पर्यावरण पर निबंध पर संकेत बिंदु –
- पर्यावरण एक वरदान
- पेड़ – पौधे से शुद्धता और सुरक्षा
- पर्यावरण और मानव विकास
- पर्यावरण प्रदुषण
- पर्यावरण की रक्षा
- उपसंहार
पर्यावरण पर निबंध
Table of Contents
पर्यावरण एक वरदान
पर्यावरण हमारे आसपास की परिस्थिति होती है जिससे हम अपने जीवन चक्र को चलते हैं। दूसरे शब्दों में यूँ कहें की ये हमारे जीवन निर्वाह और विकास को गति प्रदान करती है। पर्यावरण हमारे लिए ईश्वर के द्वारा दिया गया अनमोल वरदान हैं। इसे वायुमंडल की संज्ञा भी दे सकते हैं। प्रत्येक जीव इसी पर्यावरण के कारण जीवित रह पाता हैं। ये हमारे लिए जीवन आधार तो है ही अपितु पालनकर्ता भी है।
भूमि पर व्याप्त वातावरण और विशेष जलवायु संरचना ही पर्यावरण को दर्शाती है। प्रकृति सृस्टि प्राचीन काल से ही मानव की सहचरी रही है। इस प्रकृति का आनंद वह अनंत काल से लेता आ रहा है। वह बाल्यकाल में इसी मिटटी में खेला और स्वस्छ वातावरण से साँस लेता आया है। पर्यावरण हमारे लिए जीवन रक्षा कवच की भांति कार्य करते आई है।
पेड़ – पौधे से शुद्धता और सुरक्षा
पेड़ पौधे के बिना हम स्वच्छ वातावरण की कल्पना नहीं कर सकते। या यूँ कह लें कि पर्यावरण और पेड़ों में इतना गहरा सम्बन्ध है कि वे एक दूसरे के बिना अस्तित्व विहीन हो जायेंगे। प्रत्येक प्राणी के लिए प्राण वायु इन्ही पेड़ों से मिलती हैं। इतना ही नहीं वातावरण में मानव द्वारा फैलाई हानिकारक गैसों को भी ये अवशोषित कर लेती है। ये कार्बन डाइऑक्सइड को लेकर हमारे लिए ऑक्सीजन प्रदान करती हैं। इन्ही पेड़ों के द्वारा हमारा पर्यावरण स्वच्छ और संतुलित रहता हैं।
इन पेड़ पौधों को वर्षा का नियंत्रक भी बन जाता है। ये अक्सर देखा जाता है कि जहाँ पेड़ अधिक होते हैं वहां कभी भी जल की कमी नहीं होती है। ये पेड़ वर्षा का आवाहन कर बारिश का सुखद अहसास पुरे प्राणी जगत को करवाते हैं। अगर पर्याप्त वर्षा हो तो पर्यावरण भी शुद्ध व् स्वच्छ बनी रहती है। इसी वर्षा से चारो और हरियाली छायी रहती है। अगर रेगिस्तान में पेड़ होते तो कभी वहां रेगिस्तान ही नहीं होता क्योकि वर्षा की कमी के कारण ही भूमि रेगिस्तान में परिवर्तित हो जाती है।
पुराणों में भी इसके महत्त्व की चर्चा की गई है। पेड़ लगाना सबसे बड़ा धर्म है और इसी का बखान करते हुए मत्स्य पुराण में कहा गया है कि “एक वृक्ष को लगाना, दस पुत्रों के जन्म के समान है। ” जब आप एक पेड़ लगते हैं तो आप भविष्य की पीडियों के लिए एक स्वच्छ वातावरण बना रहे हैं ताकि वो अपने जीवन व् सृस्टि का आनंद ले सकें। प्राचीन काल से ही इन पेड़ों की पूजा की प्रथा चली आ रही है। ऋषिगण जानते थे कि भविष्य में मानव अपने लाभ और विकास के नाम पर पूरी सृस्टि को नष्ट करने पर आतुर हो जायेगा। इसलिए वे हमेशा से इसके महत्त्व को अपनी रचनाओं में माध्यम से मानव समाज में जागरूकता फैलते आ रहे थे।
पर्यावरण पर निबंध
पर्यावरण और मानव विकास
प्राचीन काल से ही मानव प्रकृति के साथ खेलता चला आया है। समय के साथ -साथ मानव जनसँख्या बढ़ती चली जा रही है। ये बढ़ती हुई जनसँख्या पर्यावरण समस्या की जननी साबित हुई। जनता के निवास के लिए भूमि की मांग बढ़ती चली जा रही है। साथ ही साथ उनके लिए भोजन जुटाना भी कठिन होता जा रहा है। अधिक फसलों के लिए उपजाऊ भूमि घटती चली जा रही है। भूमि की मांग को पूरा करने के लिए लोग जंगलों को काटते चले जा रहे हैं।
उत्पादन बढ़ाने के लिए कारखाने, फैक्टरियां बनती चली जा रही है। विकास के नाम पर पेड़ों और जंगलों को काटना आज आम बात है। आज जंगलों की जगह ऊँची ऊँची इमारतों ने ली है। हम विकास तो कर रहे हैं पर पर्यावरण को नष्ट कर हमें विकास को गति देना उचित नहीं । भविष्य में शायद ये जंगल हम अजायबघर में देख पाएंगे। जंगलों के नष्ट होने से वृक्षों और जीवों की कई प्रजाति नष्ट हो गई है। आज जंगली जीवों के घरों को हमने समाप्त कर दिया है और वे जीव बेचारे अब चिड़ियाघरों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
मानव ने अपनी सुख सुविधा के लिए औद्योगिक कल – कारखानों को तो बढ़ाया पर ये भूल गए कि आने वाली पीढ़ी क्या इन सुखों का उपभोग कर पायेगी । अगर पूरी प्रकृति ही विनाश की और चल पड़ी तो क्या हमारा भविष्य सुरक्षित हो पायेगा। हमने अपने पर्यावरण को कारखानों के धुएं से दूषित कर दिए । आज जहाँ -तहाँ कूड़ा बिखरा दिखाई देता है। कूड़ा के जलने पर पूरा आकाश बदरंग हो जाता है। हमारी कल – कल करती नदियां सूखती चली जा रही है। वन के काटने के कारण आज मौसम में भी बहुत बदलाव आ गया है। आज प्रकृति आपदा के रूप में दिखाई देने लगी है।
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पर्यावरण प्रदुषण
प्रदुषण अर्थात नष्ट करना या अपवित्र करना । पर्यावरण, जो हमें जीवन प्रदान करती है हमें निर्वाह और विकास के लिए सक्षम बनाती है, हमने उसी पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है। प्रदुषण की चोट अब हमारी प्रकृति भी झेल रही है। पर्यावरण प्रदुषण का एक मात्र कारण मानव है। मानव की बढ़ती हुई लालसा ने पर्यावरण तंत्र को ही बिगाड़ दिया है। बढ़ती हुई जनसँख्या और नगरों के विकास ने इस प्रदुषण को बढ़ाने में पूर्ण सहायता की है। आज वैज्ञानिक समृद्धि हमारे लिए अभिशाप की भांति बन गई है।
हमने इस प्रदुषण को बढ़ाकर कई बिमारिओं को निमंत्रण दे दिया है। वायु प्रदुषण आज प्रत्येक देश की समस्या बनते चली जा रही है। हमारे भारत में ये तो चरम सीमा पर पहुंच गया है। उद्योगों की वृद्धि होने के कारण चिमनियों से निकलता धुआं पुरे वातावरण में फ़ैल जाता है। शहरों में मोटर वाहनों की बढ़ती संख्या तो देखते ही बनती है। चारों और काला धुआं ही दिखाई देता है। इस धुंए में जहरीली गैस मौजूद होती है जो हमें रोगी बनाने के लिए पर्याप्त है। इन जहरीली गैसों से श्वास सम्बन्धी कई रोग अब बच्चों तक में दिखाई देने लगे हैं।
मोटर वाहनों से निकलता धुआं जिसमे कार्बन – डाइऑक्सइड, नाइट्रोजन, शीशा आदि तत्व घुला होता है, वे जीव जगत को बहुत हानि पहुंचते हैं। ये मंद विष की तरह सबको बीमार करता चला जा रहा है। आज शहरों में फेफड़ा कैंसर और अन्य श्वास रोगी की संख्या बढ़ती चली जा रही है। ईश्वर ने हमें प्राणवायु का वरदान दिया था पर आज उसी ऑक्सीजन की कमी इतनी हो गई है कि आज इसे बंद सिलिंडरों में ख़रीदा जा रहा है।
बिजली का प्रयोग तो अब हर जगह होने लगा है। चाहे वो झोपडी हो या कारखाना, सब जगह इस बिजली का ही प्रयोग देखा जाता है। पर ये बिजली ताप बिजली घरों से हमें प्राप्त होती है। इन ताप बिजली घरों में कोयले का प्रयोग होता है जो बहुत धुआं और धूल वातावरण में निष्काषित करती है। ये धूल भी वायु में घुल कर हमारे फेफड़ों तक पहुंच कर बेहद नुकसान पहुँचती है।
जल प्रदुषण भी आज पैर पसारने लगी है। कारखानों का गन्दा पानी, घरों के दूषित नालों का जल तथा पुरे शहरों का गन्दा जल, नदियों में मिलाया जा रहा है। आज नदी के साथ साथ समुद्र भी प्रदुषण का शिकार हो गए हैं। ये गन्दा जल कई रसायनों और जहरीले पदाथों को बहाकर लाती है। महानगरों में तो सीवरों का जल सीधे नदियों में मिलाया जा रहा है। ये जल अगर खेतों तक पहुंच जाये तो ये पसलों को ख़राब तो करती ही है अपितु खेतों की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट कर देती है।
औद्योगिक संसाधनों ने तो जल को विशाख्त कर दिए है। शुद्ध पेय जल सबका अधिकार होता है। पर जल को प्रदूषित होने से बचाना भी हमारा ही कर्तव्य है। हमें शहर के गंदे जल तो सीधे नदी में मिलने से रोकना होगा तथा नयी तकनीक लानी होगी जिससे जल को साफ कर फिर से प्रयोग में लाया जा सके।
ध्वनि प्रदुषण का भी पर्यावरण प्रदुषण में मुख्य भूमिका होती है। शोर आज शहरों की पहचान हो गई है। मोटर वाहनों के शोर से तो मनो पूरा शहर कांप उठता है। आज चिड़िया की चहचहाहट से भोर नहीं हुआ करता है अपितु गाड़िओं के शोर से अब मानव जागने लगा है। सुबह से देर रात तक यही क्रम चलता रहता है। आज शांत और एकांत माहौल तो मानो अदृश्य हो गए हैं।
पर्यावरण पर निबंध
पर्यावरण की रक्षा
प्रदुषण की रक्षा के लिए हमें सबसे पहले शुरुआत अपने से करनी होगी। पर्यावरण का हमारे जीवन में जो महत्त्व है उसे हमारे समाज को अवगत करना होगा। हम इसे बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल कर निम् स्तर से बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं। प्रदुषण को नियंत्रण करने के लिए हमें कारखानों को बंद करने की जरुरत नहीं है बल्कि हमें कुछ नियमों का सटीकता से पालन करना है। जैसे – कारखानों से निकला कचरा बाहर न फेककर इसके दोबारा किसी और में इस्तेमाल की तकनीक ईजाद करनी चाहिए। धुआं कम से कम हो इसका ख्याल रखना होगा।
परंपरागत ईंधनों का प्रयोग को बढ़ावा दें। आज सोलर से चलने वाले वाहन तथा बैटरी चालित गाड़ियां उपयोग में लाइ जा रही है। ये धुआं रहित होती है। आजकल तो रेलवे प्लेटफार्म भी सोलर चालित परियोजनाओं पर काम कर रही है। पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा का प्रयोग भी पर्यावरण सुरक्षा में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है।
मोटर वाहनों का अगर हम अपने स्तर पर प्रयोग काम से काम करें तो काफी हद तक प्रदुषण को काम करने में हम भागीदारी निभा सकते हैं। आज के भारत में मोटर वाहनों से निकलने वाले धुआं बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। आज महानगर दिल्ली इस वायु प्रदुषण के चपेट में आ गई है। प्रत्येक घर में शौचालयों का प्रयोग हो ताकि गन्दगी वातावरण को दूषित न करें। हमने सड़कों के निर्माण और ऊँची मीनारों को बनाने के लिए कई पेड़ काटें हैं। अब समय है जितना हो सके घरों, इमारतों, सड़कों व् खाली पड़ी जमीनों के आसपास वृक्षारोपण करें।
पर्यावरण की रक्षा का वृक्षारोपण ही एकमात्र उपाय है, हम जितना अधिक वृक्ष लगाएंगे, उतना ही हम निर्मल प्रकृति का निर्माण कर पाएंगे। हम हरे भरे पार्क का निर्माण भी कर सकते हैं। आप घर -आंगन, स्कूल, कार्यालय आदि जहाँ भी हो वृक्षारोपण को प्राथमिकता दें। आपका छोटा सा प्रयास बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। जल प्रदूषित होने से रोकना होगा। हम ये धयान रखना है कि हम अपने घर की गन्दगी और दूषित जल को बाहर करने के बजाय उसका प्रयोग बागवानी के लिए कर सकते हैं। इससे भी कुछ हद तक गन्दगी कम होगी।
हमें ध्वनि प्रदुषण की रोकथाम भी करनी होगी । अनायास ही हम लाउडस्पीकर लगाकर शोर मचाते हैं। इसी प्रकार सड़कों पर चलते वाहनों से भी हॉर्न की आवाज पर्यावरण की शांति भंग कर देती है। ध्वनि प्रदुषण हमारे श्रवण शक्ति को बेहद ही कमजोर कर देती है। बूढ़े और बच्चे इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
पर्यावरण पर निबंध
उपसंहार
किसी भी राष्ट्र के लिए पर्यावरण की रक्षा सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। शुद्ध जल, शुद्ध वायु और शुद्ध भोजन जीव जगत के लिए अनिवार्य तत्व है। पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए हमें सबसे पहले बढ़ती जनसँख्या पर रोक लगाना होगा। हरियाली पर पुर जोर देकर ही हम पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं। हमें औद्योगिक संस्थानों को बंद नहीं करना है अपितु उनके लिए प्रदुषण के कुछ मापदंड तय करना होगा। फ़ैक्टरिओं को आबादी से दूर स्थापित करना होगा। प्रदूषित जल को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाकर खेतों की सिंचाई के काम आ सकता है।
भारत प्राचीन कल में वन उपवनो से हरी – भरी थी। पेड़ – पौधों व् लताओं से समृद्ध थी। यही कारण है कि पहले वायुमंडल शुद्ध हुआ करता था । बीमारी और महामारी का प्रकोप भी बेहद कम हुआ करता था। हम अपने स्तर पर पर्यावरण के मित्र बन सकते हैं। शुरुआत तो आपको ही करनी होगी। अगर हर कोई अपने स्तर पर पर्यावरण के प्रति जागरूक हो जाये तो यकीं मानिये हमारी धरती खिलखिला उठेगी। चारो और फिर से हरियाली दिखाई देने लग जाएगी। चिड़ियों की चहचहाट से फिर से सारा संसार चहक उठेगा।
पर्यावरण पर निबंध
पर्यावरण पर 10 lines.
- पर्यावरण को हम वायुमंडल भी कहते हैं।
- हम इसी पर्यावरण से अपना जीवन निर्वाह करते हैं।
- शुद्ध पर्यावरण से प्रत्येक जीव स्वस्थ और सुखी रहता है।
- हरियाली, पर्यावरण की सच्ची मित्र होती है।
- पर्यावरण हमारे लिए ईश्वर का दिए हुआ वरदान है।
- हमें अपने पर्यावरण को हमेशा स्वच्छ रखना चाहिए।
- पर्यावरण से ही हमें भोजन, वायु और जल प्राप्त होते हैं।
- पृथ्वी ही एकमात्र ग्रह है, जहाँ पर्यावरण मौजूद है।
- पेड़ ही हमें प्राण वायु प्रदान करते हैं।
- मानव ही आज प्रदुषण फैलाकर पर्यावरण का दुश्मन बन बैठा है।
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