दहेज प्रथा पर निबंध

“दहेज प्रथा पर निबंध ” के इस अंश में हम निबंध के साथ साथ उन सभी आयामों को भी देखेंगे जो इस विषय के साथ जुड़े हुए हैं। विद्यालय पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए इस निबंध को उच्च कोटि का बनाया गया है ताकि परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त हों। हर पहलू पर विशेष ध्यान रखा गया है। आइये इस विषय के प्रामाणिक व्याख्या को जानने का प्रयास करते हैं।

दहेज़ प्रथा निबंध के संकेत बिंदु दहेज प्रथा पर निबंध

  1. दहेज़ का परिचय 
  2. सामाजिक विरासत 
  3. दहेज़ एक अभिशाप 
  4. शारीरिक और मानसिक वेदना 
  5. शिक्षा से परिवर्तन 
  6. उपसंहार

दहेज प्रथा पर निबंध

Dahej pratha in Hindi

दहेज़ का परिचय

दहेज़ मानव समाज में एक प्रथा के रूप में व्याप्त है। समाज अर्थात लोगों का ऐसा समूह जो एक ही जगह पर रहते हैं या एक ही प्रकार का काम, दल या समुदाय होते है। हमारा समाज एक ऐसे समूह के रूप में व्याप्त है जो हमारे सामान्य जीवन के प्राथमिक आवश्यकताओं व् दशाओं की पूर्ति करता है। समाज में मानव  पौराणिक काल से कई मान्यताओं को संजो कर चलता आया है, जिन्हे हम मान्यता या प्रथा का नाम देते है। ये मान्यताएं मानव को समाज और संस्कृति से जोड़ने हेतु बनाये गए थे।

पर इन्ही मान्यताओं में एक दहेज़ प्रथा अनायास की समाज में व्याप्त हो गया है। ये प्रथा मुख्यः विवाह से जुड़ा हुआ है। दहेज़ का अर्थ है – मूलयवान निधि। ये विवाह में एक पक्ष दूसरे पक्ष को उपहार स्वरुप देते है। ये किसी जाति या समाज अलग अलग रूपों में देखा जा सकता है। कही – कही विशिष्ट अवसर पर दहेज़ का दिया जाना भी देखा जाता है। दहेज़ ने आज के आधुनिक युग में बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया है। दहेज़ आज उपहार नहीं, बल्कि एक शर्त है, जिसके बिना कोई विवाह संपन्न नहीं होता है। दहेज़ तो आज दो परिवारों में मानसिक पीड़ा, कलह और अनिष्ट को उत्पन्न करने वाली हो गई है।

सामाजिक विरासत

 ये  बात विशेष उल्लेखनीय है कि हमारे समाज में प्रथाएं विरासत के रूप में मौजूद हैं। मानव के व्यव्हार को ये नियंत्रण करने हेतु कुछ नियम बनाये गए थे । पर इसका कोई सठिक आधार नहीं होता है। लोग मानते हैं कि सभी ऐसा करते हैं तो हम क्यों न करें और यही करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ये समाज के अनुपचारिक नियमों से बंधी होती है। ये पूरा मानव समाज कठोरता से पालन करता है। काफी हद तक ये हर एक के लिए बाध्य होती है।

आज मानव समाज में दहेज़ भी कठोर प्रथा के रूप में विकराल रूप धारण कर लिया है। ये पीडियों से चली आ रही है और यही कारण है कि ये अनिवार्य रूप से पालन करने के लिए समाज बाध्य सा हो गया है। पूरा समाज ही इस प्रथा को अपनी स्वीकृति प्रदान कर रहा है। भारतीय समाज पर दहेज़ आज एक कलंक की भांति है। ये समाज की मान – मर्यादा व् प्रतिष्ठा को समाप्त कर रहा है।

दहेज़ एक अभिशाप

हमारा समाज आज दहेज़ के अभिशाप से ग्रस्त हो गया है। आज इसका दूरगामी परिणाम हमें देखने को मिल रहा है। पुत्री के जन्म को इसी दहेज़ से अशुभ बना दिया है। आज एक पिता पुत्री के जन्म पर खुश नहीं होता है अपितु उसे तो उसके जन्म से ही उसके दहेज़ और विवाह की चिंता सताने लगती है। परिणाम यह होता है कि पुत्र को अधिक स्नेह मिलता है और बेटी को बोझ समझकर उनका हमेशा तिरस्कार किया जाता है। आज कोई बेटी की जन्म पर बधाई नहीं देता है न ही कोई मंगल गीत गाये जाते है।  

पुत्री अपना सारा जीवन अवहेलना, दुःख और तिरस्कृत जीवन जीती हैं। दहेज़ के कारण कन्या के माता- पिता मानो अभिशप्त हो गए हैं। दहेज को पूरा करने के लिए ऋण लेकर या अपनी संपत्ति गिरवी रखकर या बेचकर पूरा करने को मजबूर हो गए हैं। ये ऋण का बोझ माता पिता पर जीवन भर बना रहता है। इसी कुप्रथा के कारण आज ‘असमान सम्बन्ध’ अर्थात अधिक उम्र वाले वर के साथ किशोरी का विवाह सम्बन्ध को भी देखा जा रहा है। सुन्दर, सुयोग्य व् शिक्षित कन्या को भी उसके अनुसार वर नहीं मिल पाता है।

विवाह के लिए समाज आज हर कन्या को विवश तो करता है पर सुयोग्य वर दहेज़ की उच्च मांग के कारण मिल नहीं पाता और विवशता में कामचलाऊ वर के साथ विवाह हो जाता है। कन्या अपनी विवशता को अपनी नियति ही मान लेती है।

शारीरिक और मानसिक वेदना– 

वधु को शारीरिक कष्ट देना इस दहेज़ का सबसे क्रूर पहलु है। जब वर को मन मुताबिक दहेज़ नहीं मिलता तो वह अपना क्रोध वधु पर निकलता है। हमेशा मारपीट , कलह और मानसिक वेदना का शिकार कन्या ही होती है। इस शिक्षित समाज में आज भी दहेज़ के नाम पर वधु से क्रूर व्यव्हार किया जाता है। दहेज़ न लाने पर वधु के साथ छोटी -छोटी बातों में कलह करना तथा उसपर व्यंग्य और टिका – टिप्पणी की जाती है। उसे भूखा रख कर तरसाया जाता है। उसपर लात- घूसों से प्रहार करने भी ये नहीं चूकते हैं। उसे अदृश्य शारीरिक चोटें पहुंचाई जाती है। 

मानसिक चिंता से वह नवविवाहित वधु का रूप व् सौंदर्य शीर्ण हो जाता है और जब कष्ट चरम सीमा तक पहुंच जाता है तो वह आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाती है। एक कन्या जो सब कुछ त्याग कर एक पराये घर को अपनाने को तैयार रहती है पर जब उसके ससुराल वाले उस कन्या को महत्त्व न देकर धन को महत्त्व देते हैं, तो समस्या तभी ही शुरू हो जाती है।

दहेज़ तो लालच का प्रतिक बन गया है और ये लालच कभी न ख़त्म होने वाली होती है। ऐसे लालची लोगों के बीच एक लड़की की वेदना को समझना बेहद ही मुश्किल है। एक लड़की के मन में क्या गुजरती है शायद ये स्वार्थी समाज कभी नहीं समझ पायेगा। 

शिक्षा से परिवर्तन

आज की सामाजिक परिपाटी में बदलाव आने लगा है। आज की शिक्षित नारी दहेज़ को सर्वथा नकारने लगी है। वह अब समाज की कुप्रथाओं में पिसना नहीं चाहती है। नारी अब खुद पर विश्वास करने लगी है। शिक्षा से वह आत्मनिर्भर हो गई है। उसमे स्वावलम्बी  जीवन जीने की ललक व् योग्यता है। और यही कारण है कि अब वह दहेज़ के लालची पति को छोड़ने में तनिक भी देरी नहीं करती। वह अब न उसके ताने तो सुनती है और न ही उसके क्रूर व्यवहार को । अतः वह लोभी पति को छोर कर अपने मातृ घर जाना पसंद करती है और इतना ही नहीं उसे सम्बन्ध तोड़ भी लेती है। 

आज शिक्षा ने नारी के आत्मविश्वास को जागृत कर दिया है। वह अब घर तक ही सीमित रहना नहीं चाहती हैं। अब वह ही पुरुषों के साथ हर जगह काम करने लगी हैं। किसी अनचाहे व्यक्ति के साथ अब उन्हें जीवन जीने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता है इसकी अपेक्षा वह कुवारी रहना पसंद करती है। आज मानसिक सोच बदली है । प्रेम विवाहों का प्रचलन शायद बदलते समाज का नन्हा कदम है। लड़कियां अपने पसंद के वर से ही अब विवाह करने लगी है। 

आज कानून भी बहुत शख्त हो गया है। आज शिक्षा के कारण सभी जानते हैं कि दहेज़ एक दंडनीय अपराध है। कानून में ऐसी व्यवस्था है कि विवाह में दिए गए उपहार की सूचि वर को प्रस्तुत करनी होती है। अगर दहेज़ के बारे में पुलिस को जानकारी मिल जाये तो वर को दण्डित किया जा सकता है। आज दहेज़ की प्रताड़ना के कारण कारावास तक की सजा हो जाती है।

उपसंहार

दहेज़ की समस्या ने तो हमारे समाज में एक व्यापक रूप धारण कर लिया है । दहेज़ की समस्या के समाधान के लिए कानून तो बना और कुछ लोग तो दण्डित भी हुए पर इस प्रथा पर रोक नहीं लग पाई है। हमारा आदर्श समाज कुछ कुप्रथाओं को साथ लेकर चलने में ही अपना बड़प्पन देखता है। ये दहेज़ के लालची रोज ही कानून का मज़ाक बनाते है। पर शायद वो ये नहीं जानते कि वो अपना तो नुकसान कर ही रहे हैं अपितु आने वाली पीढ़ी भी इसी प्रथा से ग्रस्त हो जाएगी।

एक शिक्षित समाज ही आज इसमें लिप्त हो गया है। जितना बड़ा ओहदा उतनी अधिक दहेज़ की मांग। इस कुप्रथा को दूर करने का बस एक ही उपाय है वो है कि दहेज़ को नकारने की शुरुआत की पहल आप खुद से करें । जब हर कोई आपने आप को बदलने तो तैयार हो जायेगा तो समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। शिक्षा से सबको जागृत करना होगा।

युवक – युवतिओं में दहेज़ – विरोधी मानसिकता को जगाना होगा। उन्हें ये जानना होगा अब इस कुप्रथा को बंद करना ही उचित है। हमारे द्वारा लिया गया एक कदम शायद समाज पर लगे इस कलंक को साफ कर पाए।


दहेज प्रथा पर निबंध

दहेज़ पर 10 लाइन 

  1. दहेज़ समाज की एक विकट समस्या है।
  2. ये हमारे समाज की एक कुप्रथा है।
  3. विवाह समारोह में एक पक्ष दूसरे पक्ष को दहेज़ देते हैं।
  4. प्राचीन काल में दहेज़ उपहार समान होता था।
  5. आधुनिक युग में ये जबरदस्ती की की प्रथा बन गई है।
  6. दहेज़ के कारण आज किसी कन्या के जन्म पर खुशियां नहीं मनाई जाती।
  7. कन्या का पिता आज दहेज़ से सहमा हुआ दिखता है।
  8. बिना दहेज़ के सुयोग्य वर नहीं मिल पाते है।
  9. दहेज़ न लाने पर कन्या पर विभिन्न प्रकार जुल्म होते हैं।
  10. दहेज़ के कारण कई वधुएं मृत्यु को रोज प्राप्त हो रहीं है।

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दहेज प्रथा पर निबंध

Frequently asked question (FAQ) – Dahej  

1.दहेज एक्ट कैसे लगता है?

How dowry act works?

Answer- दहेज़ एक क़ानूनी जुर्म है। इसमें धरा 498A लगती है। जब भी न्यायलय में विविहित महिला से क्रूरता से सम्बंधित कोई मुकदमा आता है तो वह मुकदमा Dowry act 498A के अंतर्गत ही सुनवाई की जाती है। ये अक्सर विवाह से सम्बन्ध रखता है। जब भी कोई विवाह हेतु दहेज़ के लिए दबाव या किसी वस्तु को देने के लिए बाध्य करें तो उसपर क़ानूनी मुकदमा चलाया जा सकता है।

२। 498A में कितनी सजा है?

What is the punishment in 498A?

Answer- अगर कोई मुकदमा 498A अंतर्गत आता है तो जुर्म साबित होने पर अधिकतम तीन सालों तक की सजा का प्रावधान है। ये गैर जमानती होता है।

३। दहेज में कौन सी धारा लगती है?

Which section is applicable in dowry?

Answer- अगर पति या किसी अन्य के खिलाफ दहेज़ के मुक़दमे में धारा 498A लगती है और अगर दहेज़ के कारण वधु के मृत्यु हो जाये तो धारा 304B के अंतर्गत मुकदमा दायर होता है।

४। दहेज़ प्रथा का क्या निष्कर्ष है?

What is the conclusion of dowry system?

Answer- भारत में दहेज़ लेना और देना दोनों ही दंडनीय अपराध है। दहेज़ के कारण अगर वधु को कोई शारीरिक आघात पंहुचा है तो इसपर क़ानूनी मदद ली जा सकती है। ये हमारे समाज में व्याप्त भीषण रोग के समान है जो व्यक्तिगत और क़ानूनी मदद के द्वारा समाप्त की जा सकती है।


मुझे उम्मीद है आप मेरे इस दहेज प्रथा पर निबंध ब्लॉग से काफी कुछ जानकारी हासिल कर पाए होंगे। हमने समाज में व्याप्त एक ऐसी समस्या की और आपका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है जो मूलतः जगह अपना पैर पसार चूका है। हमें एक जुट होकर इसके खिलाफ लड़ना है नहीं तो ये आने वाली पीढ़ी को एक अंधकारमय समाज की ओर ले जाएगी। 

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