Swami Vivekananda quotes in Hindi

Swami Vivekananda quotes in Hindi के इस अंश में आप इस महान व्यक्तित्व के विचारों से परिचित होंगे। स्वामी जी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक जितना इतिहास के परिपाटी में हुआ करते थे। इनका जन्म भारत में ही हुआ था। शायद यही कारण है कि उनके विचारों में भारत की संस्कृति की झलक दिखाई देती है। उन्होंने धर्म की परिभाषा को स्पष्ट किया ताकि सामान्य जन ज्ञान की तलाश में भ्रमित न हो।

 Swami Vivekananda quotes in Hindi  में सबसे पहले हम इस महान व्यक्तित्व के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। साहित्य में निबंध के माध्यम से हम बड़ी ही सरलता से किसी का भी जीवन परिचय पा सकते हैं। आइये इसके मुख्य बिंदुओं को देखते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध – संकेत बिंदु

  1. स्वामी जी का जन्म
  2. शिक्षा
  3. स्वामी जी के गुरु
  4. लक्ष्य
  5. उपसंहार

Swami Vivekananda quotes in Hindi

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 

स्वामी जी का जन्म

भारत की मातृभूमि पर अनेकों महान पुरुषों का जन्म हुआ। उन्ही महापुरषों में नरेन्द्रदत्त भी एक थे। पूरा विश्व उन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से पुरकरते हैं। भारत ही नहीं विदेशों में भी उनको सम्मान मिला। लोग उनके मत से सहमत तो थे ही अपितु उनके विचारों ने भी सभी के जीवन में अमित छाप छोड़ी है। इनका जन्म भारत के कोलकाता शहर में 13 जनवरी , 1863 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता के हाई कोर्ट में वकालत किया करते थे और एक प्रसिद्ध वकील के तौर पर विख्यात थे। नरेंद्र पर अपनी माता के विनम्र स्वभाव की झलक दिखाई देती थी। स्वामी जी अध्यात्म विद्या और भारतीय दर्शन का प्रकांड ज्ञाता और वक्त थे। पूरा विश्व उनके ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाता था।


शिक्षा  

नरेंद्र बचपन से ही अपने शिक्षकों के चहिते बन गए थे। वे बहुत ही बुद्धिमान और मेधावी बालक थे। उन्होंने अपनी दसवीं ( मैट्रिक ) की परीक्षा सन 1879 में ही उत्तीर्ण कर ली थी। उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई जनरल असेम्बली’ नामक कॉलेज से पूरी की। ये कॉलेज अपने समय का कलकत्ता का विख्यात कॉलेज था। उन्होंने अपने रूचि के अनुसार ही विषयों को चुना था। इतिहास, साहित्य, और दर्शन आदि के विषय उनकी रूचि के विषय थे। इन विषयों के अध्यन ने ही उनके विचारों को एक नयी दिशा दी थी। 

अपने छात्र जीवन में उनके कई मित्र बने, जिनमे कुछ ऐसे हिन्दू मित्र थे जो यूरोप के उदार और विवेकशील विचारधारा से सहमत हुआ करते थे। कुछ ऐसे दोस्त भी थे जो ईश्वरीय सत्ता पर शंका करते थे। वास्तव में नरेंद्र भी ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास तो रखते थे पर उनके मन में कई सवाल जन्म लेने लगे थे और यही कारण थे कि उनका मन ब्रह्म समाज की ओर अनुरक्त हो गया। वे केशवचंद सेन और महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर के उपदेशों से बहुत कुछ सीखा पर नरेंद्र नाथ की जिज्ञासा अनंत थी इसलिए उन्होंने कई गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की।

वे जानते थे कि ज्ञान तो अनंत सागर है जितना हो सके ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए क्योकि ज्ञान के बिना मानव का उद्धार संभव नहीं है। ज्ञान से ही मानव ईश्वर का सच्चा परिचय प्राप्त कर सकता है।

स्वामी जी बचपन से ही कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़ के प्रेमी और इन खेलों में रूचि रखते थे। और यही कारण है वे काफी हष्ट-पुष्ट दिखाई देते थे। खेल – कूद के साथ – साथ वे संगीत और कला के प्रेमी भी थे। उनको तबला बजाने का बहुत शौक था। वे संस्कृत और अंग्रेजी के प्रकांड ज्ञाता थे। वे भारत ही नहीं अपितु यूरोप के तर्क और दर्शन की विद्याओं में पारंगत भी थे।


स्वामी जी के गुरु

स्वामी जी के गुरु स्वयं रामकृष्ण परमहंस थे । वस्तुतः उन्होंने ज्ञान हेतु कई गुरुओं का सहारा लिया था पर उनकी जिज्ञासा का अंत गुरु रामकृष्ण के समक्ष जाकर हो गया। जब नरेंद्र केवल सत्रह वर्ष के थे, तभी से वह रामकृष्ण परमहंस की शरण में चले गए थे। रामकृष्ण कोलकाता के दक्षिणेश्वर में थे। रामकृष्ण जैसा गुरु प्रकार मानो नरेंद्र का जीवन धन्य हो गया। स्वामी के व्यक्तित्व पर उनके गुरु की अमिट छाप दिखाई देती है।

उनके जीवन में एक ऐसा पल भी आया, जब उनके पिता के देहांत के बाद उन्हें नौकरी की तलाश भी करनी पड़ी। पर काफी तलाश के बाद भी जब उनको नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने सन्यास लेने का फैसला कर लिया। जब कभी उनको जीवन में तकलीफों का सामना करना पड़ा तब – तब वे ईश्वर की सत्ता पर शंका करने लगते थे। उनकी इन्ही दुविधाओं का अंत स्वामी जी को अपने गुरु के समक्ष बैठकर हो जाया करता था।

स्वामी जी का सम्पूर्ण जीवन मानो उनके गुरु के चरणों में समर्पित हो गया था। नरेंद्र ने परमहंस जी को अपना दीक्षा गुरु बना लिया था। माना जाता है कि स्वामी जी ने गुरु से कई बार यह कहा कि वे काली माता से उनके लिए वरदान मांगे कि उनके जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाये। पर गुरु जी हमेशा कहा करते थे कि सर्वसमर्थ ईश्वर से वे खुद ही याचना करें और उनकी याचना जरूर ही पूरी होगी।

नरेंद्र के काफी कहने पर परमहंस जी ने उनको सन्यास धर्म की दीक्षा दी और वे सामान्य बालक नरेंद्र से स्वामी विवेकानद बन गए। कई वर्षों तक स्वामी जी अपनी गुरु की सेवा करते रहे और उनसे अमूल्य ज्ञान प्राप्त किया। सन् 1886 ई. में श्री रामकृष्ण परमहंस का देहावसान के बाद स्वामी जी कलकत्ता छोड़ने का फैसला किया। कुछ समय पश्चात वे वराद नगर के आश्रम में आकर निवास करने लगे।

वराद नगर में उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य को जाना और ज्ञान अर्जन की दिशा में बढ़ चले। इसी स्थान पर उन्होंने दर्शन और विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन करने की रूचि जागृत हुई। उन्होंने कई धर्मग्रंथों का सहारा लिया।

“Swami Vivekananda quotes in Hindi”

लक्ष्य 

धर्मग्रंथों और शास्त्रों ने उन्हें जीवन के लक्ष्यों से परिचित करवाया। वे सामान्य मानव की तरह जीवन नहीं जीना चाहते थे। वे चाहते थे कि समस्त विश्व मूल ज्ञान से परिचित हो और अपने जीवन का उद्धार करे। इसी कारण वे समस्त भारत यात्रा पर चल निकल पड़े। उन्होंने बुद्धिवादी समाज को ज्ञान का दर्पण दिखाया। समाज में धर्म के प्रति श्रद्धा और विश्वास को कायम करने की कोशिस की ताकि धर्म के महत्वों को सामान्य जन समझ पाए। स्वामी जी ने समाज के समक्ष धर्म की तर्क सांगत व्याख्या प्रस्तुत की ताकि धर्म मानव के सांस्कृतिक  कृत्यों में बाधक न हो।

उन्होंने हिन्दू धर्म के मूल ज्ञान को सबके सामने प्रस्तुत किया। हिन्दू धर्म के प्रति यूरोपियन विद्वानों के विश्वास और श्रद्धा उत्पन्न किया। भारतीयों को आत्म गौरव का बोध कराया। विवेकानंद जी ने भारतीय संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक परम्परों से पुरे विश्व को परिचित करवाया। उन्होंने इस बात पर पुर जोर दिया कि शक्ति की साधना में ही सबका कल्याण है। साथ ही यह भी उपदेश दिया, वास्तविक शिव की पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा में है, रोगी और कमज़ोर की पूजा में है।


स्वामी की का देहवसान 

स्वामी जी जीवन पर्यन्त मानव की सेवा हेतु अपने कल्याणकारी वचनों से सबको मंत्रमुग्ध करते रहे। वे नश्वर शरीर की वास्तविकता से सम्पूर्ण परिचित थे। वे कहा करते थे थे कि वे चालीस वर्षों से अधिक जीवित न रहेंगे। वर्ष 4 जुलाई 1902 को उन्होंने महासमाधि लेकर इस इस शरीर को त्याग दिया था। इस दिन भी वे रोजमर्रा की तरह अपने विद्यार्थियों को शास्त्र ज्ञान दिया और रोज की तरह शाम सात बजे ध्यान करने चले गए। शिष्यों के कथन अनुसार उनकी मृत्यु ध्यान के दौरान हो गई थी।

उनकी मृत्यु के पश्चात उनका अंतिम संस्कार बेलूर मठ के समीप गंगा के तट पर किया गया। चन्दन की लकड़ी से उनकी चिता सजाई गई थी। ये वही घाट था जहाँ उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का भी अंतिम संस्कार किया गया था।


उपसंहार

स्वामी जी ने दुनिया को भारतीय संस्कृति के दर्शन कराने में सफल रहे। उन्होंने इसी संस्कृति को भारत की एकता की नीव बताया। उन्होंने मानवता और भाईचारे के विचारों पर बल दिया। उनका मानना था कि पश्चिमी संस्कृति से भारतीय संस्कृति बहुत भिन्न है और हमारी संस्कृति विश्व स्तर पर एक अनोखी पहचान रखती है। आज स्वामी जी के कारण हर भारतीय अपने धर्म और संस्कृति के प्रति गौरान्वित महसूस करता है।

स्वामी जी ने मानवता के सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया। उन्होंने अपने गुरु श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक शिक्षाओं से विश्व को अवगत कराया और सबको निस्वार्थ कर्म करने का निर्देश दिया। वे मानते थे कि मानव का जीवन धर्म के मार्ग पर चलकर आत्मिक स्वतंत्रता को हासिल करना है। वे भारत के एक देशभक्त ही नहीं अपितु एक महान विचारक और लेखक भी थे।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्वामी जी का अतुलनीय योगदान था। वे महात्मा गाँधी के विचारों का सम्मान करते थे। उन्होंने नारी सम्मान के लिए भी कई कार्य किये। भारत भूमि इन महान संतों को हमेशा याद करती रहेगी।

 

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स्वामी विवेकानंद के विचार

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VIVEKANAND-THOUGHTS
  1. ब्रह्मांड अपनी सृष्टि स्वयं करता है, स्वयं विघटित होता है और स्वयं अभिव्यक्त होता है।
  2. विचार और कर्म की स्वतंत्रता जीवन, विकास और कल्याण की एकमात्र शर्त है। जहां उसका अभाव होता है, वहां मनुष्य जाति और राष्ट्र अवश्य अवनति की ओर जाते हैं।
  3. यह सारा संसार अनंत आनंद से भरी एक सुंदर कविता है।
  4. भय से ही दुख आते हैं और भय से ही बुराइयां जन्म लेती हैं।
  5. श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है।
  6. गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है।
  7. मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है, इसलिए साक्षात देवता की पूजा करो।
  8. प्रसन्नता अनमोल खजाना है। छोटी-छोटी बातों पर उसे लुटने न दें।
  9. स्वामी जी कहते हैं कि “निर्बलता ही सब पापों की जड़ है।”
  10. परस्पर विनियम यानी ‘देना-लेना’ सारी दुनिया का नियम है।

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  1. जिसे अपने पर विश्वास नहीं, उसे भगवान पर विश्वास कभी नहीं हो सकता। सब दुर्बलता और सब बंधन कल्पना हैं। उससे एक शब्द कह दो और वह लापता हो जाएगी। निर्बल मत बनो। शक्तिशाली बनो कोई भय नहीं। सत्य जैसा है, उसका सामना करो।
  2. आत्मविश्वास वीरता का रहस्य है। पवित्र और दृढ़ इच्छा सर्वशक्तिमान है, जबकि कमजोरी ही मृत्यु है, इसलिए जो व्यक्ति निश्चय कर सकता है, उसके लिए कुछ असंभव नहीं।
  3. हम जितना ध्यान साध्य पर देते हैं, उससे अधिक साधना पर दें तो सफलता अवश्य मिलेगी। साधन जब तक उपयुक्त ठीक तथा बलशाली न होगा, तब तक ठीक परिणाम मिलना असंभव है।
  4. जो अपने आप में विश्वास नहीं करता है वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता। विश्वास, विश्वास, अपने आपमें विश्वास, ईश्वर में विश्वास, यही महानता का रहस्य है। यदि तुम पुराण के तैंतीस करोड़ देवताओं और विदेशियों द्वारा बतलाए हुए सब देवताओं में भी विश्वास करते हो पर यदि अपने आपमें विश्वास नहीं करते हो तो तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती। अपने आप पर विश्वास करो, उस पर स्थिर रहो और शक्तिशाली बनो।
  5. हमें अपने में आशावादी प्रवृत्ति उत्पन्न करनी होगी और प्रत्येक वस्तु में स्थित शुभ को ही देखने का प्रयत्न करना होगा। यदि हम घुटनों पर सिर टेककर अपनी शारीरिक और मानसिक अपूर्णताओं पर रोते रहें तो उससे क्या होगा? वास्तव में विपरीत परिस्थितियों को दबा देने के लिए जो वीरतापूर्ण प्रयत्न है, वही एकमात्र ऐसा है, जो हमारी आत्मा को ऊपर उठाता जाता है।
  6. जिस दिव्य शक्ति के प्रथम स्पर्श से ही संपूर्ण विश्व में सब ओर महातरंगें उठने लगी हैं, उसकी पूर्ण अभिव्यक्ति की जरा अपने मस्तिष्क में कल्याणमयी कल्पना करो और वृथा संदेह-दुर्बलता और ईर्ष्या द्वेष का परित्याग कर, इस महायुग चक्र प्रवर्तन में सहायक बनो।
  7. ओ मनुष्यो! हम तुम्हें मृत अतीत की उपासना से हटाकर वर्तमान की पूजा के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। बीती बातों का रोना रोने की उपेक्षा हम तुम्हे वर्तमान की गतिविधियों में लगने का आह्वान कर रहे हैं। भूली-बिसरी एवं मग्न पगडंडियों की खोज में कार्य-शक्ति नष्ट करने के बजाय हम तुम्हें पुकार रहे हैं, नवनिर्मित विशाल पथ पर चलने के लिए, जो कि तुम्हारे सम्मुख फैला हुआ है। जो बुद्धिमान हैं, वे इस बात को समझ लें।
  8. संसार का इतिहास उन गिने-चुने महाजनों का इतिहास है जिनमें आत्म-विश्वास था। यह आत्म-विश्वास मनुष्य के अंदरूनी देवत्व को •ललकारकर प्रकट कर देता है। तब वह मनुष्य कुछ भी कर सकता है, सर्व समर्थ हो जाता है। जिस क्षण कोई मनुष्य या राष्ट्र आत्म-विश्वास खो देता है, उसी क्षण उसकी मृत्यु हो जाती है।
  9. स्त्रियों की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई मार्ग नहीं है। किसी पक्षी का केवल एक पंख के सहारे उड़ना नितांत असंभव है।
  10. स्त्रियां जब शिक्षित होंगी, तभी तो उनकी संतानों द्वारा देश का मुख उज्ज्वल होगा।
  11. स्त्रियों की पूजा करके सभी जातियां बड़ी बनी हैं। जिस देश में, जिस जाति में स्त्रियों की पूजा नहीं, वह देश, वह जाति न कभी बड़ी बन सकी और न कभी बन ही सकेगी।
  12. निस्वार्थता ही धर्म की कसौटी है, जो जितना अधिक निस्वार्थी है, वह उतना ही अधिक आध्यात्मिक और शिव के समीप है।
  13. परोपकार ही धर्म है, परपीड़न ही पाप। शक्ति और पौरुष पुण्य हैं, कमजोरी और कायरता पाप। स्वतंत्रता पुण्य है, पराधीनता पाप। दूसरों से प्रेम करना पुण्य है, दूसरों से घृणा करना पाप। परमात्मा और अपने आप में विश्वास पुण्य है, संदेह ही पाप है।
  14. अगर तुम्हारा अहंकार चला गया है तो किसी और धर्म-पुस्तक की एक पंक्ति भी बांचे बगैर, किसी भी मंदिर में पैर रखे बगैर, तुमको जहां बैठे हो वहीं मोक्ष प्राप्त हो जाएगा।
  15. यदि भारतवर्ष मिट गया तो संसार से आध्यात्मिकता लुप्त हो जाएगी, नैतिक परिपूर्णता विलीन हो जाएगी। धर्म के प्रति अनुराग और सहानुभूति विलुप्त हो जाएगी। समस्त आदर्शप्रियता मिट जाएगी और इनके स्थान पर होगा विषयाशक्ति और विलास का जोड़ा एक नर और एक मादा, धन होगा उसका पुरोहित, बलात्कार, धोखेबाजी और प्रतिद्वंद बनेंगे इनके अनुष्ठान और मानवता की होगी बलि ।

Swami Vivekananda quotes in Hindi

  1. धर्म कल्पना की चीज नहीं है। वह प्रत्यक्ष दर्शन की चीज है। जिसने एक भी महान आत्मा के दर्शन कर लिए वह अनेक किताबी पंडितों से बढ़कर है।
  2. हम सब व्यापारी बन गए हैं। हम प्राणों का व्यापार करते हैं, गुणों का व्यापार करते हैं, धर्म का व्यापार करते हैं। आश्चर्य है कि हम प्रेम का भी व्यापार करते हैं।
  3. ईश्वर सर्वव्यापी हैं। वे प्रत्येक प्राणी में अपने-आपको व्यक्त करते हैं। मनुष्य के लिए तो वे मनुष्य के रूप में ही दिख सकते हैं और पहचाने जा सकते हैं। जब उनका प्रकाश उनकी व्यापकता, आत्मा के दिव्य मुख पर चमकती है, तभी और केवल तभी मनुष्य उन्हें समझ पाता है।
  4. लोभ से बुद्धि नष्ट होती है, बुद्धि नष्ट होने से लज्जा, लज्जा नष्ट होने से धर्म तथा धर्म नष्ट होने से धन और सुख नष्ट हो जाता है।
  5. धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास है।
  6. कर्म करना ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करना ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है। इसे प्राप्त करना और अपने अधिकार में रखना उतना ही कठोर न्यास है जितना कि इसका त्याग करना और इससे विमुख होना।
  7. कोई भी मत जो तुम्हें ईश्वर प्राप्ति में सहायता देता है, अच्छा है। धर्म ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम भर है।
  8. नास्तिक उदार हो सकता है पर धार्मिक नहीं, पर धार्मिक मनुष्य को उदार होना चाहिए।
  9. याग-यज्ञ, प्रणाम-दंडवत और जप-जाप आदि धर्म नहीं हैं। वे वहीं तक अच्छे हैं, जहां तक वे हमें सुंदर और वीरतापूर्ण कार्य करने की प्रेरणा देते हैं तथा हमारे विचारों को इतना उन्नत बना देते हैं जिससे हम दैवी पूर्णता की धारणा कर सकें।
  10. धर्मग्रंथ जिन सद्गुणों को अपनाने की बात करते हैं, वे सभी अनायास उससे प्रवाहित होने लगते हैं जो वेदांत का आचरण करते हैं।
  11. जो शास्त्रों को पढ़कर उनका अपने जीवन में आचरण नहीं करते उन पर यह बात पूरी तरह लागू होती है, ‘यथा खरश्चंदन भारवाही, भारस्य वेत्ता न तु चंदनस्य’ जिस प्रकार गधा अपनी पीठ पर लदे चंदन के भार को जानता है। उसके मूल्य को नहीं। अर्थात ज्ञान के मूल्य को वह नहीं जानता।
  12. आज संसार में सब धर्म प्राणहीन एवं परिहास की वस्तु हो गए। आज जगत का सच्चा अभाव है चरित्र। संसार को उनकी आवश्यकता है। जिनका जीवन उत्कट प्रेम तथा निःस्वार्थपरता से पूर्ण है। वह प्रेम प्रत्येक शब्द को वज्रवत शक्ति प्रदान करेगा।
  13. मनुष्य तभी तक मनुष्य कहा जा सकता है, जब तक वह प्रकृति से ऊपर उठने के लिए संघर्ष करता है। इस प्रकृति के भीतर ऐसे सूक्ष्म नियम भी हैं जो बाह्य प्रकृति को संचालित करने वाली अंतरूप प्रकृति का नियमन करते हैं। बाह्य प्रकृति को जीत लेना भव्य है पर उससे असंख्य गुना अच्छा और भव्य है अभ्यंतर प्रकृति पर विजय पाना। आंतरिक मनुष्य पर विजय पाना, मानव मन की जटिल सूक्ष्म क्रियाओं के रहस्य को समझना पूर्णतया धर्म के अंतर्गत आता है।

“Swami Vivekananda quotes in Hindi”

swami Vivekananda biography in Hindi

SL. NO.QUESTIONSFACTS 
1नामनरेन्द्रनाथ दत्त
2बचपन का नामनरेंद्र
3पिता का नामविश्वनाथ दत्त (1835-84)
4माता का नामभुबनेस्वरी देवी (1841-1913)
5भाई का नामभूपेंद्र नाथ और महेंद्र नाथ
6बहन का नामस्वर्णमयी देवी
7जन्म तिथि12 जनवरी ‘ 1863
8जन्म स्थानकोलकाता, भारत
9मृत्यु तिथि4 जुलाई’ 1902
10मृत्यु स्थानबेलूर मठ, कोलकाता, भारत
11धर्महिन्दू
12शैक्षिक योग्यतास्नातक
13स्कूलईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटियन इंस्टीटूशन
14कॉलेजप्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय कोलकाता
15स्वामी जी के गुरुश्री रामकृष्ण परमहंस

 

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