर (अत्यधिक भेद) – तुम भी किसकी तुलना करते हो, उसमें और तुममे आकाश-पाताल का उन्तर है।
- आकाश से बातें करना (बहुत ऊँचा होना) – यह बहुमंजिला इमारत तो आकाश से बातें करती है ।
- आग बबूला होना (गुस्से से भरा होना) – इस समय प्रधानाध्यापक से कुछ कहने मत जाओ, वह आग बबूला हुए बैठे है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- आग लगना (क्रोधित होना, द्वेष होना, महँगी होना) – अभद्र बातें सुनते ही मेरे शरीर में आग लग गई। मेरी पदोन्नति देखकर मेरे पड़ोसियों को आग लग गई। बाजार जाने पर दिखलाई देता है कि हर चीजों में आग लगी।
- आटे दाल का भाव मालूम होना (कठिनाई का वास्तविक ज्ञान होना) – पिता की सम्पत्ति पर मौज-मस्ती कर लो जब कमाना पड़ेगा तब आटे-दाल का भाव मालूम होगा।
- आठ-आठ आँसू रोना (बुरी तरह पछताना) – जब काम दिलाया तुम काम छोड़कर भाग खड़े हुए। अब तुम्हें खोजने पर भी काम नहीं मिल पा रहा है।
- आड़ देना (मदद देना) – जो परोपकारी व्यक्ति होते हैं, उसके न रहने पर उनके परिवार बालों को आड़ देनेवालों की कमी नहीं रहती।
- आड़ होना (संरक्षण मिलना) – गुरु की आड़ होने पर ही शिष्य तरक्की करता है।
- आड़े आना (रुकावट डालना) – जब कोई अनवरत उन्नति कर रहा हो तो आड़े न आना चाहिए।
- आपे से बाहर होना (सख्त नाराज होना) – आपके भाई साहब तो छोटा-सी बात पर भी आपे से बाहर हो जाते हैं।
- आसन डोलना (विचलित होना) – धन के सम्मुख धर्म का आसन भी डोल जाया करता है।
- आस्तीन का साँप (कपटी मित्र) – मित्रों के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए। पता कोई आस्तीन का साँप हो ?
- आसमान टुट पड़ना (संकट उपस्थित होना) – दस लोग बिना बुलाये खाने पर आ गये तो कौन सा आसमान टूट पड़ा?
‘इ’ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- इतिश्री करना या होना (अन्त करना, समाप्त होना) – अब प्रस्तुत कार्य की इतिश्री करके ही दम लेना है। बिना इस कार्य की इतिश्री हुए पिण्ड छुटने वाला नहीं है।
- इधर-उधर की हाँकना (गप्पे मारना) – तुम काम-काज करने के बजाय इधर-उधर की हाँकने में ही समय बरबाद करते हो।
- ईंट से ईंट बजाना (नष्ट करना, विनाश करना) – यदि तुमने मेरे काम को बिगड़ने की कोशिश की तो ईंट से ईंट बजा दूँगा।
- ईट का जवाब पत्थर से देना (किसी की दुष्टता का जवाब दुष्टता से देना) – हम भारतवासी दुशमनों की ईंट का जवाब पत्थर से देने में माहिर हैं।
- ईद का चाँद होना (बहुत दिनों के बाद दिखाई देना) – मसूरो में क्या रहने लगे, तुम तो ईद के चाँद हो गये।
‘ उ, ऊ, ए ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- उगल देना (गुप्त बात प्रकट करना) – दारिगा के भय से चोर ने सारी बात उगल दी।
- उँगली पकड़कर पहुँचा पकड़ना (थोड़ा पाने पर और अधिक चाहना)–भारत में अंग्रेजों की नीति उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ने जैसी थी।
- दुकान फीका एकवान (दिखावटी काम) – कोतवाल साहब के यहाँ दावत की ऊँची तैयारियाँ एक पखवारे से हो रही थीं पर दावत खानेवालों को कहते सुना गया ‘ऊँची दुकान फीका पकवान’।
- ऊँचे-नीचे पैर पड़ना (गलती होना, चरित्र कलंकित होना)-सुरसतिया के बाप ने अगर उसकी शादी ठीक समय पर कर दी होती तो उसके पैर ऊँचे नीचे न पड़ते।
- ऊँट के मुँह में जीरा (ज्यादा खानेवाले को बहुत कम देना) -चोबा जी के पत्तल में मात्र दम पूड़ियाँ रखना ऊँट के मुँह में जीरा-देना है।
- एक आँख से देखना (बराबर मानना, सबके साथ एक जैसा व्यावहार करना)– हमारी माताजी हम सभी को एक आँख से देखती है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- एक आँख न भाना (तनिक भी आच्छि न लगना) – कान खोलकर सुन लो। तुम्हारे उजड्डु दोस्त का यहाँ आना मुझे एक आँख नहीं भाता।
- एक और एक ग्यारह होना (संगठन में ही शक्ती है) – आज की दुनिया में एक और एक ग्यारह होने के सिद्धान्त को माननेवाला समाज ही प्रगति कर सकता है।
- एक पंथ दो काज (एक साथ दो काम होना) – चलो, मन्दिर में दर्शन भी कर आएँगे और सायंकालीन भ्रमण भी कर लेंगे। इस तरह एक पंथ दो काज हो जाएगा।
- ओखली में सिर देना (जानबूझ कर झझंट में पड़ना)– पति-पत्नी की लड़ाई के बीच में दखल देना ओखली में सिर देना है।
- आँधे मुँह गिरना (बुरी तरह धोखा खाना) – औंधे मुँह गिरने के बाद ही इन्सान संभल कर चलता है।
‘ क ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- कंठ फूटना (आवाज निकलना) – क्या खाक संगीत सीखोगे ? तुम्हारा तो कंठ ही नहीं फूट रहा है।
- कंठ बैठ जाना (गला बैठना) -चिल्लाते-चिल्लाते मेरा तो कंठ ही बैठ गया।
- कंठ होना (जबानी याद होना) – कविता कंठ हो गई।
- कटे पर नमक छिड़कना (दुःखी को और दुख देना) – बेचारे गुलफाम की असफलता पर व्यंग करके क्यों कटे पर नमक छिड़क रहे हो ? ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- कठपुतली होना (दूसरे की राय और अक्ल पर चलना) – रामु जब से अपनी जोरू के हाथ की कठपुतली हुए हैं, अपनी माँ को एक भी खत नहीं डाला।
- कमर टूटना (हैसला न रहना, हिम्मत पस्त होना) –जवान बेटे के मरते ही सोमा की तो कमर ही टूट गई।
- कमर सीधी करना (सोकर आराम करना) – अरे यार! जरा, कमर सीधी कर लें तो चलें।
- करवटें बदलना (बेचैन रहना) – जब तो हम रात भर जाग जाग कर करबटें बदलते
- कलई खुलना (असलियत प्रकट होना, पोल खुलना) – ठगों में से एक ने सबकी कलई खोल दी।
- कल पड़ना (चैन मिलना) – कल पूरे दिन पानी बरसने से जरा कर पड़ा।
- कलम तोड़ना (अनूठी बात लिखना, बढ़िया लिखना)– इस सप्ताह के ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित कहानी जरुर पढ़ लेना लगता है कहानीकार ने कलम ही तोड़ दी हैं।
- कलेजा ठण्डा करना (किसी को खुश करना, चैन देना) – तुम्हारे विना उसका कलेजा कोई भी ठण्डा नहीं कर सकता।
- कलेजा ठण्ड होना (असीम शान्ति मिलना) – फुलन देवी के आत्मसमर्पण करने पर क्षेत्रीय जनता का कलेजा ठण्डा हो गया।
- कलेजा निकला कर रख देना (मन की बात स्पष्ट कर देना) – माँ ने अपने बेटे के सामने कलेजा निकल कर रख दिया ।
- कलेजा पत्थर कर करना (विपत्ति पड़ने पर अत्यन्त धैर्य धारण करना) – अपनी इकलौती पुत्रो की मौत पर पिता ने अपना कलेजा पत्थर कर लिया।
- कलेजा मुँह को आना (बहुत बेचैन या भयभीत होना) – बाघ को अपने सन्निकट देखते ही शिकारी का कलेजा मुँह को आ गया।
- कलेजे पर साँप लोटना (डाह करना, जलन होना) – जो हर प्रकार से सम्पन्न है, दूसरो की उन्नती से उसके कलेजे पर साँप नहीं लोटता।
- कागज घोड़े दैड़ना, (केबल लिखा-रड़ी करना) – आजकल सरकरी कार्यालयों में मात्र कागजी घोड़े दैड़ते है, काम कुछ भी नहीं होता।
- कान उठाना (चौकन्ना होना) – अपने सामने सर्प को देख कर गाय ने कान उठा लिये।
- कान खोलना (सावधान करना)– तुम लोग कान खोल कर सुन लो कि बिना पूरा काम किये मजदूरी नहीं दी जायेगी। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- कान खड़े होना (होशियार होना) -सौतेली माता के रंग-ढंग देखकर सैतेले पुत्र के कान खड़े हो गये ।
- कान देना (ध्यान देना) –गुरुजन की बातों पर अवश्य ही कान देना चाहिए।
- कान पर जूं न रंगना (ध्यान न देना) – जनता के बहुत चीखने-चिल्लाने पर भी अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगी ।
- कान पकड़ना (काई काम आगे न करने की कसम खाना) – कान पकड़ो कि बिना कहे कभी सिनेमा देखने नहीं जाओगे।
- कान फूँकना (दिक्षा देना, बहकाना)– आचार्य जी ने जब से सीताराम के कान फूंके । पिता ने पुत्री के कान फूँक कर पति से सम्बन्ध विच्छेद करा दिया।
- कान भरना (चुगली खाना, पीठ पीछे शिकायत करना) – किसने तुम्हारे कान भर दिये कि तुमने मेरे यहाँ आना-जाना ही छोड़ दिया।
- कान लगाना (ध्यान देना) – नये प्रचार्य की बातें कान लगाने योग्य हैं।
- कानों में तेल डालना (लापरवाह होना, कुछ न सुनना) – मैं चिल्लाते-चिल्लाते थक गया और तुम कानों में तेल जाले बैठे रहे।
- काठ मारना (स्तब्ध हो जाना) – अपने प्रिय मित्र की मौत का समाचार सुनते ही इसे काठ मार गया।
- काम आना (युद्ध में मारा जाना) – द्वितीय विश्वयुद्ध में असंख्य सैनिक काम आये। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- काम तमाम करना (मार डालना) – सच! उस बदमाश का किसने काम तमाम कर दिया ?
- काला उक्षर भैंस बराबर (अनपढ़ या निरामूर्ख होने का लक्षण) – हरिया पड़ाई-लिखाई के विषय में काला अक्षर भैंस बराबर है।
- काले कोसों जाना (बहुत दूर जाना) – इस मामूली-सी नोकरी के लिए काले कोसों जाकर क्या बचाओगे ? इस पर भी कभी बिचार किया है।
- काँटा निकालना (बाधा दूर होना) – उस धूर्त साहूकार का कर्ज तुमने अदा कर दिया? चलो काँटा निकला।
- काँटा बोना (अहित करना) – किसी के लिए काँटा बोना अच्छी बात नहीं है।
- किस खेत की मूली (महत्वहीन)-भारतीय सैनिकों के सामने पाकिस्तानी सैनिक किस खेत की मूली है ?
- किरकिरा होना (विघ्न पड़ना)-जलसे में रुना लैला के शरीक न होने से सारा मजा किरकिरा हो गया।
- किताब का कीड़ा होना (पढ़ने के सिवा कुछ न करना) – स्वस्थ शरीर और उन्नत मस्तिष्क के लिए विद्यार्थी को चाहिए कि वह किताब का किड़ा ना होकर खेल-खूद में भी भाग ले।
- किनारे लगना या पहुंचना (अन्त तक पहुंचना) – सात महीने के अथक परिश्रम के बाद ही उसे किताब लिखने के काम को किनारे लगाने या पहुँचाने में सफलता मिली।
- किस्मत फूटना (दुर्भाग्य होना, बड़ा नुकसान उठाना) – खड़ी फसल में आग लगने से महतो की किस्मत ही फूट गई। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- किस मर्ज की दवा (किस काम के) – चाहते ही चपरासीगीरी पर किसी को सलाम करोगे नहीं। आखिर तुम किस मर्ज की दवा हो ?
- कुआँ खोदना (दूसरे को हानि पहुँचाने का उपाय करना, जीविका-निर्वाह के लिए परिश्रम और प्रयास करना ) – जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है, उसमें उसे खुद गिरना पड़ता है। इस जिन्दगी में मुझे नित्य कुआँ खोदना और पानी पीना है।
- कुत्ते की मौत मरना (बुरी तरह मरना) – आर्थिक परिस्थिति अच्छी न होने के कारण हमारे देश में कितने ही लोग कुत्ते की मौत मरते हैं।
- कोढ़ में खाज होना (संकट पर संकट आना)-पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक तो सूखे से ही हाहाकार मचा हुआ था तिस पर लगे हाथ कोढ़ में खाज जैसी बाढ़ भी आ गई।
- कोसों दूर भागना (बहुत अलग रहना) – चरस की क्या बात मैं तो सिगरेट के धुएँ तक से कोसों दूर भागता हूँ। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- कोल्हू का बैल (हर वक्त काम में व्यस्त रहने वाला, कठोर परिश्रमी) -आई. ए. एस. की प्रतियोगिता में बैठने तथा सफल होना के लिए कोल्हू का बैल ही बनना पड़ना है
- कौड़ी का हौ जाना (परम निर्धन हौ जाना, मान-मार्यादा नष्ट होना) –भाग्य के पलटते ही चिरन्जीमल कौड़ो के होकर रह गये।
- कोड़ी का तीन होना (अत्याधिक तुच्छ होना)-मुरारी को पहले ही काई नहीं पुछता था अब कौड़ी का तीन होने पर कौन पूछेगा ?
- कौड़ियों के मोल (बहुत सस्ता) – कुजड़े ने अमरूद कौड़ियों के मॉल बेच दिये।
‘ ख‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )muhavare in hindi
- खटाई में पड़ना (झमेले में पड़ना)– तुम्हारी गलती से मेरा बना बनाया काम कहते में पड़ गया ।
- खबरे की घंटी (विपत्ति की सूचना) – खतरे की घन्टी बजते ही बैंक के सारे अधिकारी कर्मचारी सतर्क हो गये।
- खबर लेना (मारना, फटकारना; निन्दा करना) – लगता है, बिना खबर लिए वह शैतानी से बाज नहीं आयेगा।
- ख्याली पुलाव पकाना (कल्पना के महल खड़े करना)– हमारे नेताजी बैठ-बैठ मन्त्री का ख्याली पुलाव पकाते रहते है।
- खरी-खोटी सुनाना (भली वुरी कहना ; प्रताड़ना देना) – आखिर खरी-खोटी सुनने के तुम सही रास्ते पर आ ही गये।
- खरी-खरी सुनाना (कटु सत्य कहना) – राधा ने रमाकान्त को जब खरी-खरी सुनाई तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी।
- खाक छानना (भटकना; मारा-मारा फिरना) – नौकरी की खोज में कालीचरण ने कहाँ कहाँ की खाक नहीं छानी।
- खिल्ली उड़ाना (हँसी उड़ाना) – आफत के मारों पर दुनिया रहम नहीं करती बल्कि खिल्ली उड़ाती है।
- खून के आँसू रोना (बहुत कष्ट पड़ना) – अभी जी भर कर सैर-सपाटा कर रहे हो पर जब उचानक जिम्मदारियों का बोझ सिर पर पड़ेगा तो खून के आँसू रोओगे।
- खून-पसीना एक करना (कठिन श्रम करना) – खून-पसीना एक करने के बाद ही किसान को धरती माता का वरदान मिलता है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- खून का प्यासा (जान का दुश्मन) – क्या जमाना आ गया है, अलग होते ही पिता पुत्र एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं।
- खून का घूँट पीना (क्रोध बरदास्त करना) –निर्धन हो जाने के बाद सेठ बनवारी लाल के, अपमानित होने पर भी, खून का घूँट पीना पड़ता है।
- खूटे के बल कुदना (किसी के भरोसे पर घमण्ड करना) – तुम जिस घूँटे के बल कुदते हो मैं उसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं करता।
- खेत आना, खेत रहना, खेत होना (युद्ध में वीरगति पाना ) – 1926 ई० के भारत-चीन युद्ध में असंख्य भारतीय सैनिक खेत आए (खेत रहे, खेत हुए) ।
- खेल खेलाना ( परेशान करना) – बच्चू को मैं ऐसा खेल खेलाऊँगा कि छट्टी का दूध याद आ जायेगा।
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया (अधिक परिश्रम का कम लाभ होना) – वर्ष भर खून पसीना एक करने के बाद कुल दो क्विटल गेहूँ पैदा हुआ। सच खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
‘ ग ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )muhavare in hindi
- गड़े मुर्दे उखाड़ना (पुरानी भूली-बिसरी बातों को याद करना)–गड़े मुर्दे उखाड़ने से झगड़ा शान्त होने की अपेक्षा और अधिक बढ़ जाता है।
- गत बनाना (खूब पीटना) – गत बनने के बाद उसकी सारी हेकड़ी जाती रही।
- गर्दन पर छुरी फेरना (भारी जुल्म, अन्याय करना) – मालिक ने नौकर की तनख्वाह काट कर उसके गर्दन पर छुरी फेर दी।
- गर्दन उठाना (प्रतिवाद करना) – अब मालिकों के अत्याचार के विरुद्ध श्रमिकों की गर्दन उठने लगी है।
- गर्दन न उठाना (लज्जित होना) – बेठी के कलंकित चरित्र के चलते बाप की गर्दन ही नहीं उठती।
- गर्दन काटना ( जान से मारना, हानि पहुँचनेवाला) – लगता है कि रहीम करीम की गर्दन काट कर ही दम लेगा।
- गर्दन नीची करना या होना (शर्मिन्दा होना) –द्वारिका प्रसाद रचित ‘घेरे के बाहर’ उपन्यास पढ़कर आपकी गर्दन नीची अवश्य हो जायेगी।
- गर्दन पर सवार होना (पीछा न छोड़ना) – जब तक उसे चंदा नहीं दो वह गर्दन पर सवार रहेगा ही।
- गला काटना (अपार अहित करना) – मुझे मालूम नहीं था कि मेरा घनिष्ट मित्र हो मेरा गला काटेगा। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- गला छुटना (पिण्ड छूटना)– ऐसी कर्कशा पत्नी से गला छूटने का कोई उपाय तो बताता।
- गले का हार होना (अत्यन्त प्यार होना) – गोकुल में कृष्ण सभी गोप-गोपियों के गले का हार बने हुए थे।
- गरम होना (क्रोध आना) – कभी-कभी ज्यादा गरम होने से बना-बनाया काम बिगड़ जाता है।
- गला भर आना (भावातिरेक के कारण बोल न पाना)-बेटी की विदाई के अवसर पर माँ का गला भर आया।
- गले मढ़ना (जबरदस्ती कोई चीज किसी के हवाले करना) – कैसी निकम्मी घड़ी मेरे गले मढ़ दी।
- गागर में सागर भरना (थोड़े में बहुत कहना) – बिहारी ने अपनी ‘सतसई’ में गागर में सागर भर दिया है।
- गाल फुलाना (रुठना, गर्व जताना) – जरा सी बात पर तुमने गाल फुला लिया! बस उतनी सी सफलता पर गाल फुलाने लगे।
- गाल बजाना (डींग हाँकना) – केवल गाल बजाना ही जानते हो या कुछ काम धन्धा भी ?
- गाल मारना (अपनी प्रशंसा करना) – गाल मारनेवाले दूसरों की कद्र करना क्या जाने ?
- गाँठ बांधना (याद रखना) – मैंने तुम्हारी सीख गाँठ में बाँध ली है।
- गाँठ का पूरा (भालदार) – किसी गाँठ के पूरे की खोज करो तभी चोकस चन्दा मिल सकेगा। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- गाढ़ा समय आना (दुर्दिन पड़ना) – गाढ़ा समय आने पर ही सच्चे मित्र की पहचान होती है।
- गिन-गिन कर पैर रखना (सुस्त चलना, हद से ज्यादा सावधानी रखना) – गिन-गिन कर पैर रहने से तो साल भर में भी ढाई कोस नहीं तय कर पाओगे।
- गिरगिट की तरह रंग बदलना (एक रंग ढ़ंग या विचार-वृत्ति पर न रहना) – गिरगिट की तरह रंग बदलने वालों का क्या भरोसा, कब साथ छोड़ दे।
- गुड़ गोबर करना (बनी हुई बात बिगाड़ देना) – कहानी तो बड़ी मर्मस्पर्शी है, पर अन्त इतना अटापटा है कि सारा गुढ़ गोबर हो जाता है।
- गुदड़ी का लाल (गरीब के घर में गुणवान का पैदा होना) – अपने वंश में जयशंकर प्रसाद वस्तुतः गुदड़ी के लाल थे।
- गुस्सा पीना (क्रोध दबाना) – गुस्सा पीने का परिणाम भयंकर भी हो सकता है।
- गूलर का फूल (दर्शन दुर्लभ होना, लापता होना) -आपका स्थानान्तरण क्या हो गया. कि आप गूलर के फूल हो गये।
- गूंगे का गुड़ (ऐसी अनुभूति जो कही न जाए) – ताजमहल देखनेबाले सो उसके बिषय में पूछना उसके लिए गूँग के गुड़ जैसा है।
- गोबर धन्धा (व्यर्थ का काम)– तुम्हारा गोबर धन्धा मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
‘ घ, च, छ ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )muhavare in hindi
- घड़ों पानी पड़ना (बहुत लज्जित होना) – गाँव का मुखिया जब चोरी के अपराध में पकड़ा गया तो उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
- घर का न घाट का (कहीं का नहीं; अत्यन्त निकम्मा) – उसने खेती-बारी भी छोड़ दी और उधर नौकरी भी नहीं मिली, बेचारा न घर का रहा न घाट का।
- घर बसाना (विवाह करना) – उसने घर क्या बसाया कि जोरू का गुलाम हो गया।
- घर का भेदी लंका ढाह (आपसी फूट से बहुत बड़ी हानी होती है) – रावण को विभीषण ने ही तो उसका असली भेद बताकर भरवाया, कहावत भी तो है कि घर का भेदी लंका ढाह ।
- धाव पर नमक छिड़कना (दुःख की अवस्था में और अधिक दुःख देना) – कुलटा बहू ताने दे-देकर सास के घाव पर नमक छिड़कती रहती है।
- घाव हरा होना (किसी दुःख की बात को स्मरण करना) – बीते दिनों की याद दिला कर मेरे घावों को हरा न करें।
- घाव लगाना (मौका देखना)– पृथ्वीराज घात लगाये बैठा था। संयोगिता ज्योंही बाहर आई उसे घोड़े पर बैठाकर नौ दो ग्यारह हो गया।
- घास काटना (कुछ न सीखना) – पाँच वर्षों तक दिल्ली रह कर क्या घास काटते रहे ?
- घी के दीये या चिराग जलाना (खुशी मनाना) – रामचन्द्रजी के वन से लौटने पर अयोध्या में घी के दीये जलाये गये।
- घुटने टेक देना (हार मानना) – अन्त में लाचार होकर शत्रु ने घुटने टेक दिये। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- घोड़े बेच कर सोना (निश्चिन्त होकर सोना)– एक सप्ताह के बाद आज घोड़े बेच कर सोने का मौका मिला है।
- चकमा देना (धोखा देना)-सबको चकमा देकर ठगने से तुमको क्या मिलता है ?
- चकर में आना (भौचक होना)-खुलेआम कत्ल का दृश्य देख कर मैं तो चक्कर में आ गया !
- चमक उठना (गुस्से में बोल उठना) – तुम तो बात-बात में चमक उठते हो।
- चल बसना (मर जाना; खत्म होना) – बेचारी पार्वती का पुत्र असमय में ही चल बसा।
- चंडूखाने की गप (बहकी या बेतुकी बातें करना) -क्या पता, तुम्हारी बातें चंदूखारे की गप मात्र हो ।
- चांद का टुकड़ा (परम सुन्दर ब्यक्ति) – वाह, यह लड़की तो चाँद का टुकड़ा है।
- चादर तान कर सोना (निश्चिन्त होना) – इकलौती बेटी की सादी करके राधामोहन चादर तान कर सोने लगा है।
- चार चांद लगना (शोभा बढ़ना) – अलंकारों के समुचित प्रयोग से तो आपकी कविता में चार चाँद लग गये हैं।
- चार दिन की चाँदनी (थोड़े दिन का सुख) – चार दिन की चाँदनी के बाद काली अंधेरी रात भी तो आ सकती है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- चार आँसू बहाना (शोक मानाना) – वह इतना अभागा है कि परिवार में चार आँसू बहानेवाला भी नहीं रहा।
- चादर से बाहर पैर पसारना (आय से अधिक व्यय करना) – चादर से बाहर पैर पसारने के कारण ही दीनदयाल को जेलखाने की रोटी तोड़नी पड़ रही है।
- चांद पर थूकना (व्यर्थ निन्दा, प्रतिष्ठित व्यक्ति का अनादर करना) – चाँद पर थुकने से उसका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा, तुम्हारी ही तौहिना होगी।
- चिकनी चुपड़ी वाते करना (खुशामद या चापलूसी करना) – मैं तुमको अच्छी तरह पहचान गया हूँ। अब तुम्हारी चिकनी-चुपड़ी बातों का असर मेरे ऊपर तो नहीं ही होने वाला है।
- चिराग गुल होना (निरवंश होना)- हमीद के मरने से उसके घर का चिराग गुल हो गया।
- चिराग तले अँधेरा (अपनी बुराई नहीं दीखती) -आत्मारामजी दहेज प्रथा के विरोधी हैं पर अपने पुत्र के विवाह में दहेज के लिए लालायित हैं। उनके लिए चिराग तले अँधेरा की कहावत लागू होती है।
- चींटी के पर निकलना (मृत्यु का लक्षण प्रकट होना) – इसे चोंटी का पर निकलना है कहेंगे कि कंस ने कृष्ण के साथ बुरी तरह व्यावहार किया।
- बुल्लू भर पानी में डूब मरना (बहुत अधिक लज्जित होना, लज्जा से मुँह न दिखा सकता) – तुम्हारा सह काम तो चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक 1
- चूड़ियाँ पहनना (नारी की-सी असमर्थना प्रकट करना) – इतने घोर अपमान को चुपचाप पी जाना चूड़ियाँ पहनना जैसा है।
- चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना (घबड़ाना, डर जाना) – घेराव होने की आशंका से ही कम्पनी के मालिकें के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- चोट खाना (घायल होना) – चोट खाये शत्रु से सावधान रहना जरूरी है।
- चोटी-दाढ़ी की लड़ाई (विपरीत सिद्धान्तों का संघर्ष) – जब राम रहिम, कृष्ण-करीम एक ही हैं तो चोटी-दाड़ी की लड़ाई कैसी ?
- चोर की दाढ़ी में तिनका (अपराधी व्यक्ति का सशंकित रहना) – गिरह-कट ने जेब तो काटी ही, ऊपर से गिरहकटों को गालियाँ देने लगा, इस तरह उसने चोर की दाढ़ी में तिनकावाली करावत चरितार्थ की।
- चोली-दामन का साथ-(अभिन्न साथ, सदा बरकरार दोस्ती) – सम्बन्धियों में तो परस्पर चोली-दामन का साथ होता ही है।
- छक्के छुटना (हिम्मत हारना, बुरी तरह पराजित होना) – इस बार मोहनवगान के गेंदबाजों ने ऐसे जार से आक्रमण किया कि ईस्टवंगाल के गोलरक्षक के छक्के छुट गये।
- छक्के छुड़ाना (पराजित करना) – भारतीय सैनिको ने लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए।
- छक्के-पंजे से बाज न आना (चालबाजी करना) – बेईमान नौकर हर सुविधा के बावजूद छक्के पंजे से वाज नहीं आना।
- छठी का दूध याद् आना (ऐसी कठिन स्थिति में पडना कि बुद्धि ठिकाने ने रहे) – ठीक-ठीक बता दो, वरना ऐसी मार पड़ेगी कि छठी का दूध याद आ जायेगा।
- छप्पर फाड़ कर देना (बिना परिश्रम के सम्पन्न करना) – ईश्वर जव देता है तो छप्पर फाड़कर देता है और लेता है तो चमडी उधेड़ लेता है।
- छाती पर सांप लोटना (ईर्ष्या से जलना) – हमरी तरक्की देखकर गाँववालों की छाती पर साँप लोटना स्वाभाविक है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- छाती पर सॉप फिर जाना (हृदय में गहरी वेदना होना) – मेरे पास होने का समाचार सुनकर मेरे पड़ोसी दुखरन की छाती पर साँप फिर गया।
- छाती फटना (दुःख का असह्य हो जाना) – जब-जब ममता को अपने इकलौते की याद आती है, उसकी छाती फटने लगती है।
- छिपे रूस्तम (गुणी व्यक्ति का प्रसिद्ध न होना) – बड़ा अच्छा गाते हो पार! तुम तो पुत्र छिपे रुस्तम निकले।
- छोटे मुँह बड़ी बात (हैसियत से बढ़कर बात करना) – तुम जैसे टुटपुंजिये के मुँह से ‘करड़ा मिल’ खोलने की बात सुनकर छोटे मुँह बड़ी बात वाली कहावत याद आती है।
‘ ज, झ, ट, ठ ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े ) muhavare in hindi
- जंगल में मंगल होना (निर्जन स्थान में चहल-पहल होना) – दण्डकारण्य में शरणार्थियों के बस जाने से जंगल में मंगल हो गया।
- जब तक जीना तब तक सीना (आजीवन कर्म में लीन रहना) – हम पानी पेट के लिए जब तक जीना है तब तक सीना है।
- जबान को मुँह में रखना (चुप रहना) – जबान को मुँह में रखोगे तो समस्या का हल कैसे होगा ?
- जबान में लगाम न होना (कथन में उचित-अनुचित का ध्यान न रखना) – कल के छोकरों की जवान में लगाम न होने के कारण ही इतना बड़ा हंगामा उठ खड़ा हुआ।
- जबानी जमा-खर्च करना (केबल बात करना, कुछ काम न करना) – तुम्हारी सारी बतकही जबानी जमा-खर्च के सिवाय कुछ भी नहीं है।
- जमीन-आसमान एक करना (बहुत अधिक प्रयास करना) – सैनिकों ने जमीन-आसमान एक कर दिया पर उपद्रवकारी पकड़े न जा सके।
- जमी पर पैर न पड़ना (अधिक घमण्ड करना) – वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण क्या हुआ जमीन पर पैर ही नहीं पड़ रहे हैं।
- जमीन का पाँव तले से निकलना (किसी बुरी खबर के सदमे से होश ठिकाने न रहना) – परिश्रमी छात्र को जब अपने अनुत्तीर्ण होना का समाचार मिला तो जमीन पाँव तले से निकल गई।
- जल-थल एक होना (अत्यधिक वर्षा होना) – जनाव! जरा, बाहर निकल कर तो देखिये, जल-थल एक हो गये हैं या नहीं।
- जल-भुन कर खाक होना (गुस्से मे पागल होना) – आप तो जरा सी बात पर जल भून कर खाक होती जा रही हैं। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- जले पर नमक छिड़कना (दुःखी को और दुःख देना)-पत्नी के छोड़ कर चले जाने से वह बेचारा खुद ही क्लेश में है और आप हैं कि व्यंग्य द्वारा उसके जले पर नमक छिड़कने से बाज नहीं आ रहे हैं।
- जहर उगलना (मर्मभेदी अपमानजनक बात कहना) – तुम्हारे जहर उगलने वाले स्वभाव के कारण अपने भी पराये होते जा रहे हैं।
- जहर का घूँट पीना (क्रोध को पचा लोना) – तुम्हारी कसम! तुम्हारी वजह से जहर का घूँट पी कर रह गया, वरना उसकी हड्डी पसली एक कर देता।
- जान पर खेलना ( प्राण संकट में डालना) – हम जान पर खेल कर भी अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा करेंगे।
- जान में जान आना (इत्मीनान होना, ढाँढस बँधना)-पुत्र के हाथ की लिखी चिट्ठी पढ़ने के बाद ही पिता की जान में जान आई।
- जान पर नौबत आना (जान पर मुसीबत आना) – मेरी जान पर नौबत आ पड़ी है और तुम्हें दिल्लगी सुझ रही है।
- जान के लाले पड़ना (जीना दूभर होना) – आजकल सबके आपनी जान के लाले पड़े हुए हैं। अत: किसी और के कल्याण के विषय में सोचने का प्रश्न ही नहीं उठता।
- जान हथेली पर लिए फिरना (मरने के लिए तौयार रहना) – भारतीय सैनिक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जान हथेली पर लिए फिरते हैं।
- आपे के बाहर होना (बहुत अधिक क्रोध करना) – मेरी जरा-सी बात पर वह आपे के बाहर हो गया। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- जिस थाली में खाना उसी में छेद करना (उपकार करने वाले का उपकार भूल जाना) –उपाध्याय को अभी आप अच्छी तरह नहीं जानते। वह जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है।
- जिसकी लाठी उसी की भैंस (बलवान आदमी सब कुछ कर सकता है) – आज के युग में जिसकी लाठी है, उसी की भैंस है।
- जी भर जाना (रोना; रोने को जा चाहना) – जवान बेटे की मौत पर माता का विलाप सुनकर सबका जी भर गया।
- जीती मक्खी निगलना (जानबूझ कर अनुचित कार्य करना) – उसके कहने से जीती मक्खी निगल कर तुमने अपने पैरों में अपने आप कुल्हाड़ी मारी है ।
- जीते जी मरना (बहुत बेइज्जत होना) – इस प्रकार के घृणित काम को करके तुम जीते जी मर गये।
- जूते चाटना (चापलूसी करना) – अधिकारियों के जूते चाटने बाले कर्मचारियों से सावधान रहना ही बुद्धिमानी
- जैसा देश वैसा भेष (देशकाल के अनुकूल रहना) – राजेश को गाँव में घोतीकुर्ता पहने देख कर जब राकेश हँशने लगा तब उसने कहा, “हँसते क्या हो? जानेत नहीं,’ जानेत नहीं, “जैसा देश वैसा भेष”।
- जो गरजता है बरसता नहीं (डींग हाँकने वाले काम नहीं आते)– जनता पार्टि के शासनकाल में देश-सुधार की योजनाएँ तो वहुत बनाई गई पर किया कुछ भी नहीं गया। सच ही करा हुया है, जो गरजता है बरसता नहीं।
- जोड़-तोड़ करना (बड़ी मुश्किल से अकत्र करना) – गरीब ने किसी तरह जोड़-तोड़ कर पाँचसौ रुपये बचाये थे पर उन्हें भी डाकू लूट ले गये।
- झख मारना (बेकार के कामों में समय नष्ट करना) -तुम्हे झख मारने से जब फुर्सत मिलेगी तभी न मेरा काम करोगे।
- झगड़ा मोल लेना (जान-बुझ कर झगड़े में पड़ना) –रास्ता चलते झगड़ा मोल लेना कहाँ की लियाकत है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- झाँसा देना (धोखा देना) – ठग ने झांसा देकर श्रीकान्त के रूपये निकाल लिये।
- टका-सा मुँह लेकर रहना (लज्जित होना) नकल करते हुए पकड़े जाने पर तेजूखा छात्र टका-सा मुँह लेकर रह गया।
- टट्टी का ओट में शिकार खेलना (छिपकर चाल चलना) – अरे वीर की तरह भिड़ना हो तो सामने आओ।
- टपक पड़ना टस से मस न होना (कहने-सुनने का तनिक भी प्रभाव न पड़ना) —बेचारा नौकर बहुत रोया-गिड़गिड़ाया पर बेदर्द मालिक टस से मस नहीं हुआ।
- टाँग अड़ना (अड़चन डालना, दखल देना) – हर काम में टाँग अड़ाने वाली तुम्हारी प्रवृत्ति प्रशंसनीय नहीं हो सकती।
- टाट उलटना (दिवाला निकलना) – रेवतीरमण के टाट उलटने रोटी मारी गई।
- बहुतों की रोजी टीका- टीप्पणी करना (तर्क-वितर्क करना) – प्रत्येक व्यक्ति की टीका-टिप्पणी करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।
- टुकड़ों पर पलना (निर्भर होकर जीना) – अनेक लोग आजीवन दूसरों के टुकड़ों पर पलते हैं।
- टूट पड़ना (अकस्मात् जोर से धावा बौलना) – डाकू-दल डाका डालने की योजना बना ही रहा था कि नबयुबकों का जत्था उन पर टूट पड़ा।
- टेढ़ी खीर होना (मुश्किल काम होना) – प्राचार्य बनने की इच्छा तो प्रतेय्क अध्यापक को होती है। पर इस पद को सँभालना टेढ़ी खीर है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- टोह लगाना, टोह लेना (पता लगाना) – अपराधी की टोह लगाने (टोह लेने) सादे वेश में पुलिस के अधिकारियों को निकलना पड़ा।
- ठंडा होना (मर जाना)-सेना-नायक घोड़े से गिरते ही ढण्डा हो गया।
- ठोकर खाना, ठोकर लगना (मुसीबत झेलना, हानि उठाना)-बड़ों की सीख पर वह ध्यान नहीं दे रहा था पर ठोकर खाने (ठोकर लगते) ही उसने समझ लिया कि बड़ों की सीख कितनी लाभदायक होती हैं ?
- डंके की चोट पर कहना (निर्भीक होकर सबके मुँह पर कहना)—मैं डंके की चोट कहता हूँ कि अगर मोनरमा ने धनीराम से शादी नहीं की ।
- डूबते को तिनके का सहारा (संकट के समय थोड़ी सहायता बहुत होती है) –उसने मुझे थोड़े से रुपये क्या दिये जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया।
- डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग पकाना (सबसे अलग काम करना) – सभा में सभी एक मत थे कि गाँव में एक जच्चा-बच्चा केन्द्र स्थापित हो जा ? पर सरपंचजी अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग पका रहे थे।
- ढेर हो जाना (मर जाना) – पानीपत की तीसरी लड़ाई में हजारों सैनिक ढेर हो गये।
- ढोल पीटना, ढोल बचाना (चारों ओर कहते फिरना) – अगर तुम्हें इस गुप्त बात न की ढोल पिटवानी (ढोल बचवानी) हो तो मुरारी से सह सकते हो ।
‘ त, थ, द‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )muhavare in hindi
- तकदीर खुल जाना, तकदीर जागना (अच्छे दिन आना) – जब तकदीर खुल जाती है तो हर काम में सफलता मिलती है। (तकदीर जागती है) तो बनते देर नहीं लगती।
- तकदीर फुटना (बुरे दिन आना) – हा! मेरी तकदीर फूट गई जो तुम्हारे जैसे मुर्ख से मेरा विवाह हो गया।
- तलवा सहलाना (खुशामद करना) – आज के जमाने में अपना काम करवाने के लिए अधिकरियों के तलवे सहलाना अत्यावश्यक है।
- तह तक पहुँचना (वास्तविक बात का पता लगाना) – गुप्तचर विभाग के जासूसों ते तह तक पहुँचना के लिए ऐड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया।
- ताक लगाना (मौका देखा, धात में रहना) – चारे को चट कर जाने के लिए शेर ताक लगाये बैठा रहा।
- तारीफ के फुल बाँधना (अत्यधिक प्रशंसा करना) – अपने जिन महाशय की बकृता की तारिफ के पुल बाँध रखे थे, वे बनारस में ऐसे उखड़े कि दूसरे ही दिन कलकत्ता भाग गये।
- तालू में (से) जीभ न लगना (चुप न रहना; बोलते ही जाना) -पंडित उमाकान्त जी का जब प्रवचन प्रारम्भ होता है तब तालू में जीभ नहीं लगती।
- तिनके का सहारा (थोड़ा-सा सहारा) – विपत्ति में पड़े हुए आदमी को तिनके का सहारा ही काफी है।
- तिल का ताड़ करना (छोटी बात को बढ़ा देना) – मदनेश तिल का ताड़ करने में बड़ा उस्ताद है।
- तिल धरने की जगह न होना (जरा-सी भी जगह खाली न होना) – कुम्भ मेला के चलते ट्रेन में तिल धरने की जगह न थी। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- तीन-तेरह होना (तितर-वितर होना, छितरा जाना) – हर्षवर्धन के मरते ही उसका राज्य तीन तेरह हो गया।
- तीन-पाँच करना (टालमटोल करना, झगड़ा करना, कमियाँ निकलना) – प्रत्येक काम में तीन-पाच करने की राकेश की आदत से उसके भाई परेशान तीन में न तेरह में रहते है।
- तूती बोलना (बोलबाला होना, प्रभावी) – एक समय लोकदल में चौधरी चरण सिंह की तूती बोलती थी ।
- तू-तू मैं मैं करना (मौखिक झगड़ा करना, गाली गलौज करना) – जमीन के बँटवारे को लेकर तू-तू मैं मैं करते-करते भाइयों में लाठी चल गई।
- तूफान खड़ा करना, तूफान उठाना (बखेड़ा मचाना) – जरा सी बात पर रोहिणी ने तूफान खड़ा कर दिया (तूफान उठा दिया) ।
- तेली का बैल होना ( हर समय एक ही काम में लगे रहना)– आजकल तेली का बैल होने पर भी दो जून की रोटी मिलनी दूभर हो गयी है।
- तेवर चढ़ना (क्रोध का लक्षण प्रकट होना) – भैया की बात सुनकर पिताजी को तेवर चढ़ गए।
- तोते की तरह आँख फेरना (बेमुरौब्बत होना) – जमाना ही ऐसा है। कितनी ही किसी की भलाई करो, वह तोते की तरह आँख फेर ही लेता है।
- थाली के बैगन (वह आदमी जो किसी एक मत या विचार का न हो) – ऐसे थाली के बौगन का भरोसा करना अपने आपको गहरे संकट में डालना है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- थोथा चना वाजे धना (हीन आदमी का अधिक बखान) -राजनारायण के बयान थोथा चना बजे धना ही सिद्ध हो रहे हैं। |
- देंग रह जाना (चकित हो जाना)-तेरह वर्षीय रमाशंकर के मुँह से सम्पूर्ण रामचरित मानस सुन कर सभी दंग रह गये।
- दबे पाँव निकल जाना (धोके से चले जाना) – अच्छा हुआ जो वह दबे पाँव निकल गया। नहीं तो उसकी हड्डी पसली एक हो जाती।
- दर-दर की ठोकरे खाना (मारा-मारा फिरना) – घर से निकाल दिये जाने के बाद समर दर-दर की ठोकरे खाता फिर रहा है।
- काटी रोटी (गहरी दोस्ती)– आजकल साधना और निशा में दाँत काटी रोटी हो गये।
- दाव फिरकिरा दोना (हार मानना) – फौजदारी के मुकदमे में विरोधियों के दाँव फिरकिर कर दिए।
- दाँत करेदने के लिए तिनका ना रहना (कुछ भी शेष न रहना) – बलिया में बाढ़ के बाद अधिकांश किसानें के पास दाँत कुरेदने के लिए तिनका भी न रहा।
- दाँत खट्टे करना (पराजित करना) – महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के दाँत खट्टे का दिये।
- दाँत लगाना (किसी वस्तु के लिए अत्यधिक लालायित होना) – रामु के उपजाउ खेत पर बहुत लोगों के दाँत गड़े हुए हैं (लगे हुए हैं)। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- दाँत गिनना (उम्र का पता लगाना) -गोदान में मिली गाय के दाँत गिन कर क्या करोगे ?
- दाँत तले ओंठ दबाना (क्रोध करना) – नौकर की धृष्टता पर स्वामिनी दाँत तले औंठ दबाने लगी।
- दाँत तोड़ देना (हिम्मत तोड़ देना) – भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत तोड़ दिए ।
- दाँत दिखाना (खीसकाढ़ना, बेहया होना) -खुद ही देर से आये हो और अब दाँत दिखाते हो ।
- दाँत बैठना (बेहोश होना) – अत्याधिक पीड़ा से भाभीजी के दाँत बैठ गये।
- दाँतो पसीना आना (बहुत ज्यादा मेहनत पड़ना) – उसे चित्त करने में मुझे दाँतो पसीना आ गया।
- दाँते में जीभ-सा होना (प्रतिक्षण शत्रुओं के बीच रहना) – इन दुष्टों तथा धूत्त के बीच मेरी स्थिति दाँतों में जीभ-सी है।
- दाँतों से उठाना (बड़ी कंजूसी से एकत्र करना)– जो एक-एक पैसा दाँतो से उठाता है, उससे एक सौ रूपये चंदे की आशा करना व्यर्थ है।
- दाँतों में तिनका पड़ना (दीनता से क्षमा याचना करना) – मन्दोदरी ने रावण से कहा कि दाँतों में तिनका पकड़ कर राम के पास जाओ। वे अवस्य क्षमा कर देंगे।
- दाग लगाना (कलंकित करना) – सुषमा ने घर से भाग कर कुल को दाग लगा दिया।
- दाना-पानी उठना (जीविका न रह जाना) – जब दाना-पानी ही उठ गया तो यहाँ रहने से क्या फायदा। दाने-दाने को मुहताज होना। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- दाने-दाने को तरसना (बहुत ही गरीब हालत में होना)— स्वतंत्रता मिलने के बाद भी देश में करोड़ों व्यक्ति दाने-दाने को तरस रहे हैं।
- दाल में काला होना (कुछ रहस्य होना, संदेह होना, कोई दोष छिपा होना) – आजकल नवनीत है । कुछ विशेष चिन्तित दिखाई देता है। जरुर दाल में कुछ काला
- दाल न गलना ( वश न चलना, प्रयोजन सिद्ध न होना) – यह पट्टी तुम किसी और को पढ़ाना। यहाँ तुम्हारी दाल गलने वाली नहीं है।
- दिन में तारे दिखाई देना (घोर संकट में पड़ जाना) – सागर में तैरने की सोच रहे हो, किन्तु जब उसके जल में पाँव रखोगे तो दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे।
- दिन दूना रात चौगुना (खूब उन्नति करना) – पंच वर्षीय योयनाओं के परिणामस्वरूप देश दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा है।
- दिन फिरना (सुख के दिन आना) – दुःख पड़ने पर इतना विसूर क्यों रहे हो ? जानते नहीं दिन फिरते देर नहीं लगती।
- दिमाग सातवें आसमान पर होना (बहुत अधिक घमण्ड होना) —बेटे ने आइ॰ ए॰ एस॰ की प्रतियोगिता में सफलता क्या प्राप्त की कि बाप का दिमाग सातवेंआसमान पर हो गया।
- दिमाग चाटना (बहुत बकबास करना) -कुछ काम भी करोगे या दिमाग ही चाटते रहोगे।
- दिमाग फिर जाना (पागल हो जाना) – पत्नी के मरने का समाचार सुनते ही आलोक का दिमाग फिर गया। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- खट्टा होना (बिरक्त होना)-परिवारवालों से दिल खट्टा होते ही बोचारे गिरधारी ने फाँसी लगा ली।
- दिल टूट जाना (प्रेम का न रह जाना, हिम्मत टूट जाना, दिल को चोट लगना) – अब तुम पहाड़ पर नहीं चढ़ सकते, यह सुन कर दिल टूट गया।
- दिल दुखाना (कष्ट पहुँचाना, सताना) – आखिरकार उस विसातीवाली का दिल दुखा कर तुम्हें क्या मिला?
- दिल पर पत्थर रख लेना (सन्तोष कर लेना)– पन्ना ने अपने दिल पर पत्थर रख कर उदय की सेज पर अपने पुत्र चन्दन को सुला दिया।
- दिल पिघलना (तरस आना) – अनाथ विधवा को देखकर मेरा दिल पिघलना स्वाभाविक था।
- दिल फटना (घृणा होना) – पुत्र के व्यवहार से पिता का दिल हमेशा के लिए फट गया।
- दीया लेकर ढूँढ़ना (बड़े परिश्रमसे खोजना) – दीया लेकर ढूँढने पर भी रविशंकर का कहीं पता न लगा।
- दुम दबाकर भागना (डर कर भाग जाना) – ललकारे जाने पर चोर दुम दबाकर भाग गया।
- दूज का चाँद होना (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) – आजकल तो आप दूज के चाँद हो गये हैं।
- दूध की मक्खी (अत्यन्त तुच्छ, मुल्यहीन) – जनाव, आप नहीं जानते। ज्योंही लक्ष्मी का मतलब पूरा हुआ कि वह तुम्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी।
- दूध के दाँत न टूटना (कमसिन या अनुभवहीन होना) – अभी तुम्हारे दूध के दाँत नहीं टूटे, और तुम बड़ी – बड़ी बात करते हो। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- दूर की कौड़ी लाना (बहुत सुक्ष्म बात कहना) – रीतिकालीन कवि बिहारी दूर की कौड़ी लाने में सिद्धहस्त थे।
- दो कौड़ी का आदमी (अत्यन्त तुच्छ या अविश्वसनीय व्यक्ति) — पता नहीं क्यों तुम उस दो कौड़ी के आदमी की खुशामद करते रहते हो।
- दो टूक बात कहना (साफ बात कहना, स्पष्ट कह देना)– मैं तो दो टूक बात कहता हूँ। चाहे कोई सुखी हो या नाराज हो।
- दो दिन का मेहमान (जल्द मरने बाला) – तुम्हारे दादाजी जो खाना-पीना चाहँ खिला पिला दो। अब तो दो दिनोंके मेहमान लग रहे हैं।
- दोधारी तलवार दोना (बहुत घातक होना) – औरंगजेब के विरुद्ध शिवाजी दोधारी तलवार होकर जूझ पड़े।
- दो नावों पर पैर रखना (दो पक्षों का सहारा लेना, व्यर्थ खतरा मोल लेना)—या तो पढ़ाई लिखाई करो या नौकरी ही करो। दो नावों पर पैर रखने से तो एक में भी अच्छी तरह सफलता नहीं मिलेगी।
- दौड़-धूप करना (बड़ी कोशिश करना) – बड़ी दौड़-धूप के बाद ही आँखो के विशेषज्ञ डाक्टर ने रोगी की आँख का आपरेशन करना स्वीकार कर लिया।
‘ ध, न ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- धज्जियाँ उड़ाना (किसी के दुर्गुणों को चुन-चुन कर गिनाना) – भरी सभा में अपनी धज्जियाँ उड़ती देख कर ओझाजी कब खिसक गये किसी को मालूम ही नहीं हुआ।
- धता बताना (बहाने करके टालना) – आज तो तुमने उसे धता बता कर टाल दिया पर कल के लिए भी कोई उपाय सोच रखना।
- धाक जमना, धाक बँधना (रोब जमना, दबदबा होना) – विश्व में गामा की धाक तभी जमी (धाक तभी बँधी) जब उसने जेविस्को को चारों खाने चित्र कर दिया।
- धूप में बाल सफेद करना (बूढ़ा होने पर भी अनाड़ी न होना)– मैं सब कुछ जानता हुँ। धूप में बाल सफेद नहीं किये हैं।
- धूल में मिलना (बुरी तरह नष्ट होना) – जब तुम अपने ही दुर्व्यसनों से धूल में मिल गये तो किसी और की दोष देना बेकार है।
- धूल फाँकना (मारे-मारे फिरना)-आजकल लोग पी-एच० डी० कर लेने के बाद भी धूल फाँकने नजर आते हैं।
- धोखे की टट्टी (मायाजाल, झूट-मुट फँसा रखने वाली चीज)-तत्व-दर्शियों की दृष्टि में यह जगन मात्र धोखे की टट्टी है।
- धोती ढीली होना (घबड़ा जाना) – आधी रात को जबरदस्त धमाके की आवाज सुन धोती ढीली हो गई।
- धोबी का कुत्ता घर का न घाट का (कहीं का न होना) – अपने बड़े भाई से मेरी स्थिति धोबी का कुत्ता घर का न घाट का जैसी हो गई। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- ध्यान से उतरना (भूलना) – आपकी बात ध्यान से उतरने के कारण ही तो मैं आज मुसीबत में हूँ।
- नकेल हाथ में होना (कब्जे में होना) – जब तुम्हारी नकेल मेरे हाथ में है। देखना है, कौन तुम्हारी सिफारिस करने आता है ?
- नजर पर चढ़ना (कोपभाजन होना) – जिस दिन वह सेठजी की नजरों पर चढ़ जायेगा उस दिन वह फाँकता नजर आयेगा
- नजर से गिरना (सम्मान घट जाना) – भ्रष्टाचारियों का साथ देने के कारण कितने ही तथा-कथित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जनसाधारण की नजर से गिर गये।
- नमक अदा करना (उपकार का बदला चुकाना) – उदय सिंह की राय्य पर अपने इकलौते पुत्र चन्दन को सदा के लिए सुलाकर पन्ना ने महाराणा का नमक अदा कर दिया।
- नमक-मिर्च लगाना (किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना) – नमक-मिर्च लगाकर बतियाना तो महिलाओं की प्रवृत्ति मानी गई है।
- नब्ज पहचानना (किसी की आदत का सही ज्ञान रखना) – मैं तुम्हारी नब्ज खूब पहचानता हूँ। अत: मुझे धोखा नहीं दे सकते।
- नसें ढीली होना (हौसला पस्त होना) – दो लड़ाइयों में मुँह की खाने के बाद पाकिस्तानी सैनिकों की नसें ढीली हो गई।
- नाक कटना (बेइज्जती होना) – पुत्रवधू ने घर के बाहर पैर निकाल कर श्वसुर की नाक कटा दी।
- नाक पर गुस्सा होना (तुरंत क्रोधित हो उठने का स्वभाव होना) – तुमसे कोई क्या सलाह मशविरा करे, तुम्हारी नाक पर हमेशा गुस्सा जो रहता ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- नाक में दम करना (बहुत परेशान करना) – खीटी अपने मोटर चालक की नाक में दम किये रहती है।
- नाक का बाल होना (बहुत प्यारा होना) – जब से गणित अध्यापक प्रिंसिपल साहब की नाक के बाल हुए हैं, उनका सभी आदर करने लगे है।
- नाक-भौ सिकोड़ना (क्रोध करना, घृणा करना) -कोढ़ के रोगी को देखते ही सभी नाक-भौ सिकोड़ने लगे।
- नाक पर मक्खी न बैठने देना (निर्दोष बने रहना, बहत सतर्क रहना) – जो नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते, उनके पेट को बात निकालना गुड़िया का खेल नहीं है।
- नाक रगड़ना (दीनतापूर्वक प्रार्थना करना, खुषामद करना) – नौकर ने सेठानी के सामने बहुत नाक रगड़ी पर उनका कलेजा नहीं पसीजा।
- नाकों चना चबवाना (तंग करना) – राणा प्रताप ने अकबर को नाकों चने चबवा दिए।
- नानी मर जाना (होश उड़ जाना, हौसला पस्त होना) – क्या बात है, रामचन्द्र को देखते ही तुम्हारी नानी मर जाती है।
- नाम न रह जाना (अस्तित्व न रह जाना ) – इस संसार में बड़े-बड़े राजा-महाराजा शान के साथ शासन कर चले गये पर किसी का नाम न रहा।
- नाम निकलना (प्रसिद्धि होना) – आज रोहित के समाज सेवा के कारण उसका पूरी जगत में नाम निकल गया।
- नाम लगना (दोषी ठहराया जाना) – विचित्र बात है, चोरी करता था अमर और नाम लगता था रमेश का।
- निन्यानबे के फेर में पड़ना (रुपया एकत्र करने की चिन्ता में पड़ना ) – क्या आजीवन निन्यानबे के फेर में पड़ा रहना होगा ? ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- नीचा दिखाना (अपमानित करना) – उसे नीचा दिखाने का मजा चखाकर ही दम लूँगा।
- नीला-पीला होना (क्रोध करना) – तुम्हारे नीला-पिला होने से मै डर जाऊँगा, ऐसा नामुमकिन है।
- नीम हकीम खतरे जान (अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है) – नीम हकीम खतरे जान होता है, मैंने पहले ही सावधान कर दिया था।
- नौ दो ग्यारह होना (भाग जाना) -रेलवे रक्षावाहिनी को देखते ही लुटेरे नौ दो ग्यारह हो गये।
‘ प, फ, ब‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- पत्थर की लकीर (अमिट वस्तु सदा बनी रहने बाली बात) – महात्मा गाँधी की बातें पत्थर की लकीर होती थी।
- पगड़ी उतारना (बेइज्जत करना, अपमानित करना)-दुकानदार ने सरे बाजार सेठजी की पगड़ा उतार ली।
- पगड़ी रखना (इज्जत बचाना)-हल्दीघाटी में झाला सरदार ने राजपूतों की पगड़ी रख ली।
- पट्टी पढ़ाना (बुरी राय देना)-गाँववालों ने मेरे बड़े लड़के को पट्टी पढ़ाकर नालायक बना दिया।
- पल्ला पकड़ना (सहारा लेना) – कब तक माता-पिता का पल्ला पकड़े रहने का विचार है ?
- पलकें बिछाना (प्रेम से स्वागत) – मेरे उसके घर पहुँचने की देर थी कि उसने पलकें बिछा दीं।
- पहाड़ टूट पड़ना (भारी विपत्ति का आ पड़ना) – उस बेचारी पर तो मुसीबत का पहाड़ ही टूट पड़ा।
- पहेली बुझना (असली बात समझने की कोशश करना) – अब बेकार मत बनो। तुम्हारी पहेली मैंने पहले ही बूझ ली थी।
- पाँचों उँगलियाँ घी में (पूरा लाभ होना) – इस महँगाई के जमाने में व्यापारियों की पाँचों उंगलियां घी में हैं।
- पाँब जमीन पर न पड़ना (घमण्ड करना) – कभी-कभी अतिशय सौन्दर्य भी पाँव जमीन पर नहीं पड़ने देता।
- पाँव तले से जमीन निकल जाना (होश उड़ जाना) – पिताजी की मृत्यु का समाचार पाते ही मेरे पाँव तले से जमीन निकल गई।
- पाँव फैलाना (आराम करना) – जरा पाँव फैला लूँ तब आगे बढ़ सकूँगा।
- पानी उतरना (अपमानित होना) – सरे बाजार कंजरी ने उसकी ऐसा पानी उतारा कि वह शहर छोड़कर ही भाग गया।
- पानी चढ़ाना (उकसाना) – अमेरिका पाकिस्तान को भारत से टकराने के लिए पानी चढ़ाता रहता है।
- पानी का बुलबुला (क्षणभंगुर) – यह जीवन पानी का बुलबुला ही तो है।
- पानी की तरह धन बहाना (खुला खर्च करना) – जिबोधन पानी की तरह धन बहाकर ऐसा कंगाल हुआ कि कुत्ते की मौत मरा।
- पानी-पानी होना (अत्यन्त लज्जित होना) – भरी सभा में अपनी करतूतों का पर्दाफाश होते देख कर कृपा पानी पानी हो गया। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- पास न फटकने देना (शह न देना) – जब से तुमने कहा है मैं उसे अपने पास फटकने नहीं देता।
- पीठ दिखाना (भाग खड़ा होना) – दुश्मनों ने पीठ दिखाया कि भूल कर भी पीछे न देखा।
- पुल बाँधना (भरमार करना, झड़ी लगाना) – आत्मप्रशंसा का पुल बाँधना मूर्खों का काम है।
- पेट की आग या पेट में आग लगना (भुख, भुख लगना)–विना काम किये पेट की आग कैसे बुझेगी? पेट में आग लगी है, कैसे बुझाउँ?
- पेट में चूहे कूदना (भूख से व्याकुल होना) – दो दिनों से कुछ खाया नहीं है। पेट में चूहे कूद रहे है।
- पेट मे पानी न पचना (पेट का हल्का होना) – केशब के पेट में पानी तो पचता नहीं। क्या इस रहस्य को छिपा रखेगा ?
- पेट में दाढ़ी होना (अति बुद्धिमान या चालाक होना) – राजेश की बात दूसरी है। उसके पेट में दाढ़ी जो है।
- पेट चलना (जीविका चलना) – रात दिन परिश्रम करने के बाद भी बहुत से व्यक्तियों का पेट नहीं चल पाता।
- पैर उखड़ना (हारना भागना) – भारत के साथ युद्ध करते हुए पाकिस्तानी सैनिकों के पैर उखड़ते चले गये।
- पौने सोलह आने (लगभग पूर्णरूप से)– सोनाली की बातें पौने सोलह आने सच निकलीं।
- पौ बारह होना (लाभ ही लाभ होना, मौज में रहना) – बाजार में वस्तुओं की कीमत बढ़ते ही व्यापारियों की पौ बारह हो गयी।
- प्राण को हथेली पर रखना (जीने की परवाह न करना)-फौज के सिपाही प्राण हथेली पर रख कर लड़ रहे थे। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- प्राण सूखना ( भयभीत होना) – डाकू-दल को देख कर मेरा प्राण सूख गया।
- फूंक-फूँक कर कदम रखना (सावधानी के साथ काम करना) – आय-व्यय में संतुलन बनाये रखने के लिए फूँक-फूँक कर कदम रखना आवश्यक है।
- फूटी आँखों न देखना (अच्छा न लगना)– मैं तुम्हें फूटी आँखों भी नहीं देखना चाहता।
- फूला न समाना ( बहुत अधिक प्रसन्न होना) – आज क्या बात है कि दीनदयाल जी फूले नहीं समा रहे हैं।
- फूलना-फलना (धनबान् या कुलबान् होना) – पिताजी का आशीर्वाद है, सदा फूलो और फलो।
- फेर में आना, फेर में पड़ना (नुकसान उठाना)-अनजान आदमी पर विश्वास करने के कारण ही मै फेर में पड़ गया (आ गया) |
- बगलें झांकना (निरूत्तर होना) – अध्यापक के प्रश्न पूछने पर पीछे के छात्र बगले झांकने लगते हैं।
- बगुला भगत होना (पाखण्डी या कपटी होना) – ठग पर विश्वास करना धोखा है, बह तो विलकुल बगुला भगत है!
- बट्टा लगाना (कलंक लगाना) – शरब और सिगरेट पीकर तुमने अपने सुसंस्कृत तथा धार्मिक खानदान के नाम पर बट्टा लगा दिया।
- बत्तीसी दिखाना (मुँह छिढ़ाना, बेहूदा तरीके से हँसना) – थोड़ा पैसा कमा लेने के बाद रामधारी बड़े-बड़े सेठों को भी बत्तीसी दिखाता है।
- बद अच्छा बदनाम बुरा (बदनाम होने की अपेक्षा बुरा होना अच्छा) – रतनेश एक अच्छा लड़का है पर बुरे लड़कों के साथ रहने के कारण लोग उसे भी बदनाम करते हैं। ठीक भी है, बद अच्छा बदनाम बुरा।
- बरस पड़ना (कुछ होकर डाँटना, फटकारना)-गलती बड़े बेटे की थी और पिताजी बरस पड़े छोटे बेटे पर । ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- बराबर करना (समाप्त करना) – थोड़े खेत और बचे हैं, इन्हें भी बराबर कर दो फिर मकान पर हाथ लगाना।
- बला से (कुछ परवाह नहीं) – क्या कहा ? वकील साहब नाराज हैं? अरे भाई नाराज हैं तो रहा करे, मेरी बला से।
- बाँह टूटना (सबसे बड़ी सहायक का उठ जाना) – श्री प्रमोद दासगुप्त की मृत्यु से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की बाँह टूट गई।
- बाँसों उछलना (बेहद खुश होना) – अपने महाविद्यालय में सर्वप्रथम स्थान पाने के वाद बह बाँसों उछल रहा है।
- बाग-बाग होना (बहुत प्रसन्न होना) – अपने महाविद्यालय में सर्वप्रथम स्थान पाने के वाद वह बाँसो उछल रहा है।
- बाग-बाग होना (बहुत प्रसन्न होना) – संगीत सुनकर तबियत बाग-बाग हो गई।
- बाछँ खिल जाना (अत्यन्त प्रसन्न होना) – पुत्र की सफलता का समाचार सुनकर पिता की बाछें खिल गई।
- बाजार गरम होना (बाजार में चहल-पहल होना) – दशहराका उत्सब होने के कारण आज बाजार काफी गरम है।
- बाजी ले जाना या मारना (जीतना, आगे निकल जाना) -देखें, दौड़ प्रतियोगिता में इस बार कौन बाजी ले जाता है/मारता है ? ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- बाएँ हाथ का खेल, बाएँ हाथ का करतब, बाएं हाथ का काम (बहुत सरल काम) – ऐसा निबंध लिखना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है। (करतब काम है) ।
- बात गिरह में बाँधना (याद रखना) – उन्नति के शिखर पर चढ़ने के लिए अच्छी बातों को गिरह में बाँधना आवश्यक है।
- बात का धनी (कायदे का पच्छा) – मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मानवेश बात का धनी है।
- बात चलाना (चर्चा चलाना) – कृपया मेरे भाई के काम की बात चलाइयेगा।
- बात बढ़ाना (बहस छिड़ जाना) – मैं अन्तिम बार चेतावनी दे रहा हूँ कि बात बढ़ाने से ठीक नहीं होगा।
- बात बनाना (बहाना करना) – कब तक बात बनाकर बचते रहोगे ?
‘ ल, व्, श, स ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- लोहे के चने चबाना (बहुत कठिन काम करना) – जाड़े के दिन में नदी पार करना लोहे के चाने चबाना है।
- वक्त पड़ना (मुसीबत आना ) – दोस्त और दुश्मन की पहचान बक्त पड़ने पर ही होती है।
- वार खाली जाना (आधात का निशने पर न लगना) – शत्रु ने मुझ पर गोली तो चलाई मगर वार खाली गया।
- वारा न्यारा होना (निपटारा होना) – जमीन का वारा-त्यारा हो जाना तो मैं भी अपना मकान बनवा लेता।
- विष की पुड़िया (बुराई का जड़) – उस विष की पुड़िया से बतियाना भी बदनामी भोल लेना है।
- विभीषण बनना (घर का रहस्य प्रकट करना) – चीनी आक्रमण के समय देशभक्तों में से कुछ विभीषण बन गये थे।
- श्रीगणेश करना (शुभारम्भ करना)-कोई शुभ दिन देख कर भवन-निर्माण के कार्य का श्रीगणेश करना ही उचित हैं।
- शर्म से गड़ना (बहुत अधिक लज्जित होना)-भाभी ताने दिए जा रही थी और मैं शर्म से गड़ा जा रहा था।
- शह देना (उकसाना या उभारना)-पड़ोसियों के ही शह देने से कमलेश इतना जांगरचेर हो गया है।
- शरीर गलना (बहुत अधिक परिश्रम करना) – कप्तान साहब के एक छापड़ में ही मस्ताना का शोखी बधारना छूमन्तर हो गया। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- सन्न रह जाना, सन्नाटे में आना (चकित हो जाना, विस्मय से चुप रह जाना) – संजय गाँधी के आकस्मिक निधन का समाचार जिसने भी सुना, सन्न रहा गया। सन्नाटे में आ गया।
- सफाई कर देना (कुछ भी बाकी न छोड़ना) – चोरों ने राम इकबाल सिंह के पटनावाले मकान की अच्छी सफाई कर दी।
- सफाया कर देना (खत्म कर देना) – उत्तर प्रदेश सरकार डाकुयों का सफाया कर पर तुली हुई है।
- सब्जबाग दिखाना (ठगने के लिए झूट प्रलोभन देना) – कपटी साधु ने सेठजी को वह सब्जबाग दिखाया कि वे चक्कर में आ गये।
- सफेद झूठ बोलना (सरासर झूठ बोलना) – तुम सफेद झूठ बोलते हो कि मैंने रमेश से तुम्हारी शिकायत की है।
- सर्द हो जाना (डरना, मरना) – बड़ा साहसी बनता था पर डाकू का नाम सुनते ही सर्द हो गया।
- समझ पर पत्थर पड़ना (बुद्धि भ्रष्ट होना) – रावण की समझ पर पत्थर न पड़ा होता तो विभीषण को लात क्यों मारता?
- सवा सोलह आने सही (पूरे तौर पर ठीक) – आपके दोस्तों में केवल परमानन्दजी ही सवा सोलह आने सही उतरते हैं। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- सात घाट का पानी पिना (बहुतों का राय पर चलना) – इस मामले में सात घाट का पानी पीने से काम नहीं चलेगा।
- साँप छहुँदर की गति (दुविधा में पड़ना) –माँ अलग नागाज है, भाई अलग, किसे क्या कह कर समझाऊँ ? मेरी तो साँप छछूंदर की गति है इन दिनों।
- साँप से खेलना (खतरनाक आदमी से मेलजोल रखना) – रमेन्द्रनाथ को अपना दोस्त समझना साँप से खेलना है।
- साँप मरे ना लाठी टुटे (बिना खर्च हुए काम बन जाना) – आप तो सदा ही यह चाहते हैं कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टुटे।
- साँस न लेना (बिलकुल चुप रहना) – साँस न लेने की कला आपने कब सीखी ?
- सांस फूलना (हाँफना) – पाँच कदम दौड़ने में ही तुम्हारी साँस फूलने लगी तो पाँच किलोमीटर कैसे दौड़ोगे ?
- सिक्का जमना (प्रभाव जमाना ) – आपके भाषण का वह सिक्का जमा कि बाकी वक्ता जम नहीं पाए।
- सितारा चमकना (भाग्य जगना) – एक समय जनता पार्टी का सितारा चमक रहा था।
- सिर आँखों पर (खुशी से, शौक से मानना) – आपकी आज्ञा सिर आँखो पर।
- सिर उठाना (विरोध में खड़ा होना) – एक राणा प्रताप के सिवा और किसकी मजाल थी जो अकबर के सामने सिर उठाता।
- सिर खुजलाना (शामत आना, मार खाने को जी चाहना) – ज्यादा सिर खुजला रहा हो तो बता दो। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- रह सिर चढ़ के बोलना (आप से आप प्रकट होना) – जादू वह हो , जो सिर चढ़ कर बोले।
- सिर चटना (शोख करना)-लिखने दो, सिर मत चाटो।
- सिर नीचा होना (लज्जित होना, इज्जत न होना) – अपने बड़े बेटे के कुकर्मों से कहाँ कहाँ उसका सिर नीचे नहीं हुआ।
- सिर भारी होना (सामत सबार होना, सिर में दर्द होना) – रवि का सिर भारी है क्या ,जो तुम्हारे मुँह लगे। आज मेरा सिर काफी भारी है।
- सिर पर कफन बाँधना (मरने के लिए तैयार रहना) – सैनिक हमेशा सिर पर कफन बाँध कर शत्रू से लोहा लेते हैं।
- सिर धुनना (पश्चात्ताप करना) – दीपेश, यह तुम ठीक नहीं कर रहे हो। बाद में इसके लिए तुम्हें सिर धुनना पड़ेगा।
- सिर पर भूत सवार होना (एक ही रट) लगाना) – सिर पर भूत सवार हो गया, जो रात-दिन लिखते रहते हो।
- सिर पीटना (शोक करना)-परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद सिर पीटने से क्या मिलेगा ?
- सिर पर पाँव रख कर भागना (बहुत जल्द भाग जाना)-बंदूक की गोली छूटते ही चोर सिर पर पाँव रख कर भाग गए।
‘ ह ‘ से आने वाले मुहावरे
( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- हाथ छोड़ना (मारना) – जवान लड़की पर हाथ छोड़ना अनुचित है।
- हाथ जोड़ लेना (हार स्वीकार करना) – जनाब, अब तो मैंने हाथ जोड़ लिए। यहाँ से जल्दी दफा हो जाइये।
- हाथ टेकना ( सहारा लेना) -बाल्यावस्था में पिता पुत्र के हाथ टेकता है।
- हाथ डालना (कोई काम आरम्भ करना)-प्रमोद की तो आदत ही है कि जब किसी काम में हाथ डालता है तो उसे पूरा करके ही छोड़ता है।
- हाथ तंग होना (रूपये-पैसे की कमी होना) – इस महँगाई के जमाने में किसका हाथ तंग नहीं है ?
- हाथ देना (सहायता प्रदान करना) – आपके जरा-सा हाथ देने से वह जायेगा।
- हाथ धोकर पीछे पड़ना (बुरी तरह पीछे पड़ना)– मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है कि तुम इस कदर हाथ धोकर मेरे पीछे पड़े हो।
- हाथ धोना, हाथ धो बैठना, हाथ खो बैठना (खो देना, आशा छोड़ देना ) – इस समय व्यापार में समझ-बूझ कर न चलने पर पूँजी से हाथ धोना होगा। हाथ धो बैठना पड़ेगा।
- हाथ पकड़ते पहुँचा पकड़ना (थोड़ा-सा सहारा मिल जाने पर अधिक प्राप्ति का अवसर ढूढ़ना) – तुम्हें अध्यापिकी तो दिला ही दी, अब तुम्हारी पत्नी को भी कही अध्यापिका बनवा दूँ। अच्छा तुमने हाथ पकड़ कर पहुँचा पकड़ा। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- हाथ पसारना (भीख माँगना) – दूसरों के सामने हाथ पसारते तुम्हें सर्म नहीं आती !
- हाथ-पैर मारना, हाथ-पाँव मारना (खूब कोशिश करना) – बहुत हाथ पैर मारने के बाद भी कहीं नौकरी नहीं मिली।
- हाथ-पैर फूलना (भयभीत होना) – शेर का सामना होते ही कच्चे शिकारी के हाथ पैर फूल गए।
- हाथ पीले करना (विवाह करना) – पिता ने इकलैती पुत्री के हाथ पीले करके चैन की साँस ली।
- हाथ फेरना (शाबासी देना, हिम्मत बँधाना) – उच्च माध्यमिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर पिता ने पुत्री की पीठ पर हाथ फेरा
- हाथ बंटाना (सहयोग देना) – आपके जरा-सा हाथ बँटाने पर में सम्भल जाऊँगा।
- हाथ मल कर रह जाना (पछता कर रह जाना) – मेरे सामने से ही गाड़ी निकल गई और मैं हाथ मल कर रहा गया।
- हाथ के तोते उड़ जाना (होश गुम हो जाना ) – डाकू के सामने से भागते देखकर मेरे हाथों के तोते उड़ गए। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- हाथ पर तोता पालना (हाथ के जख्म को अच्छा न होने देना) – दोस्त, अपने फोड़े का इलाज करो, कब तक हाथ पर तोता पाल रखोगे।
- हाथ पर नाग खेलाना (खतरे में जान डालना) – तुम जैसा साहसी ही हाथ पर नाग खेला सकता है।
- हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना (कुछ न करना) – अन्तिम बार कान खोल कर सुन लो, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से एक जून भी खाना नहीं मिलेगा।
- हाथ पर हाथ मारना (प्रतिज्ञा करना) – हाथ पर हाथ मार कर उसने कहा कि प्रिन्सिपल को खदेड़ कर ही दम लेगा।
- हाथ बाँधे खड़ा रहना (सदा सेबा के लिए तत्पर रहना) – वह अपने मालिक के सामने हर घड़ी हाथ बाँधे खड़ा रहता है।
- हाथ बिकना (किसी के कहने पर चलना) – तुम चाहे खाये बिना मर जाना पर किसी के हाथ बिकना नहीं।
- हाथ भर की जबान होना (लालची होना) – जब तक तुम अपनी हाथ भर की जबान काबू में नहीं रखोगे, स्वस्थ नहीं होओगे।
- हाथ की मेल होना (तुच्छ बस्तु होना) -मन्त सेबारामजी के लिए धन-दौलत हाथ की मैल है।
- हाथ को हाथ न सुझना (बहुत अन्धकार होना) – अमावस्या की उस रात में आकाश काले कजरारे मेघों से ढका हुआ था तथा हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
- हाथ मुँह पर रख देना (बोलने न देना)-देखें, कब तक आप का हाथ मेरे मुँह पर रखा रहता है।
- हाथ में शनीचर होना (अत्यन्त गरीब होना) – जिसके हाथ में शनीचर होता है, उसके छुने से सोना भी मिट्टी हो जाता है। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- हाथ साफ करना (हड़पना) – उस गरीब की जमा पूंजी पर हाथ साफ करने से तुम्हें कौन-सा राज्य मिल जायेगा।
- हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और (कथनी और करनी में अन्तर होना) -तुम क्या सोचते हो, जो मैं कह रहा हूँ, वही करूँगा, हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और होते हैं।
- हिरण होना (चम्पत हो जाना) – लड़के ने सविता के गले से सोने की जंजीर खाँचो तथा हिरण हो गया।
- छक्का-बक्का होना (आश्चर्य में पड़ जाना)-साँठगाँठ के बावजूद पुलिस को मौके पर उपस्थित देखकर चोर छक्का-बक्का रह गया।
- हुक्का पानी बन्द करना (जात-बिरादरी से बाहर करना)– घुरहू की गाँववालों ने पिटाई ही नहीं की, हुक्का पानी भी बन्द कर दिया।
- हुलिया बिगाड़ देना (मुँह पर ऐसा मारना कि सुरत बिगड़ आए) – कस्बेवालों ने मारते मारते डाकू का हुलिया बिगाड़ दिया।
- होनहार विरवान के होत चीकने पात (होनहार व्यक्ति के लक्षण पहले से ही स्पष्ट हो जाते है) – लालबहादुर शास्त्री बचपन से ही साहसी, सज्जन, शीलवान और आज्ञाकारी थे। किसी ने ठीक ही कहा है, होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
- होश उड़ जाना, होश गुम होना, होश दवा होना, होश हिरण होना (भय से सुध बुध भूल जाना, घबड़ा जाना, डैरत में आ जाना) — गाँव में डाका पड़ने की खबर कान में पड़ते ही अलगू चौधरी के होश उड़ गए (गुम हो गए, दबा हो गये, हिरण हो गए)
- होश ठिकाने होना (अपनी भूल मान लेना) – जीवन में ठोकर लगते ही दीपक के होश ठिकाने हो जाएँगे। ( muhavare मुहावरे और पढ़े )
- हौसला पस्त होना (हिम्मत टूट जाना) – भारतीय फौज से दो-दो बार जुझने के बाद अब पाकिस्तानी फौज का हौसला पस्त हो गया है।
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lokoktiya |लोकोक्तियाँ
- ” लोकोक्तियाँ ” लोगों के अनुभव पर आधारित बयान हैं जिनका उपयोग ऐसी स्थिति को समझाने के लिए किया जाता है जिसमें व्यंजना की शक्ति हावी होती है।
- भाषा में कहावतों का उपयोग भाषा को कुशल, प्रभावशाली और आकर्षक बनाता है। इसलिए, “लोकोक्तियाँ लोककथाओं पर आधारित उन वाक्यों के लिए हैं।
- लोकोक्तियाँ, कथन की पूर्णता और अभिव्यक्ति की शक्ति और स्थिति को समझाने की शक्ति मौजूद है। “लोक कथाएँ आमतौर पर कुछ घटनाओं या संदर्भों पर आधारित होती हैं। लोककथाएँ जीवन के सच्चे अनुभव को प्रकट करती हैं।
- लोकोक्तियाँ को “नीतिवचन” भी कहा जाता है क्योंकि उनका उपयोग बोली जाने वाली भाषा में अधिक किया जाता है।
- जग-जीवन अत्यन्त व्यापक है। इसलिए लोकोक्तियाँ भी धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक, कृषि सम्बन्धी, सामाजिक को विषयक आदि वर्गों में विभाजित कर उनका विस्तृत अध्ययन किया है।
यहाँ कुछ लोकप्रिय लोकोक्तियाँ, उनके अर्थ सहित दी गई हैं। प्रमुख लोकोक्तियाँ एवं उनके अर्थ दिए गए हैं।
- एक पन्थ दो काज-एक ही उपाय से दो कार्य करना।
- एक थैली के चट्टे-बट्टे-सबका एक-सा होना।
- एक और एक ग्यारह होते हैं—एकता में शक्ति होती है।
- एक चुप सौ को हराए-चुप रहने वाला अच्छा होता है।
- एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत– स्वास्थ्य का अच्छा रहना सभी सम्पत्तियों में श्रेष्ठ होता है।
- एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं– एक स्थान पर दो विचारधाराएँ नहीं रह सकतीं।
- कूपमण्डूक होना – संकीर्ण विचारों का व्यक्ति।
- काठ की हाण्डी एक बार चढ़ती है-कपटपूर्ण व्यवहार बार-बार सफल नहीं होता।
- कागा चला हंस की चाल– अयोग्य व्यक्ति का योग्य बनने का प्रयत्न करना।
- कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा— आवश्यक और अनावश्यक वस्तुओं का एक साथ संग्रह करना।
- कंगाली में आटा गीला-विपत्ति पर विपत्ति आना।
- कभी घी चना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना– जो कुछ मिले उसी से सन्तुष्ट रहना चाहिए।
- कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर – एक दूसरे की मदद समय पड़ने पर करना।
- का बरखा जब कृषि सुखाने– – काम बिगड़ने पर सहायता व्यर्थ होती है।
- अन्धेर नगरी चौपट राजा-मूर्ख राजा के राज्य में अन्याय होना।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात-महानता के लक्षण प्रारम्भ में ही प्रकट हो जाते हैं।
- शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा-विचित्र शौक।
- मुख में राम बगल में छुरी-कपटपूर्ण व्यवहार।
- में में मेंढकी को जुकाम-अपनी औकात से ज्यादा नखरे ।
- पुचकारा कुत्ता सिर चढ़े– ओछे लोग मुँह लगाने पर अनुचित लाभ उठाते हैं।
- प्यादे ते फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाए-तुच्छ व्यक्ति पद पाने पर इतराने लगता है।
- बीरबल की खिचड़ी-अत्यधिक विलम्ब से कार्य होना।
- नाच न आए आँगन टेढ़ा-गुण अथवा योग्यता न होने पर बहाने बनाना।
- थोथा चना बाजे घना-थोड़ा-सा धन प्राप्त होने पर भी घमण्ड करना।
- जैसा देश वैसा भेष -परिस्थिति के अनुसार स्वयं को बदलना।
- जिसकी लाठी उसकी भैंस-किसी भी वस्तु आदि पर शक्तिशाली का ही अधिकार होना।
- खरी मजूरी चोखा काम– उचित मजदूरी देने से काम भी अच्छा होता है।
- गुड़ न दे, गुड़ की बात तो करे– चाहे कुछ न दे, परन्तु वचन तो मीठे बोले।
- घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की वस्तु का महत्त्व नहीं समझा जाता।
- घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या ?— मजदूरी माँगने में संकोच करना व्यर्थ है।
- गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज– दिखावटी परहेज।
- चमड़ी जाए, पर दमड़ी न जाए-कंजूस होना।
- चिराग तले अन्धेरा-दोषों का अपने समीप होना।
- चिकने मुँह को सभी चूमते हैं— धनवान की सभी चापलूसी करते हैं।
- चूहे का जाया बिल ही खोदता है– बच्चे में पैतृक गुण आते ही हैं।
- चलती का नाम गाड़ी-जिसका नाम चल जाए, वहीं योग्य है।
- घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने— झूठी शान दिखाना।
- कोयले की दलाली में हाथ काले-कुसंगति से कलंक लगता है।
- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली-दो असमान वस्तुओं की तुलना करना।
- कहने से धोबी गधे पर नहीं बैठता– हठी मनुष्य दूसरे के कहने से काम नहीं करता है।
- मेरी बिल्ली मुझी को म्याऊँ— आश्रयदाता को आँखें दिखाना।
- भई मति साँप छछूंदर केरी-असमंजस की स्थिति में।
- दूध का दूध पानी का पानी-सही न्याय करना।
- दाल भात में मूसलचन्द-व्यर्थ में दखल देना।
- नीम हकीम खतराए जान-अल्पज्ञान खतरनाक होता है।
- बद अच्छा बदनाम बुरा-बदनामी बुरी चीज है।
- इस हाथ दे उस हाथ ले-कर्म का फल शीघ्र मिलता है।
- थोथा चना बाजे घना-ओछा आदमी अपने महत्त्व का अधिक प्रदर्शन करता है।
- चिराग तले अन्धेरा-अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता।
- नाम बड़े दर्शन छोटे-प्रसिद्धि के अनुरूप गुण न होना।
- नेकी और पूछ-पूछ– बिना कहे ही भलाई करना।
- आया है तो जाएगा राजा रंक फकीर-सबकी मृत्यु सुनिश्चित है।
- कानी के ब्याह में सौ जोखिम– कमी होने पर अनेक बाधाएँ आती है।
- चित्त भी मेरी पट्ट भी मेरी–शक्तिशाली अपना लाभ हर तरफ से चाहता है।
- डेढ़ पाव आटा पुल पै रसोई-थोड़ी सम्पत्ति पर भारी दिखावा।
- जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ– दुष्टों की प्रवृत्ति एक जैसी होना।
- तन पर नहीं लत्ता, पान खाय अलबत्ता– झूठी रईसी दिखाना।
- तीन लोक से मथुरा न्यारी– सबसे अलग रहना।
- चट मँगनी पट ब्याह- शुभ कार्य तुरन्त सम्पन्न कर देना। चाहिए।
- ओछे की प्रीत बालू की भीत–ओछे व्यक्ति से मित्रता निभती नहीं है।
- छछूंदर के सिर में चमेली का तेल-कुरूप के लिए सौन्दर्य प्रसाधन।
- तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार-दृढ़प्रतिज्ञ लोग अपनी बात पर डटे रहते हैं।
- तेते पाँव पसारिए जेती लाम्बी सौर-सामर्थ्य के भीतर कार्य करना।
- दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम -दुविधा में दोनों काम बिगड़ जाते हैं।
- उठी पैंठ आठवें दिन लगती है– अवसर रोज-रोज नहीं आता है।
- अन्धा क्या चाहे दो आँखें -उपयोगी वस्तुओं का मिल जाना।
- ऊँट के मुँह में जीरा– आवश्यकता से कम प्राप्त होना।
- एक बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय-अकर्मण्य को कोई नहीं रखता है।
- कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली-बेमेल एकीकरण ।
- काला अक्षर भैंस बराबर-निरक्षर या अनपढ़
- कोयले की दलाली में मुँह काला-बुरे काम से बुराई मिलना।
- काम का न काज का दुश्मन अनाज का– बिना काम बैठे-बैठे खाना।
- काठ की हण्डिया बार-बार नहीं चढ़ती–कपटी व्यवहार हमेशा नहीं किया जा सकता।
- खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे-अपनी शर्म छिपाने के लिए व्यर्थ का काम करना।
- उल्टे बाँस बरेली को– विपरीत कार्य करना।
- ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे-बड़ा काम लुक-छिपकर नहीं होता है।
- खग जाने खग ही की भाषा-समान प्रकृति वाले लोग एक-दूसरे को समझ पाते हैं।
- अंगूर खट्टे हैं-वस्तु न मिलने पर उसमें दोष निकालना।
- बाँझ क्या जाने प्रसव की पीर– भुक्तभोगी ही दुःख का अनुमान कर सकता है।
- हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और -करनी और कथनी में अन्तर होना।
- विधि का लिखा को मेटन हारा-भाग्य में लिखा होकर रहता है।
- मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त– जिसका काम वही ढीला।
- मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक- सीमित पहुँच होना।
- पढ़े फारसी बेचे तेल यह देखो किस्मत का खेल–अधिक योग्य होने पर कम योग्यता का काम करना।
- नौ नकद न तेरह उधार-वर्तमान पर ध्यान देना ही उचित है।
- अधजल गगरी छलकत जाए– अल्पज्ञ अहंकारी होता है।
- आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूँक – विरागी धन दौलत की चिन्ता नहीं करता है।
- अन्धा बाँटे रेवड़ी, अपने-अपने को देय-पक्षपात करना।
- अन्धी पीसे कुत्ता खाय– देखभाल न करने से फल दूसरे ले जाते हैं।
- आँख का अन्धा नाम नैनसुख– गुणहीन का गुणवान जैसा व्यवहार।
- दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम-दो कार्यों में भटकना अच्छा नहीं।
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी– बहाने बनाना।
- भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस खड़ी पगुराय– अपात्र से बात न करो।
- राम राम जपना पराया माल अपना– धोखा देकर माल हड़पना।
- गोदी में छोरा गाँव में ढिंढोरा-पास की वस्तु को न देख पाना।
मुहावरे और लोकोक्तियों में अंतर
- muhavare को वाकया के अनुरूप परिवर्तन कर सकते हैं पर लोकोक्तियाँ अपरिवर्तित रूप में ही प्रयोग में ले जाती हैं।
- muhavare वाक्यांश होते हैं पर लोकोक्ति खुद ही में वाक्य होते हैं।
- मुहावरे वाक्य में सजीवता ला देते हैं पर लोकोक्ति कथन की पुस्टि के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।
- मुहावरे के अंत में ‘ न ‘ लगाया जाता है पर लोकोक्ति में ऐसा कुछ अनिवार्य नहीं है।
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