SAMAS समास’ वह शब्द-रचना है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द किसी स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं।दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जो नया शब्द बनता है, उसे समस्त पद कहते हैं। इस मेल की प्रक्रिया को समास कहते हैं। (samas)समास होने पर बीच की विभक्तियों, शब्दों तथा ‘और’ आदि अव्ययों का लोप हो जाता है। जैसे-
‘गंगा का जल’ का (samas)समास – गंगा + जल = गंगाजल
गंगाजल समास होने पर गंगा और जल मिलकर एक पद बन गए और बीच की विभक्ति का लोप हो गया।
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इस प्रकार (samas)समासकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. (samas)समास में दो पदों का योग होता है।
2. दो पद मिलकर एक पद का रूप धारण कर लेते हैं।
3. दो पदों के बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है।
4. दो पदों में कभी पहला पद प्रधान और कभी दूसरा पद प्रधान होता है। कभी दोनों पद प्रधान होते हैं।
5. संस्कृत में (samas)समास होने पर संधि अवश्य होती है, किंतु हिंदी में ऐसी विधि नहीं है। समास-विग्रह– समस्त पद को पृथक्-पृथक करके लिखने की प्रक्रिया को ‘समास-विग्रह’ कहते हैं। उदाहरणतया यदि गंगाजल समस्त पद के अंग पृथक करें तो दो पद निकलेंगे – (i) गंगा और (ii) जल
(samas)समास-विग्रह को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाएगा
गंगाजल – गंगा जल (गंगा का जल)
घुड़सवार- घुड़ (घोड़ा) सवार (घोड़े पर सवार)
चंद्रमुख- चंद्र-सा-मुख
- सामसिक शब्द में प्रायः दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद तथा दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
- (samas)समास प्रक्रिया से बने पद को ‘समस्तपद’ कहते हैं।
- समस्तपद के दोनों पदों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को (samas)समास-विग्रह कहते हैं। विग्रह करते समय लुप्त व्याकरणिक शब्द पुनः दिखाई देने लगते हैं।
SAMAS KE BHED
Samas ke kitne bhed hote hain?
समास के कितने भेद होते हैं ?
(samas)समास के 6 ‘छ’ भेद होते हैं-
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
- द्विगु
- बहुव्रीहि समास
- द्वंद्व समास
अव्ययीभाव समास
जिस (samas)समास का पहला शब्द अव्यय हो उसे ‘अव्ययीभाव ( avvaibhav samas )समास कहते हैं। इसका पहला पद या पूर्व पद प्रधान होता है। इसके प्रारंभ में अव्यय होने के कारण ही इसे अव्ययीभाव कहते हैं। पूर्व पद के अव्यय होने से समस्तपद भी अव्यय हो जाता है। कुछ उदाहरण देखिए –
समस्त पद | समास -विग्रह |
यथारूप | रूप के अनुसार |
आजन्म | जन्म से लेकर |
रातोंरात | रात ही रात में |
हरघड़ी | प्रत्येक घड़ी |
यथासमय | समय के अनुसार |
प्रतिवर्ष | प्रत्येक वर्ष |
बेरोज़गार | बिना रोज़गार के |
बेनकाब | बिना नकाब के |
यथासामर्थ्य | सामर्थ्य के अनुसार |
बातोंबात | बात ही बात में |
निर्भय | बिना भय के |
सपरिवार | परिवार के साथ |
हातोंहाथ | हाथ ही हाथ में |
आजीवन | जीवन भर |
यथाविधि | विधि के अनुसार |
प्रतिदिन | प्रत्येक दिन |
दिनोदिन | दिन -प्रतिदिन |
यथामति | मति के अनुसार |
आमरण | मरने तक |
प्रतिमाह | प्रत्येक माह |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
बेअक्ल | बिना अक्ल के |
भरपेट | पेट भरकर |
बदौलत | दौलत के साथ |
हमसफ़र | सफर के साथ |
प्रत्येक | प्रति एक |
बेकाम | बिना काम के |
तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास में उत्तरपद (दूसरा पद) प्रधान होता है और पूर्वपद (पहला पद) गौण होता है। तत्पुरुष समास ( Tatpurush samas )की रचना में समस्त पदों के बीच में आने वाले परसर्गों (का, से, पर आदि) का लोप हो जाता है। जैसे- पूजाघर – पूजा का घर।
तत्पुरुष समास की रचना को समझें –
तत्पुरुष समास की रचना प्रायः दो प्रकार से होती है
(क) संज्ञा + संज्ञा : इसमें दोनों पद संज्ञा होते हैं। जैसे- रसोईघर – रसोई के लिए घर ; विद्यालय – विद्या के लिए आलय; गंगा जल (गंगा का जल) आदि।
(ख) संज्ञा क्रिया: इसमें पहला पद संज्ञा होता है और दूसरा पद क्रिया होता है। क्रिया पद प्रायः भूतकाल में होता है। जैसे— भारतवासी – भारत का वासी ; तुलसीलिखित (तुलसी के द्वारा लिखित); भुखमरा (भूख से मरा); केदारनाथरचित (केदारनाथ के द्वारा रचित); आदि।
कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास कितने प्रकार के होते हैं?
कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास छह प्रकार के होते हैं :
(i) कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii) संप्रदान तत्पुरुष
(iv) अपादान तत्पुरुष
(v) संबंध तत्पुरुष
(vi) अधिकरण तत्पुरुष
समास में कारक की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं अर्थात् तत्पुरुष समास की प्रक्रिया में विभक्ति चिह्न हटा दिए जाते हैं। जैसे- रामभक्ति ( राम की भक्ति ); सेवामुक्त ( सेवा से मुक्त) आदि ।
(i) कर्म तत्पुरुष – (को विभक्ति का लोप)
समस्त पद | समास -विग्रह |
आशातीत | आशा को लाँघ कर गया हुआ |
मरणासन्न | मरण को पहुंचा हुआ |
शरणागत | शरण को पहुंचा हुआ |
परलोकगमन | परलोक को गमन |
ग्रामगत | ग्राम को गत |
विद्याप्राप्त | विद्या को प्राप्त |
कार्यालयगत | कार्यालय को गत |
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
विदेशगत | विदेश को गत |
स्वर्गगत | स्वर्ग को गत |
ज्ञान प्राप्त | ज्ञान को प्राप्त |
हतलगा | हाथ को लगा हुआ |
नगरगमन | नगर को गमन |
गुरुगमन | गुरु को गमन |
ii . करण तत्पुरष समास – ( से, के द्वारा विभक्ति का लोप )
समस्त पद | समास – विग्रह |
तुलसीकृत | तुलसी द्वारा कृत |
रोगमुक्त | रोग से मुक्त |
भुखमरा | भूख से मरा |
भयाकुल | भय से आकुल |
हस्तलिखित | हस्त से लिखित |
रेखांकित | रेखा से अंकित |
कष्टसाध्य | कष्ट से साध्य |
तुलसीकृत | तुलसी द्वारा कृत |
स्वरचित | अपने द्वारा रचित |
मनमाना | मन से माना |
अकालपीड़ित | अकाल से पीड़ित |
मनगढ़रंत | मन से गढ़ा |
मदमाता | माध से मस्त |
ज्ञानार्जित | ज्ञान से अर्जित |
मुंहबोला | मुँह से बोला |
विरहाकुल | विरह से आकुल |
बाढ़पीड़ित | बाढ़ से पीड़ित |
राजनीतिपण्डित | राजनीति से पंडित |
ईश्वरप्रदत्त | इस्वर द्वारा प्रदत्त |
शोकाकुल | शोक से आकुल |
श्रद्धापूर्ण | श्रद्धा से पूर्ण |
मुहमाँगा | मुँह से माँगा |
कामचोर | काम से चोर |
कामातुर | काम से आतुर |
iii. सम्प्रदान तत्पुरुष – ( को , के लिए – विभक्ति का लोप )
समस्त पद | समास – विग्रह |
देशभक्ति | देश के लिए भक्ति |
हवनसामग्री | हवन के लिए सामग्री |
देवबलि | देव के लिए बलि |
रसोईघर | रसोई के लिए घर |
विद्यालय | विद्या के लिए आलय |
सत्याग्रह | सत्य के लिए आग्रह |
राहखर्च | रह के लिए खर्च |
पाठशाला | पाठ के लिए शाला |
देशप्रेम | देश के लिए प्रेम |
मालगोदाम | माल के लिए गोदाम |
गुरुदक्षिणा | गुरु के लिए दक्षिणा |
स्नानघर | स्नान के लिए घर |
मनोरंजनस्थल | मनोरंजन के लिए स्थल |
आरामकुर्सी | आराम के लिए कुर्सी |
डाकगाड़ी | डाक के लिए गाड़ी |
दानपेटी | दान के लिए पेटी |
पूजाघर | पूजा के लिए घर |
गौशाला | गौ के लिए शाला |
यज्ञशाला | यज्ञ के लिए शाला |
प्रयोगशाला | प्रयोग के लिए शाला |
iv.अपादान तत्पुरुष – ( से विभक्ति का लोप )
समस्त – पद | समास – विग्रह |
भयभीत | भय से भीत |
देशनिकाला | देश से निकला |
पथभ्रष्ट | पथ से भ्रष्ट |
आशातीत | आशा से अतीत |
धर्मभ्रष्ट | धर्म से भष्ट |
धनहीन | धन से हीन |
जमान्ध | जन्म से अँधा |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
प्रदूषणरहित | प्रदूषण से रहित |
सेवामुक्त | सेवा से मुक्त |
संस्कारहीन | संस्कार से हीन |
दायित्वमुक्त | दायित्व से मुक्त |
जीवन्मुक्त | जीवन से मुक्त |
लक्ष्यहीन | लक्ष्य से हीन |
जलविहीन | जल से विहीन |
चरित्रहीन | चरित्र से हीन |
v. सम्बन्ध तत्पुरुष – ( का, के , की, विभक्ति का लोप )
समस्त पद | समास- विग्रह |
राजसभा | राजा की सभा |
जलधारा | जल की धारा |
सेनापति | सेना का पति |
पराधीन | पर के अधीन |
राजकुमार | राजा का कुमार |
देशवासी | देश का वासी |
लखपति | लाखों ( रुपयों ) का पति |
राजमाता | राजा की माता |
आज्ञानुसार | आज्ञा के अनुसार |
राजपुरुष | राजा का पुरुष |
लोकसभा | लोक की सभा |
जलप्रवाह | जल का प्रवाह |
घुड़सवार | घोड़े पर सवार |
सेनानायक | सेना का नायक |
प्रजापति | प्रजा का पति |
भारतेन्दु | भारत का इंदु |
बिहारवासी | बिहार का वासी |
समयतालिका | समय की तालिका |
नरेशबाला | नरेश की बाला |
विषयसूची | विषय की सूचि |
अछूतोद्धार | अछूतों का उद्धार |
सुरसरिता | सुर की सरिता |
वायुयान | वायु का यान |
अमृतधारा | अमृत की धारा |
प्रेमसागर | प्रेम का सागर |
मृत्युदंड | मृत्यु का दंड |
मातृभक्ति | माता की भक्ति |
vi. अधिकरण तत्पुरुष – ( में , पर – विभक्ति का लोप )
समस्त – पद | समास – विग्रह |
स्नेहमग्न | स्नेह में मग्न |
विद्याप्रवीण | विद्या में प्रवीण |
ध्यानमग्न | ध्यान में मग्न |
ग्रामवास | ग्राम में वास |
डिब्बाबंद | डिब्बे में बंद |
देशाटन | देश में अतन |
पुरुषोत्तम | पुरुषों में उत्तम |
सिरदर्द | सर में दर्द |
युद्धवीर | युद्ध में वीर |
शरणागत | शरण में आगत |
कलानिपुण | कला में निपुण |
दानवीर | दान में वीर |
व्यवहारनिपुण | व्यवहार में निपुण |
कार्यकुशल | कार्य में कुशल |
आपबीती | आप पर बीती हुई |
एक अन्य भेद – नञ् तत्पुरुष –
जिस समास का पहला पद नकारात्मक या अभावात्मक होता है उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं।
समस्त पद | समास विग्रह |
अधीर | न धीर |
अयोग्य | न योग्य |
असत्य | जो सत्य न हो |
अनादर | न आदर |
अनादि | आदि रहित |
अनाथ | नाथ हीन |
अस्थिर | न अस्थिर |
असंभव | न संभव |
अनदेखी | न देखी |
अनहोनी | न होनी |
अज्ञात | जो ज्ञात न हो |
अनर्थ | अर्थहीन |
अपुत्र | पुत्र हीन |
अंजना | न जाना |
अभागा | नहीं भाग्य जिसका |
बिनमाँगा | बिना माँगा |
अनुचित | न उचित |
अनबन | न बन |
कर्मधारय समास
जिस समास में पहला पद विशेषण व् दूसरा पद विशेष्य होता है या उपमेय या उपमान होता है , उसे कर्मधारय समास ( Karmdhray samas ) कहते हैं। इसमें दूसरा पद प्रधान होता है।
कर्मधारय समास में दो स्थितियाँ होती हैं
(क) पूर्वपद विशेषण तथा उत्तरपद विशेष्य होता है; जैसे- नीलकमल ।
(ख) पूर्वपद और उत्तरपद में उपमेय-उपमान का संबंध होता है; जैसे – नीलगगन ।
कुछ उदहारण देखिये –
- विशेषण – विशेष्य –
समस्त पद समास विग्रह सत्कर्म सत है जो कर्म नीलकंठ नीला है जो कंठ नीलकमल नीला है जो कमल पीताम्बर पीला है जो अम्बर कुबुद्धि बुरा चरित्र दुष्चरित बुरा चरित्र महात्मा महान है जो आत्मा महाराज महान राजा महाजन महान जन महापुरष महान है जो पुरुष कालीमिर्च काली है जो मिर्च मुख्यमंत्री मुख्य है जो मंत्री खलनायक खल है जो नायक लघुकथा लघु है जो कथा नववधू नयी है जो वधु गोलगुंबद गोल है जो गुम्बद - उपमेय-उपमान –
समस्त पद | समास विग्रह |
देहलता | देह रूपी लता |
राजीवलोचन | राजीव के समान लोचन |
सोनजुही | सोने के समान जूही |
रजनीबाला | रजनी रूपी बाला |
घनश्याम | घन के समान श्याम |
भुजदंड | दंड के समान भुजा |
क्रोधाग्नि | क्रोध के समान अग्नि |
प्राणप्रिय | प्राणो के समान प्रिय |
विद्याधन | विद्या रूपी धन |
द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाची होता है , वहां द्विगु समास ( dvigu samas )होता है। अर्थ की दृस्टि से यह समास प्राय समूहवाची होता है । जैसे –
समस्त पद | समास विग्रह |
पंचवटी | पंच वटो का समाहार |
नवरत्न | नव रत्नो का समाहार |
त्रिफला | तीन फलों का समाहार |
त्रिभुवन | तीन भुवनो का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोको का समाहार |
सतसई | सात सौ दोहों का समूह |
शताब्दी | शत वर्षो का समूह |
चौराहा | चार रोहों का समूह |
त्रिकोण | तीन कोणों का समूह |
पंचतंत्र | पांच तंत्रो का समाहार |
नवग्रह | नव ग्रहों का समूह |
सप्तसिंधु | सात सिन्धुओं का समूह |
तिरंगा | तीन रंगो का समूह |
पंजाब | पांच आबो का समूह |
सप्ताह | सात दिनों का समूह |
बहुव्रीहि समास
जिस समास में न पूर्व पद प्रधान होता है, न उत्तर पद; बल्कि समस्तपद किसी अन्य पद का विशेषण होता है, उसे बहुव्रीहि समास ( bahuvrihi samas ) कहते हैं।
उदाहरणतया—’पीतांबर’ समस्त पद को लें। इसका विग्रह हुआ – पीत + अम्बर = पीला है कपड़ा जिसका (कृष्ण) | यहाँ न ‘ पीत ‘ प्रधान है, न ‘अंबर’ बल्कि पीले कपड़े वाला कृष्ण प्रधान है। अतः यहाँ बहुव्रीहि समास है। कुछ अन्य उदाहरण –
समस्त पद | समास विग्रह |
त्रिलोचन | तीन लोचन है जिसके ( शिव ) |
चक्रधर | चक्र धारण करने वाला ( कृष्णा ) |
चतुर्भुज | चार भुजाएं है जिसकी ( विष्णु ) |
पतिव्रता | पति ही है व्रत जिसका ( साध्वी स्त्री ) |
चक्रपाणि | चक्र है पाणी में जिसके ( विष्णु ) |
तपोधन | तप ही है धन जिसका ( तपस्वी ) |
नीलकंठ | नीला है कंठ जिसका ( शिव ) |
सुमुखि | सुन्दर है मुख जिसका ( स्त्री ) |
चंद्रमुखी | चंद्र के सामान मुख जिसका ( स्त्री ) |
दशानन | दस है आनन जिसके ( रावण ) |
बारहसिंगा | बारह है सींग जिसके |
गजानन | गज के समान आनन जिसका ( गणेश ) |
गिरिधर | गिरी को धारण करने वाला |
निशाचर | निशा में चलता है जो ( राक्षस ) |
निर्दय | नहीं है दया जिसमे |
मृगनयनी | मृग के समान नयन जिसके ( स्त्री ) |
दुधमुहा | मुँह में दूध है जिसके ( छोटा बालक ) |
महात्मा | महान है आत्मा जिसकी |
नकटा | नाक कटा है जिसका |
अल्पबुद्धि | अल्प है बूढी जिसकी |
त्रिवेणी | तीन नदियों का संगम स्थल |
द्वंद्व समास
जिस समास में दोनों पद समान हो , वहां द्वंद्व समास होता है। द्वंद्व समास ( dwand samas )में दो शब्दों का मेल होता है । समास होने पर दोनों को मिलाने वाले “और ” या अन्य समुच्यबोधक शब्दों का लोप हो जाता है।
समस्त पद | समास विग्रह |
माँ – बाप | माँ और बाप |
देश – विदेश | देश और विदेश |
स्त्री – पुरुष | स्त्री और पुरुष |
माता – पिता | माता और पिता |
रात – दिन | रात और दिन |
दाल – रोटी | दाल और रोटी |
पाप – पुण्य | पाप और पुण्य |
गंगा – यमुना | गंगा और यमुना |
सुख – दुःख | सुख और दुःख |
अन्न – जल | अन्न और जल |
धनि – मानी | धनि और मानी |
रुपया – पैसा | रुपया और पैसा |
घी – शक्कर | घी और शक्कर |
आटा – दाल | आटा और दाल |
लोटा – डोरी | लोटा और डोरी |
दाल – भात | दाल और भात |
जन्म – मरण | जन्म और मरण |
छोटा – बड़ा | छोटा और बड़ा |
यश – अपयश | यश और अपयश |
उल्टा – सीधा | उल्टा और सीधा |
अपना – पराया | अपना और पराया |
जल – वायु | जल और वायु |
भूख – प्यास | भूख और प्यास |
राम – लक्ष्मण | राम और लक्ष्मण |
लव – कुश | लव और कुश |
खट्टा – मीठा | खट्टा और मीठा |
आशा – निराशा | आशा और निराशा |
हरा – भरा | हरा और भरा |
प्यारा – प्यारा | प्यारा और प्यारा |
दूध – दही | दूध और दही |
आमिर – गरीब | आमिर और गरीब |
लाभ – हानि | लाभ और हानि |
तन – मन | तन और मन |
भला – बुरा | भला और बुरा |
नर – नारी | नर और नारी |
दो – चार | दो और चार |
हिंदी व्याकरण को और जाने – हिंदी में वाक्य व्यवस्था , हिंदी पदबंध
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतरकर्मधारय समास के दोनों पद विशेषण- विशेष्य या उपमेय उपमान होते हैं। बहुब्रीहि समास में दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं।
सुनयना- सुंदर हैं नयन जिसके (विशेष स्त्री) [बहुव्रीहि]
पीतांबर – पीत (पीले) हैं अंबर (वस्त्र) जिसके [विष्णु]
कमलनयन कमल के समान हैं नयन जिसके (विष्णु) [बहुव्रीहि ] बहुव्रीहि और द्विगु समास में अंतरद्विगु समास में पहला पद संख्यासूचक होता है। यह पद दूसरे पद की संख्या सूचित करता है। कुछ बहुव्रीहि समासों में पहला पद संख्यासूचक तो होता है परंतु यह संख्या की सूचना नहीं देता। यह पद दूसरे पद से मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करता है।
चतुर्मुख–चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा) [बहुव्रीहि]
त्रिलोचन–तीन हैं लोचन जिसके (शिव) [ बहुव्रीहि]
तिरंगा–तीन हैं रंग जिसमें (भारत का राष्ट्रीय ध्वज) [ बहुब्रीहि ] समास और संधि में अंतरसंधि दो वर्णों में होती है। संधि में पहले की अंतिम ध्वनि (वर्ण) और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि में मेल होता है। इस मेल के कारण इन ध्वनियों का रूप बदल जाता है। जैसे-विद्या + आलय = विद्यालय यहाँ ‘विद्या’ शब्द को अंतिम ध्वनि ‘आ’ और ‘आलय’ शब्द की पहली ध्वनि ‘आ’ में संधि हुई है। संधि के नियमानुसार आ + आ =आ हो जाता है। इसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों में ध्वनियों में संधि दर्शाई गई है महा + इंद्र = महेंद्र (आ +इ+ए) जगत्+नाथ = जगन्नाथ संधि में दोनों शब्दों के मूल अर्थों में अंतर नहीं आता। समास में दो या दो से अधिक शब्दों में मेल होता है। इस मेल से बने नए शब्द के दोनों पदों के अर्थ बदल हैं। कई स्थानों पर इनके अर्थ नहीं बदलते। साइकिल पर सवार = साइकिल सवार — यहाँ दोनों पदों के अर्थ नहीं बदले। केवल ‘पर’ विभक्ति का लोप हो गया है। दश हैं मुख जिसके – दशमुख यहाँ ‘दशमुख’ के दोनों पदों के अर्थ बदल गए हैं। दोनों पद अपने मूल अर्थ को त्यागकर नए अर्थ ‘रावण’ की ओर संकेत करते हैं। संधि वर्णों में होती है। समास में शब्दों में मेल होता है। समास को प्रक्रिया से बने शब्द ‘समस्त पद’ या ‘सामासिक शब्द’ कहलाते हैं। समास को तोड़ना ‘समास-विग्रह’ कहलाता है। संधि को तोड़ना ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है। |
Samas ke Niyam
समास को विस्तृत रूप से जानने के लिए हमे कुछ नियमो को भी जानना होगा –
१। कभी – कभी एक ही समास का विग्रह अर्थभेद से कई प्रकार का होता है; जैसे, ‘त्रिनेत्र’ शब्द ‘तीनआँखों’ के अर्थ में द्विगु है, परंतु ‘महादेव’ के अर्थ में बहुव्रीहि है। ‘सत्यव्रत’ शब्द के और भी अधिक विग्रह हो सकते हैं।
२। एक समय में आने वाले शब्द एक ही भाषा के होने चाहिए। यह एक साधारण नियम है; पर इसके कई अपवाद भी है; जैसे, रेलगाड़ी, हरदिन, मनमौजी, इमामबाड़ा, शाहपुर, धनदौलत।
३। हिन्दी और उर्दू समास जो पहले से बने हैं, वे ही भाषा में प्रचलित हैं। इनके सिवा शिष्ट लेखक किसी विशेष कारण से नए शब्द बना सकते हैं।
४। तत्पुरुष समास में यदि प्रथम पद का आद्य स्वर दीर्घ हो, तो वह बहुधा हस्व हो जाता है और यदि पद आकारांत व ईकारांत हो, तो वह आकारांत हो जाता है; जैसे, घुड़सवार, पनभरा, मुँहचोर, कनफटा, रजवाड़ा, अमचूर, कपड़छन । अपवाद- -घोड़ागाड़ी, रामकहानी, राजदरबार।
५। कर्मधारय समास में प्रथम स्थान में आने वाले छोटा, बड़ा, लंबा, खट्टा, आधा, आदि आकारांत विशेषण बहुधा आकारांत हो जाते हैं और उनका आद्य स्वर हस्व हो जाता है; जैसे, छुटभैया, बड़गाँव, लमडोर, खटमिट्टा, अधपका। (अपवाद – भोलानाथ, भूरामल )
६। बहुव्रीहि समास के प्रथम स्थान में आने वाले आकारांत शब्द (संज्ञा औरविशेषण) कारांत हो जाते हैं; और दूसरे शब्द के अंत में बहुधा आ जोड़ दिया जाता हैदोनों पदों के आद्य स्वर दीर्घ हों, तो उन्हें बहुधा ह्रस्व कर देते हैं; जैसे, दुधमुँहा, बड़पेटा,लमकना (चूड़ा), नकटा (नाक है कटी हुई जिसकी)।बहुव्रीहि समासों का प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है और आकारांत शब्द पुल्लिंग होते हैं। स्त्रीलिंग में इन शब्दों के अंत में ई वा नी कर देते हैं; जैसे, दुधमुँहा, नकटी, बड़पेटी, टुटपुंजनी ।
७। बहुव्रीहि और दूसरे समासों में जो संख्यावाचक विशेषण आते हैं, रूप बहुधा बदल जाता है|
८। हिन्दी में सामासिक शब्दों के लिखने की रीति में बड़ी गड़बड़ी है। जिन शब्दों को सटाकर लिखना चाहिए वे योजक चिह्न (हाइफन) से मिलाए जाते हैं और जिन्हें केवल योजक से सामासिक शब्द को किसी न किसी प्रकार मिलाकर लिखने की आवश्यकता है वह अलग-अलग लिखा जाता है। उचित है, वे सटाकर लिख दिए जाते हैं।
९। कभी-कभी बिना अर्थभेद के एक ही समास के एक ही स्थान में दो विग्रह हो सकते हैं; जैसे, लक्ष्मीकांत शब्द तत्पुरुष भी हो सकता है और बहुब्रीहि भी पहले में उसका विग्रह (लक्ष्मी का कांत) (पति) है; और दूसरे में यह विग्रह होता है कि ‘लक्ष्मी है कांता (स्त्री) जिसकी’। इन दोनों विग्रहों का एक ही अर्थ है, इसलिये कोई एक विग्रह स्वीकृत हो सकता है और उसी के अनुसार समास का नाम रखा जा सकता है।
10 कई एक तद्भव हिन्दी सामासिक शब्दों के रूप में इतना अंग-भंग हो गया।है कि उनका मूल रूप पहचानना संस्कृतानभिज्ञ लोगों के लिये कठिन है। इसलिये इन शब्दों को समास न मानकर केवल यौगिक अथवा रूढ ही मानना ठीक है; जैसे, ‘ससुराल’ शब्द यथार्थ में संस्कृत श्वसुरालय’ का अपभ्रंश है, परंतु आलय शब्द आल बन गया है, जिसका प्रयोग केवल प्रत्यय के समान होता है। इसी प्रकार ‘पड़ोस’ शब्द (प्रतिवास) का अपभ्रंश है, पर इसके एक भी मूल अवयव का पता नहीं चलता।
११। कई एक ठेठ हिन्दी सामासिक शब्दों में भी उनके अवयव एक-दूसरे से ऐसे मिल गए हैं कि उनका पता लगाना कठिन है। उदाहरण के लिए ‘दहेंडी’ एक शब्द है जो यथार्थ में ‘दही हाँड़ी’ है, पर उसके ‘हाँड़ी’ शब्द का रूप केवल ‘ऍडी’ रह गया है। इसी प्रकार ‘अंगोछा’ शब्द है जो ‘अंगपोंछा’ अपभ्रंश है, पर ‘पोंछा’ शब्द ‘ओछा’ हो गया है। ऐसे शब्दों को सामासिक शब्द मानना ठीक नहीं जान पड़ता।
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देवनागरी लिपि क्या है एक संपूर्ण परिचय – पढ़ें
मुझे उम्मीद है समास SAMAS के इस अध्याय से आप जरूर लाभान्वित हुए होंगे। समास हिंदी व्याकरण का एक प्रमुख अंग माना जाता है। इसका ज्ञान हर हिंदी भाषा के पाठकों को होना ही चाहिए। स्कूली विद्यार्थी अपने पाठ्यक्रम में इसको हमेशा से देखते आ रहे हैं । परीक्षा की दृस्टि से भी ये बेहद महत्वपूर्ण है। अगर आप को ये अंश अच्छा लगा तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।